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चुनावी फिजा और ‘आइएम’
।। प्रभात कुमार रॉय।। (राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार परिषद् के पूर्व सदस्य) विगत कुछ दिनों के दौरान दिल्ली पुलिस ने इंडियन मुजाहिदीन यानी आइएम तंजीम के सरगना जेहादियों की गिरफ्तारियों को अंजाम देकर यकीनन जेहादी आतंकवाद के मोरचे पर बड़ी कामयाबी हासिल की है. जिन्हें गिरफ्तार किया गया, उनको मुंबई, हैदराबाद, पटना से लेकर वाराणसी तक […]
।। प्रभात कुमार रॉय।।
(राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार परिषद् के पूर्व सदस्य)
विगत कुछ दिनों के दौरान दिल्ली पुलिस ने इंडियन मुजाहिदीन यानी आइएम तंजीम के सरगना जेहादियों की गिरफ्तारियों को अंजाम देकर यकीनन जेहादी आतंकवाद के मोरचे पर बड़ी कामयाबी हासिल की है. जिन्हें गिरफ्तार किया गया, उनको मुंबई, हैदराबाद, पटना से लेकर वाराणसी तक में हुए धमाकों के लिए जिम्मेदार करार दिया गया है.
अहम तथ्य है कि यह तंजीम भारत के अनेक नौजवान छात्रों को जेहादी मंसूबों से जोड़ने में कामयाब हो रहा है. दिल्ली पुलिस द्वारा राजस्थान से गिरफ्तार किये गये मोहम्मद महरूफ और मोहम्मद वकार न केवल इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर रहे थे, बल्कि दसवीं और बारहवीं में उन्होंने 94 और 91 फीसदी तक अंक हासिल किये थे. यही नहीं, इन्होंने यह जानकारी भी दी है कि इंडियन मुजाहिदीन 15 वर्ष तक के नौजवानों को जेहाद के लिए बरगलाने में कामयाब हो रहा है. सरकार के सामने यह सबसे बड़ी चुनौती है कि किस तरह से नौजवानों को आतंकवाद के मार्ग पर भटकने से रोका जाये.
आइएम को परवान चढ़ाने में पाकिस्तान से हासिल हो रही ट्रेनिंग अहम रही है, जिसका खतरनाक जहर भारत में फैल चुका है. अहम तथ्य है कि आतंकवाद के रास्ते पर चलने की पृष्ठभूमि सदैव जहालत और गुरबत से सराबोर कारण ही नहीं होते. हाल की गिरफ्तारियों में से कई तो शिक्षित एवं संपन्न घरों से हैं. वास्तव में जेहादी आतंकवाद की चुनौती बहुत अधिक संगीन है, जिससे पूर्णत: निपटने के लिए व्यापक राष्ट्रीय रणनीति की जरूरत है. पाकिस्तान आइएम को भारत में सरसब्ज आतंकवाद करार देकर सदैव कन्नी काटता रहा है. इसलिए उच्च शिक्षा संस्थानों में राष्ट्रवाद के संस्कारों को पल्लवित करनेवाली शैक्षिक व्यवस्था से ही नौजवान छात्रों को आतंकवाद की ओर मुड़ने से रोका जा सकता है. जाहिर है, ऐसे भटके हुए युवाओं को सन्मार्ग पर लाना एक जिम्मेवार राजसत्ता और समाज दोनों का ही कर्तव्य है.
जेहादी सरगना तहसीन अख्तर और जिया-उर-रहमान की गिरफ्तारी के बाद आइएम की कमर एक हद तक टूट गयी है. आइबी के सूत्र इंगित करते हैं कि इसका अंतरराष्ट्रीय स्वरूप स्पष्ट तौर पर उजागर होने लगा है और अलकायदा के साथ भी इसके रिश्ते प्रमाणित हो गये हैं. यह अब अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कार्रवाइयां करने में सक्षम है और उसके जेहादी आका केवल इस्लामाबाद में ही नहीं बैठे हुए हैं, बल्कि अन्य देशों में भी हैं. अंतरराष्ट्रीय जेहादी आतंकवाद जिस तरह से संचालित किया जाता है, वह किसी एक सरगना या कुछ कारकूनों के भरोसे नहीं चलाया जा सकता है. ऐसे जेहादी सरगना सिर्फ सूत्र हैं और इनके जरिये जेहादी नेटवर्क का सिर्फ एक सिरा हमारे हाथ लगता है. पूरी कामयाबी तब मिलेगी, जब हम इसके अंतिम छोर को भी पकड़ सकें. यह कटु तथ्य रहा है कि इंडियन मुजाहिदीन की कारस्तानियां उजागर होते ही हुकूमत सचेत नहीं हुई. आगाज में ही इस खतरनाक संगठन को खत्म करने की कोई प्रभावी पहल अंजाम नहीं दी गयी. जेहादी कारस्तानियों पर हिंदू-मुसलिम टकराव का सांप्रदायिक मुल्लमा चढ़ा दिया गया. जाहिर है, इसे पूरी तरह कुचलना इतना आसान नहीं है. इसलिए इस खतरे से निपटने के लिए एक व्यापक राष्ट्रीय सुरक्षा योजना की दरकार है, जिसमें राजनीति और राजनेताओं का कोई सीधा दखल न हो.
राजस्थान में जेहादी सरगना जिया-उर-रहमान उर्फ वकास को उसके तीन साथियों के साथ पकड़ा गया, वह बम निर्माण विशेषज्ञ था. उसने बम निर्माण की दक्षता
अफगानिस्तान के ट्रेनिंग कैंप में हासिल की थी, जिसमें अलकायदा के कारकून मुजाहिदीनों को बम निर्माण की दक्षता सिखायी जाती है. इसी शिविर में कई अन्य भारतीय नौजवान भी थे, जिन्हें आइएम ने प्रशिक्षण के लिए अफगानिस्तान भेजा था. तहसीन अख्तर की गिरफ्तारी के बाद आइएम की कयादत खत्म नहीं हो गयी है. जेहादी सरगना यासीन भटकल के बाद तहसीन अख्तर ही आइएम का सबसे बड़ा सरगना था. पहले यासीन भटकल और अब तहसीन अख्तर की गिरफ्तारी से आइएम को झटका लगा है और इसी आधार पर पुलिस ऐलान कर रही है कि अब इंडियन मुजाहिदीन की कमर टूट गयी है.
खुफिया सूत्र यह भी बताते हैं कि कि आइएम के सरगनाओं में जो तीन बड़े सरगना हैं, उनमें से दो यानी रियाज और इकबाल अब भी पाकिस्तान में वहां की खुफिया एजेंसी आइएसआइ की हिफाजत में हैं. जेहादी सरगना हैदर अली भी अभी फरार है, जिसने तहसीन अख्तर उर्फ मोनू के साथ मिल कर रांची का जेहादी मॉड्यूल स्थापित किया था. जेहादी सरगना हैदर अली को आइएम की कमान मिल सकती है. आइएम आतंक का खतरा खत्म नहीं हुआ, अभी अत्यंत सतर्कता की दरकार है. देश में चुनावी फिजाएं अपने शबाब पर हैं. ऐसे में देश भर की पुलिस प्रशासन को कुछ ज्यादा ही चौकसी बरतने की जरूरत होगी.
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