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डॉ जाकिर नाइक : धर्म प्रचारक या घृणा का व्यापारी?

बांग्लादेश में हुए हालिया आतंकी हमले में शामिल एक युवक के इसलामी प्रचारक डॉ जाकिर नाइक से प्रेरित होने की बात सामने आने के बाद इस विवादास्पद व्यक्तित्व के भाषणों की जांच की जा रही है. इससे पहले भी कुछ आतंकवादियों के नाइक के भाषणों और किताबों से प्रभावित होने की बात सामने आ चुकी […]

बांग्लादेश में हुए हालिया आतंकी हमले में शामिल एक युवक के इसलामी प्रचारक डॉ जाकिर नाइक से प्रेरित होने की बात सामने आने के बाद इस विवादास्पद व्यक्तित्व के भाषणों की जांच की जा रही है. इससे पहले भी कुछ आतंकवादियों के नाइक के भाषणों और किताबों से प्रभावित होने की बात सामने आ चुकी है. अन्य धर्मों की तुलना में इसलाम को सर्वश्रेष्ठ बताने तथा अन्य विवादास्पद बयान देकर अक्सर चर्चा में रहनेवाले मुंबई के इस इसलामिक विद्वान ने अपने ऊपर लगे आरोपों का खंडन किया है.

वे भारत समेत कई देशों में मुसलिम समुदाय, खासकर युवाओं, में पैठ रखते हैं, परंतु अनेक मुसलिम विद्वानों और संगठनों ने अकसर उनकी कड़ी आलोचना की है. ढाई दशकों में अंतरराष्ट्रीय ख्याति पानेवाले नाइक से जुड़े महत्वपूर्ण पहलुओं की विस्तृत जानकारी और विश्लेषण के साथ प्रस्तुत है आज का संडे इश्यू…

मुंबई में 18 अक्तूबर, 1965 को जन्मे जाकिर नाइक जाने-माने इसलामी धर्म प्रचारक है. सूट-बूट पहनकर और अंगरेजी में भाषण देकर उन्होंने अपनी एक अलग छवि बनायी है तथा दूसरे धर्मों से इसलाम की तुलना कर उसे सर्वश्रेष्ठ बता कर लगातार विवादों को भी आमंत्रित किया है.

डॉक्टर से धार्मिक कार्यों की ओर

नाइक ने मुंबई के किशनचंद चेलाराम कॉलेज से पढ़ाई की है तथा उनके पास टोपीवाला नेशनल मेडिकल कॉलेज एंड बीवाइएल नायर चैरिटेबल हॉस्पिटल से एमबीबीएस की डिग्री है. वर्ष 1987 में प्रसिद्ध लेखक और धर्म प्रचारक अहमद हुसैन दीदात से उनकी मुलाकात ने नाइक के जीवन की धारा को मेडिसिन से धार्मिक कार्यों की ओर मोड़ दिया. भारतीय मूल के दीदात दक्षिण अफ्रीका के निवासी थे और अपने जीवनकाल में उन्होंने अंगरेजी में अनगिनत भाषण दिये, अनेक किताबें भी लिखीं. उन्हीं की तर्ज पर जाकिर नाइक ने पश्चिमी परिधान और अंगरेजी को चुना. उन्होंने दूसरे धर्मों की मान्यताओं को इसलामी सिद्धांतों से तुलना कर इसलाम की श्रेष्ठता साबित करने का अंदाज भी दीदात से ही सीखा. दीदात ने नाइक को ‘दीदात प्लस’ की संज्ञा भी दी थी.

धर्म में किसी भी सुधार का विरोधी

नाइक का कहना है कि उनकी कोशिश मुसलमानों और गैर-मुसलमानों में इसलाम की सही समझ को बढ़ावा देना है. पर्यवेक्षकों का मानना है कि नाइक इसलाम के सलाफी परंपरा, जिसे वहाबीवाद भी कहा जाता है, के प्रचारक हैं. इस परंपरा के संस्थापक मुहम्मद इब्न अब्द अल वहाब माने जाते हैं. यह इसलाम की शुचितावादी विचारधारा है, जो धर्म में किसी भी तरह के सुधार या बदलाव का विरोधी है.

इसलामिक रिसर्च फाउंडेशन से शुरुआत

नाइक ने 1991 में इसलामिक रिसर्च फाउंडेशन नामक संस्था बनायी तथा धर्म प्रचार का संगठित काम शुरू किया. वे आधुनिक शिक्षा के साथ धार्मिक शिक्षा देने के लिए इसलामिक इंटरनेशनल स्कूल भी चलाते हैं, जिसे उनकी पत्नी फरहत नाइक संभालती हैं. उनकी पत्नी के जिम्मे फाउंडेशन की महिला इकाई का काम भी है. गरीब और वंचित मुसलिम युवाओं की आर्थिक मदद के लिए नाइक ने यूनाइटेड इसलामिक एड नामक संस्था भी बनायी है.

इंटरनेशनल सेटेलाइट टेलीविजन चैनल

वर्ष 2006 में नाइक ने अपने विचारों के प्रचार-प्रसार के लिए पीस टीवी नामक इंटरनेशनल सेटेलाइट टेलीविजन चैनल शुरू किया है जो दुबई से संचालित होता है. चैनल का दावा है कि इस अंगरेजी चैनल का प्रसारण 200 से अधिक देशों में होता है. 2009 में पीस टीवी के उर्दू संस्करण तथा 2011 में इसके बांग्ला संस्करण की शुरुआत हुई. जाकिर नाइक इन तीनों चैनलों के प्रमुख हैं. उनके फाउंडेशन की वेबसाइट पर नाइक को पीस टीवी नेटवर्क का मुख्य प्रेरक और विचारक बताया गया है. भारत सरकार ने 2012 में पीस टीवी के प्रसारण को प्रतिबंधित कर दिया था. हाल के वर्षों में विवादों के कारण महाराष्ट्र में उनकी सभाओं के आयोजन पर भी रोक लगायी गयी है.

पीस टीवी की फंडिंग

अंगरेजी अखबार डीएनए की वेबसाइट पर छपी खबर के मुताबिक दुबई-स्थित पीस टीवी की फंडिंग ब्रिटेन की संस्था इसलामिक रिसर्च फाउंडेशन इंटरनेशनल के माध्यम से जुटायी गयी है.

वर्ष 2008 और 2015 के बीच इस फाउंडेशन ने इस नेटवर्क में करीब नौ मिलियन ब्रिटिश पाउंड निवेशित किया. इस संस्था को मिले अधिकांश धन को नेटवर्क में ही लगाया गया था. वर्ष 2011 में लगभग चार मिलियन पाउंड नेटवर्क के बांग्ला चैनल में खर्च किया गया. ब्रिटिश अधिकारियों ने 2012 में फाउंडेशन को बंद करने की प्रक्रिया शुरू की थी, कुछ ही महीने बाद इस प्रक्रिया को बंद कर दिया गया और फाउंडेशन का काम जारी रहा.

ब्रिटेन और दुनिया में अन्यत्र इस नेटवर्क के प्रसारण में दो अन्य कंपनियों का इस्तेमाल होता है. इनमें एक संस्था बर्मिंघम स्थित लॉर्ड प्रोडक्शन हाउस है जिसकी स्थापना 2006 में हुई थी. दूसरी कंपनी का नाम यूनिवर्सल ब्रॉडकास्टिंग कॉरपोरेशन लिमिटेड है. डॉ जाकिर नाइक दोनों कंपनियों के निदेशक मंडल में हैं.

सम्मान और पुरस्कार

वर्ष 2010 में अंगरेजी दैनिक ‘द इंडियन एक्सप्रेस’ की 100 सबसे ताकतवर भारतीयों की सूची में नाइक को 89वां स्थान दिया गया था. दुनिया के प्रभावशाली मुसलमानों की सूची जारी करनेवाली किताब ‘द 500 मोस्ट इंफ्लुएंशियल मुसलिम’ के 2009 के बाद से सभी संस्करणों में नाइक का उल्लेख किया गया है. दुबई के इंटरनेशनल होली कुरान अवार्ड ने 2013 में उन्हें ‘इसलामिक पर्सनालिटी ऑफ द इयर’ का खिताब दिया. यह सम्मान दुबई के उपशासक के हाथों दिया गया था.

उसी साल मलयेशिया के शासनाध्यक्ष ने उन्हें सम्मानित किया था. पिछले साल सऊदी राजा ने उन्हें प्रतिष्ठित ‘किंग फैसल इंटरनेशनल प्राइज फॉर सर्विस टू इसलाम’ से नवाजा है. यह पुरस्कार नाइक के आदर्श अहमद दीदात को भी मिल चुका है. इन पुरस्कारों के अलावा उन्हें शारजाह और गांबिया से भी सम्मान मिल चुके हैं.

विवादित बोल के बाद कई देशों में घुसने पर पाबंदी

बी ते कई सालों से नाइक देश-विदेश में लगातार भाषण देते रहे हैं. कई आयोजनों को लेकर विदेशों में विवाद भी हुए तथा उन पर रोक भी लगायी गयी. वर्ष 2004 में ऑस्ट्रेलिया में दिये गये भाषण को लेकर बावेला मचा जिसमें उन्होंने कथित तौर पर अन्य धर्मों से इसलाम को बेहतर बताते हुए दावा किया था कि सिर्फ इसलाम ही सही मायनों में स्त्रियों को समानता प्रदान कर सकता है. ब्रिटेन के वेल्स में 2006 के उनके दौरे का विरोध स्थानीय सांसद ने किया था. उक्त सांसद ने नाइक को ‘घृणा फैलानेवाला’ बताया था. वेल्स के मुसलिम कौंसिल ने नाइक के बोलने और लोगों के उनको सुनने के अधिकार की बात की थी. आखिर नाइक ने वहां भाषण दिया, पर उनकी अभिव्यक्ति संतुलित रही थी.

जून, 2010 में ब्रिटेन और कनाडा ने उनके आगमन पर पाबंदी लगा दी. ब्रिटेन की गृह मंत्री थेरेसा मे ने उनके भाषणों के आधार पर कहा था कि उनका व्यवहार अस्वीकार्य है. इस फैसले को अदालत में चुनौती दी गयी थी, पर नाइक को वहां भी निराशा ही हाथ लगी.

उसी साल कनाडा में बसे पाकिस्तानी मूल के मुसलिम नेता तारेक फतेह ने सांसदों के बीच अभियान चला कर नाइक पर पाबंदी लगवा दी थी.

वर्ष 2012 में नाइक ने मलयेशिया में चार बड़ी सभाएं की और भाषण दिये. अगले साल उन्हें वहां के एक बड़े सम्मान से भी नवाजा गया था, लेकिन फिलहाल उनका नाम उन 16 मुसलिम विद्वानों में है, जिन्हें मलयेशिया में घुसने पर पाबंदी है. वहां उनके चैनल पीस टीवी पर भी प्रतिबंध है.

नाइक के चर्चित बयान

1. बिन लादेन और आतंकवाद

अगर बिन लादेन इसलाम के दुश्मनों से लड़ रहा है, तो मैं उसके साथ हूं. अगर वह अमेरिका- आतंकी, सबसे बड़ा आतंकी- को आतंकित कर रहा है, मैं उसके साथ हूं. हर मुसलमान को आतंकवादी होना चाहिए. अगर वह आतंकवादी को आतंकित कर रहा है, तो वह इसलाम का पालन कर रहा है. वह ऐसा कर रहा है या नहीं, यह मैं नहीं जानता हूं, लेकिन आपको मुसलिम होने के नाते यह जानना चाहिए कि बिना जांच-परख के आरोप लगाना भी गलत है.

हालांकि, नाइक ने अपनी सफाई में कहा है कि उसके बयान को संदर्भों से काट कर पेश किया है और गलत मतलब निकाला गया है.

2. सेक्स के लिए गुलाम रखना

यदि आपके पास शादी करने का साधन नहीं है, तो किसी गुलाम महिला से शादी करें और उसे आजादी दें, जैसा कि कुरान में कहा गया है. लेकिन ऐसा करने का अधिकार सिर्फ पुरुषों को है, महिलाओं को नहीं.

3. पत्नी को पीटना

अगर आपका बेटा छत से छलांग लगाना चाहता है, तो आप उसे डांटते हैं. अल्लाह ने पुरुषों को महिलाओं को पीटने की अनुमति दी है, पर पत्नी की हल्की पिटाई करनी चाहिए. जहां तक परिवार का सवाल है, पुरुष उसका मुखिया होता है. इसलिए उसे यह अधिकार है.

4. इसलामिक देशों में अन्य धर्मों के प्रचार पर पाबंदी

मुसलिम देशों में अन्य धर्मों के प्रचार और पूजा स्थल बनाने पर रोक है. किसी स्कूल में अलग-अलग समझ रखनेवाले शिक्षकों को रखने से भ्रम पैदा हो सकता है. जहां तक धर्मों का सवाल है, हम (मुसलिम) जानते हैं कि ईश्वर की नजर में सिर्फ इसलाम भी ही सच्चा धर्म है.

5. समलैंगिकता गलत है

समलैंगिक समुदाय (एलजीबीटी) एक पाप से भरे मानसिक समस्या से ग्रस्त है. ऐसा इसलिए है कि वे पॉर्नोग्राफिक फिल्में देखते हैं. इसके लिए टेलीविजन चैनल भी दोषी हैं.

6. चोरी के लिए हाथ काटना उचित

गलती की सजा मिलनी चाहिए, इस लिहाज से चोरी के अपराध के लिए हाथ काटना गलत नहीं है. अमेरिका को भी अपने अपराध कम करने के लिए इस सजा का प्रावधान करना चाहिए.

7. संगीत एक पाप है

संगीत आदमी को नशे से भर देता है और यह अल्कोहल जैसा है. जिन मुसलिम विद्वानों ने संगीत को पाप नहीं कहा है, वे मुसलमानों को गुमराह कर रहै हैं.

8. डार्विन का सिद्धांत बकवास

जो डार्विन ने कहा है, वह सिर्फ एक सिद्धांत है. ऐसी कोई किताब नहीं है जिसमें इसे ‘द फैक्ट ऑफ इवोल्यूशन’ कहा जाता हो, सभी किताबें इसे ‘थ्योरी ऑफ इवोल्यूशन’ ही कहती हैं.

पवित्र कुरान में एक भी ऐसा बयान नहीं है, जिसे विज्ञान ने गलत साबित किया हो. अवधारणाएं कुरान के विरुद्ध जाती हैं, सिद्धांत कुरान के विरुद्ध जाते हैं. पवित्र कुरान में उल्लिखित ऐसा एक भी वैज्ञानिक तथ्य नहीं है जो स्थापित विज्ञान के विरुद्ध जाता है, यह सिद्धांत के विरुद्ध जा सकता है.

नाइक खतरनाक, लेकिन उनके खिलाफ ठोस सबूत नहीं- दिनेश उन्नीकृष्णन, टिप्पणीकार

जाकिर नाइक आतंकवादी नहीं हैं. अभी तक कोई ऐसा ठोस सबूत भी नहीं है जो भारत में या बाहर के किसी आतंकी गतिविधि में उनके सीधे शामिल होने की बात को पुष्ट करे. इस प्रचारक पर अधिक-से-अधिक घृणा फैलानेवाले बयान देने के लिए मुकदमा दायर किया जा सकता है. लेकिन यहीं नाइक मुसलिम आबादी समेत भारत के लिए खतरनाक हो जाते हैं. नाइक संभावित आतंकी युवाओं के दिमाग में तालीबानी दर्शन भर कर अपना प्रभाव बढ़ाते हैं. निश्चित रूप से यह सेकुलर समाज के लिए किसी ‘आतंकवादी’ की तुलना में कहीं अधिक खतरनाक है. (फर्स्टपोस्ट डॉट कॉम में)

चरमपंथ को बढ़ावा दे रहे हैं नाइक

ये ऐसे तत्व हैं, जो लोगों की पहचान पर ही सवाल खड़ा करते हैं

प्रो शम्सुल इस्लाम

राजनीतिक विचारक

दुनियाभर में सबसे शुद्ध धर्म कौन है, इसको लेकर दावा करनेवालों की हालिया कुछ वर्षों से एक बाढ़ सी आयी हुई है, कि मेरा धर्म ही सबसे अच्छा और सबसे शुद्ध है. आज हर जगह बाबा, कठमुल्ला, साधु-संत पैदा हो गये हैं, जो धर्मों के बारे में नये-नये प्रवचन-भाषण कर रहे हैं.

जाकिर नाइक भी इन्हीं में से एक हैं, जो यह बता रहे हैं कि असली इसलाम क्या है, असली मुसलमान कौन है. यह एक खतरनाक सोच है. इससे समाज में कई तरह के विरोधाभास पैदा होते हैं. यह ठीक उसी तरह है, जैसे हिंदुत्व के पैरोकार लोग कहते हैं कि कौन असली हिंदू है और कौन नहीं है या मुसलमानों को पाकिस्तान चले जाना चाहिए वगैरह-वगैरह. ये ऐसे तत्व हैं, जो लोगों की पहचान पर ही सवाल खड़ा करते हैं, जहां भारतीय होने का मतलब नहीं रह जाता, बल्कि असली हिंदू या असली मुसलमान होने का ढिंढोरा पीटा जाता है. मैं जाकिर नाइक को कई सालों से देखता-सुनता आ रहा हूं.

वे बातचीत में उदार तो दिखते हैं, लेकिन बीच-बीच में वे अपने विचारों को लेकर आक्रामक हो जाते हैं. मसलन, वे कहते हैं कि शिया तो मुसलमान हैं ही नहीं. अब सवाल यह है कि वे कौन हाेते हैं किसी दूसरे धर्म-वर्ग-समुदाय के बारे में कुछ तय करनेवाले? अपने धर्म को ही सर्वश्रेष्ठ बताने और खालिस इसलाम की बात करके जाकिर नाइक चरमपंथ की भावना को ही पैदा कर रहे हैं.

यह बहुत ही घातक है. इसलाम धर्म अरब में पैदा हुआ और इसकी प्रमुख किताबें अरबी भाषा में हैं. फिर भी, यह दुनियाभर में हर कहीं यानी वहां भी फैल गया, जहां अरबी भाषा नहीं बोली जाती. इसलाम जहां भी गया, इसमें इसके मूलभूत पांच फर्ज को छोड़ कर, वहां की तमाम स्थानीय चीजों का भी समावेश होता रहा. किसी भी धर्म का विस्तार सिर्फ उसके मूलभूत सिद्धांतों पर ही नहीं, बल्कि देशकाल-परिस्थिति पर भी निर्भर करता है, यह चीज जाकिर नाइक शायद नहीं समझते.

लेकिन यहां एक और बात महत्वपूर्ण है कि जाकिर नाइक काे लेकर हर जगह एक प्रकार का शाेर मचा हुआ है, जबकि हिंदुत्व की रोटी सेंकनेवाले कुछ लोग जाकिर नाइक से भी भयानक खतरनाक बातें करते हैं. ये सब चीजें हमारे देश के लिए खतरनाक हैं.

(बातचीत पर आधारित)

नाइक जैसे लोगों की बात सुनने की जरूरत नहीं

मौलाना कल्बे आजाद, मजलिस-ए-उलमा-ए-हिंद

मुसलमान समुदाय को वहाबी नेताओं और जाकिर नाइक जैसे धार्मिक प्रचारकों की बातों को अनसुना कर देना चाहिए. ऐसे नेता चरमपंथी भाषा में बोलते हैं, जिससे आतंकवाद को प्रोत्साहन मिलता है.

इस कारण से इन्हें किसी भी रूप में स्वीकार नहीं किया जा सकता है. हमारे समुदाय को आतंकवाद के विरुद्ध हरसंभव शांतिपूर्ण संघर्ष करना चाहिए. ज्यादातर आतंकी गतिविधियों के तार वहाबियों से जुड़े पाये गये हैं. नाइक युवाओं में खूब लोकप्रिय हैं, लेकिन वे उत्तेजित करते हैं. बांग्लादेश के आतंकी हमले में गिरफ्तार युवाओं ने कहा है कि वे नाइक से प्रेरित थे. इसलिए, समुदाय को हर नेता पर नजर रखनी चाहिए. (द टाइम्स ऑफ इंडिया में)

आतंक फैलानेवालों का धर्म से लेना-देना नहीं

आमिर खान, अभिनेता

आतंकवादियों और धर्म का आपस में कोई लेना-देना नहीं है क्योंकि धर्म सभी को प्रेम और शांति सिखाता है. जो लोग आतंकवाद फैलाते हैं, और आतंकी गतिविधियों को अंजाम देते है, उनका धर्म से कोई संबंध नहीं है, चाहे वह कोई भी धर्म हो. (इंडिया डॉट कॉम में)

हो रही मुसलमानों की घेराबंदी

प्रो अख्तरुल वासे इसलामी विद्वान

इसलाम किसी भी दूसरे धर्म को बुरा कहने का पक्षधर ही नहीं है, लेकिन

जाकिर नाइक की तकरीर (भाषण) में मजहबी बातों को बताने की उनकी शैली और उनके अंदाज से मैं सहमत नहीं हूं. खासकर, दूसरे धर्मों के बारे में वे जिस तरह की बातें कहते हैं, मैं उससे जरा भी सहमत नहीं हूं. अपनी बात कहने के लिए उन्हें शालीन तो होना ही चाहिए और किसी भी धर्म के बारे में कुछ भी कहने से बचना चाहिए.

लेकिन, उनके बारे में कही जा रही यह बात कि वे बेहद भड़काऊ तकरीर देते हैं, ठीक नहीं है, क्योंकि मैंने खुद उनकी तकरीरों के कुछ वीडियोज देखे हैं. वीडियोज में मैंने जहां तक उन्हें सुना और समझा है, उससे मुझे यही लगता है कि जाकिर नाइक किसी प्रकार की हिंसात्मक प्रवृत्ति को बिल्कुल भी प्रोत्साहित नहीं करते हैं. वे आतंक का बढ़ावा देने जैसी बात नहीं करते हैं.

हां, उनकी तकरीर का अंदाज थोड़ा तल्ख जरूर होता है. दूसरी बात यह है कि जाकिर नाइक मुनाजरेबाजी (बहस करना) करते हैं, लेकिन यह दौर मुनाजरेबाजी का नहीं है. मेरा यह मानना है कि यह आधुनिक दौर और इसलाम, दोनों ही इस मुनाजरे के पक्ष में नहीं हैं, बल्कि मुकालमे (संवाद) के पक्ष में हैं. दरअसल, धार्मिक मसलों पर बहसों में हर धर्म के लोग अपने ही धर्म को सर्वश्रेष्ठ बताने और उसका प्रभुत्व जमाने की बात करते हैं. इसलाम एक संवाद का धर्म है. बेवजह की बातों को लेकर बहस नहीं होनी चाहिए, बल्कि स्वस्थ संवाद के जरिये ही सारे मसलों का हल निकाला जाना चाहिए. इसलाम किसी भी दूसरे धर्म को बुरा कहने का पक्षधर ही नहीं है.

दरअसल, यह सोशल मीडिया का दौर है. किसी व्यक्ति के किसी सोशल साइट पर हजारों-लाखों क्या करोड़ों की संख्या में फॉलोवर हो सकते हैं. दुनियाभर में हजारों-लाखों लोग सोशल साइट्स पर एक-दूसरे के संपर्क में हैं. ऐसे में यह नहीं कहा जा सकता कि अगर किसी हिंसा या दहशतगर्दी को अंजाम देनेवाला कोई व्यक्ति सोशल साइट पर जाकिर नाइक का फाॅलोवर है, तो नाइक का आतंकियों से कोई रिश्ता है. यह तो कहीं का सिरा कहीं और सिरे से जोड़ने जैसा ही है. ऐसा लगता है कि इस पूरे मामले से एक बार फिर मुसलानों की घेराबंदी करने के लिए जाकिर नाइक के रूप में लोगों ने एक नया चेहरा खोज लिया गया है.

(वसीम अकरम से बातचीत पर आधारित)

नफरत का डॉक्टर

अनुराग चतुर्वेदी

वरिष्ठ पत्रकार

जा किर नाइक यूं तो प्रशिक्षित डॉक्टर है और महाराष्ट्र के रत्नागिरी के अमीर परिवार से संबंध रखता है, पर उसकी असली पहचान इसलाम के दार्शनिक, ऐतिहासिक और अलग-अलग पंथों के बारे में उसकी व्याख्या से बनी है. यह महज संयोग हाे सकता है कि जाकिर नाइक और पाकिस्तान में छुपे बैठे आतंकवादी दाऊद इब्राहिम एक ही इलाके रत्नागिरी से आते हैं और मुंबई में भी जाकिर नाइक उसी डोंगरी इलाके में अपनी संस्था चलाता है, जहां आज भी दाऊद का घर-बार है. जाकिर नाइक ‘फूड प्रॉसेस’ का एक बड़ा व्यापारी है, मछली पालन, आम के बगीचे और कोल्ड स्टोरेज के मालिक जाकिर नाइक की कंपनी ‘नाइक एंड कंपनी’ बड़ा कारोबार करनेवाली कंपनी के रूप में जानी जाती है.

पेशेवर डॉक्टर जाकिर नाइक की सबसे बड़ी ताकत उसकी ‘स्मृति’ है. उसे कुरान की आयतें और हदीस मुंह जबानी याद है और टीवी कार्यक्रम में उसकी सबसे बड़ी शक्ति है. मुंबई के सौमय्या कॉलेज के विशाल प्रांगण में वर्ष में तीन-चार बहुत बड़ी सभाएं करनेवाला जाकिर नाइक सूरत में जन्मे अहमद दीदात से प्रभावित हुआ. दीदात बाद में दक्षिण अफ्रीका में बस गया. दीदात के आतंकवादी संपर्क भी रहे हैं और वह आतंकवादी ओसामा बिन लादेन से भी मिला था.

जाकिर नाइक आर्थिक रूप से और अंतरराष्ट्रीय समर्थन की दृष्टि से सऊदी अरब से जुड़ा हुआ है. सऊदी अरब की सरकार ने उसे अपने देश का सबसे बड़े खिताब से नवाजा है. साथ ही वह शुद्ध इसलाम का भी पैरोकार है, जिसके कारण यूरोप, अमेरिका, इंडोनेशिया और मलेशिया में उसका बहुत बड़ा समर्थक हिस्सा है. बांग्लादेश के कैफे में हुए आतंकी हमले में मारे गये आतंकवादी के फेसबुक परिचय से मालूम पड़ा कि वह जाकिर नाइक का समर्थक था.

मुंबई पुलिस को 2006 में ही जाकिर नाइक की गतिविधियों की जानकारी मिली थी, जब 2006 में मुंबई में हुए रेल बम धमाकों के एक आरोपी ने स्वीकार किया था कि वह जाकिर नाइक के विचारों का समर्थक है.

महाराष्ट्र सरकार ने जाकिर नाइक के भाषणों की सैकड़ों सीडी, वीडियो और टीवी पर दिये गये भाषणों के तथ्यों, बातों को जांचने का आदेश दिया है. साथ ही उसे मिलनेवाले धन के स्रोत का भी पता करने को कहा गया है.

पंद्रह वर्ष पहले जब सेटेलाइट चैनलों की शुरुआत हुई, तब मनोरंजन, समाचार, खेल, संगीत चैनलों के साथ-साथ धार्मिक चैनलों की भी शुरुआत हुई. हिंदू धर्म के भी कई संप्रदाय, कई विचार चैनलों के साथ-साथ इसलाम के भी चैनल शुरू हुए. अंगरेजी, अरबी, उर्दू इनकी प्रमुख भाषा बनी.

जाकिर नाइक का पीस चैनल जल्दी ही ‘अति शुद्धतावादी’ चैनल बन गया. जाकिर नाइक अहले-हदीस विचार के समूह को मानते हैं. वे सलाफी इसलाम का प्रचार करते हैं और इसलाम में दूसरे धर्मों के लोगों को शामिल करवाने की मुहिम भी चलाते हैं.

दुनियाभर में आर्थिक उदारीकरण के बाद कामकाजी, मजदूर और मध्यवर्ग में आर्थिक सवाल पीछे छूट गये हैं और धार्मिक कट्टरता आगे बढ़ गयी है. भावनात्मक सवालों को शुरू से इसलामी समाज में प्रमुखता मिली है.

जाकिर नाइक के कार्यकलाप को काले-सफेद में फर्क करके नहीं देखा जा सकता है. शुद्धतावादी आंदोलन कई बार अतिवादी हो जाते हैं. जाकिर अली जिन विचारों को प्रतिपादित करते हैं, उनसे शिया और सुन्नी संप्रदाय दोनों ही नाखुश हैं. वे पैगम्बर साहब, खलीफाओं की परंपरा में अली के बाद यजीद का समर्थन करते हैं.

यजीद को मुसलिम इतिहासकार खलनायक मानता है. ऐसे में सुन्नी और शिया दोनों ही जाकिर नाइक के खिलाफ पाबंदी लगाने की बात करते हैं. यही कारण है कि पुलिस ने डोंगरी (दक्षिण मुंबई) स्थित इसलामिक रिसर्च फाउंडेशन के बाहर अपनी सुरक्षा बढ़ा दी है, क्योंकि रजा अकादमी ने जाकिर नाइक की संस्था के खिलाफ प्रदर्शन करने का एलान किया था.

जाकिर नाइक के विचार, इजराइल का समर्थन करते-करते हिटलर के समर्थन में जाकर रुकते हैं. वे ‘मैरी क्रिसमस’ कहने के भी खिलाफ हैं. शियाओं से वे नफरत करते हैं. उनके विचार मुख्यधारा के इसलाम से नहीं जुड़े हैं. वे भारत में मौजूद अन्य सांप्रदायिक दलों के लिए उत्प्रेरक हैं.

वे दोनों एक साथ पनपते हैं, प्रसिद्धि पाते हैं, आर्थिक ताकत बनाते हैं और एक-दूसरे पर निर्भर रह मदद करते हैं. जाकिर नाइक के खिलाफ मुंबई पुलिस के सामने एक नफरत फैलानेवाला मामला दर्ज है, जिसमें उन्होंने हिंदू देवी-देवताओं के खिलाफ कई बातें कही थीं.

जाकिर सुन्नी इसलाम के भीतर सबसे ज्यादा कट्टर शुद्धतावादी सलाफी (पवित्र पूर्वज) आंदोलन के प्रचारक हैं. यह आंदोलन वहाबी आंदोलन ने 18वीं शताब्दी में इसे प्रारंभ किया था. यह शरीयत कानून का पक्षधर है. सऊदी अरब पहला राष्ट्र है, जो वहाबी कानून मानता है. यह आंदोलन मूर्ति पूजा के भी खिलाफ है. भारत में यह अहले-हदीस के नाम से जाना जाता है.

पूरे भारत में यह मौजूद है और इसके 2-3 करोड़ समर्थक हैं. भारत में देवबंदी और बरेलवी समुदाय इनके मुकाबले कम कठोर हैं. देवबंदी, सलाफी के सबसे नजदीक हैं, किंतु समय के चलते देवबंदी आधुनिक विचारों से जुड़ गये हैं, जबकि बरेलवी और सूफी पंथ के अनुयायी फकीरों और संतों में विश्वास रखते हैं और दरगाह व मजारों पर जाते हैं. 2009 के आकलन के हिसाब से दुनियाभर में 25 लाख सलाफी जेहादी थे और 50 मिलियन इनके समर्थक हैं.

इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता है कि जाकिर एक पुराने शुद्धतावादी इसलामी सोच के प्रचारक हैं. उनके समर्थक पुलिस के रडार पर भी रह चुके हैं. उन्होंने टीवी के जरिये भावनात्मक प्रचार भी किया है और नफरत भी फैलायी है. ऐसे में पुलिस जांच के बाद उन पर होनेवाली कार्रवाई का इंतजार है. महाराष्ट्र में दुर्भाग्य से दोनों ही धर्मों के चरमपंथी न केवल नफरत फैला रहे हैं, बल्कि एक-दूसरे के कारण अपना प्रभाव क्षेत्र भी बढ़ा रहे हैं.

ऐसे में यदि कार्रवाई होती है, सरकार फिर से अपना रुतबा बढ़ा पायेगी. साथ ही भारत यदि इस मौके पर सऊदी अरब के दबाव में नहीं आती है और उसकी तेल और आर्थिक शक्ति का नकार देती है, तो नफरत के डॉक्टर को कानून की गिरफ्त में लेना आसान होगा. डॉक्टर जाकिर के बारे में खतरे की घंटी बांग्लादेश में जरूर बजी हो, पर उनके विचार और उससे बननेवाला वातावरण पूरी दुनिया के लिए खतरनाक और हिंसक है.

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