इंटरनेट आजकल के बच्चों की जिंदगी का अहम हिस्सा बन गया है. इसी के साथ माता-पिता की दुविधाएं भी बढ़ गयी हैं. क्योंकि एक ओर इंटरनेट आपके बच्चे का होमवर्क या स्कूल के प्रोजेक्ट पूरे करने में मदद करता है, आपके बच्चे को नयी-नयी जानकारियों से अपडेट करता है, वहीं दूसरी ओर बच्चों के यौन शोषण व भटक जाने की राह भी तैयार करता है. इंटरनेट पर क्या सही है, क्या गलत-इसका फैसला बच्चे नहीं कर पाते. डेस्कटॉप, लैपटॉप के बाद स्मार्टफोन जैसी अत्याधुनिक तकनीक ने तो इंटरनेट को जैसे उनकी मुट्ठी में ला दिया है.
आपका बच्चा इंटरनेट पर क्या कर रहा है, कौन-सी साइट देख रहा है, यह पता करना और मुश्किल हो गया है. आज बच्चों में इंटरनेट का सुरक्षित और लाभकारी उपयोग सुनिश्चित करना एक चुनौती है. इंटरनेट और बच्चों का रिश्ता बहुत संवेदनशील हो गया है. भारत में इंटरनेट के तेज प्रसार का सीधा असर बाल यौन शोषण और पोर्नोग्राफी के प्रयोग पर पड़ रहा है. दरअसल, इंटरनेट से बच्चों को दो तरह से ज्यादा खतरा है. पहला, सायबर बुलिंग, जिसके जरिये बच्चे किसी की शरारत का आसानी से शिकार हो जाते हैं.
दूसरा, चाइल्ड पोर्नोग्राफी. इंटरनेट के जरिये यह बाल यौन शोषण का खतरनाक हथियार बनता जा रहा है. यूनिसेफ की एक रिपोर्ट के अनुसार, दुनिया भर में 40 लाख ऐसी वेबसाइट्स हैं, जिनमें बच्चों का अश्लील चित्रण किया गया है. माइक्रोसॉफ्ट के अनुसार भारत में 50 फीसदी से ज्यादा बच्चे सायबर बुलिंग का शिकार होते हैं. टेलीनॉर के एक अध्ययन के अनुसार, 2017 तक भारत में 13 करोड़ बच्चे इंटरनेट से जुड़ जायेंगे. ऐसे में बच्चों को इंटरनेट के दुष्प्रभावों से बचाने के लिए हमें ही सजग होना होगा.
सतीश कुमार सिंह, रांची