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भाजपा, कांग्रेस, सपा, बसपा – सबकी सत्ता में भागीदार रह चुके नरेश अग्रवाल को कितना जानते हैं आप…!

कहते हैं कि राजनीति में कोर्इ किसी का स्थायी दोस्त या दुश्मन नहीं होता. यह बात एक बार फिर से साबित हो गयी. आैर इस बार जरिया बने उत्तर प्रदेश के कद्दावर नेता नरेश अग्रवाल. यूं तो नरेश अग्रवाल पार्टियां बदलने में उस्ताद माने जाते हैं, लेकिन इस बार उन्होंने एक एेसी पार्टी का दामन […]

कहते हैं कि राजनीति में कोर्इ किसी का स्थायी दोस्त या दुश्मन नहीं होता. यह बात एक बार फिर से साबित हो गयी. आैर इस बार जरिया बने उत्तर प्रदेश के कद्दावर नेता नरेश अग्रवाल. यूं तो नरेश अग्रवाल पार्टियां बदलने में उस्ताद माने जाते हैं, लेकिन इस बार उन्होंने एक एेसी पार्टी का दामन थाम लिया है जिसके खिलाफ वह कुछ दिन पहले तक आग उगलते थे.

जी हां, उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी सपा से नाराज नरेश अग्रवाल भारतीय जनता पार्टी में शामिल हो चुके हैं. बताया जाता है कि सपा से राज्यसभा का टिकट नहीं मिलने से वह नाराज थे. नरेश अग्रवाल के लिए यह कोई नयी बात नहीं है. उनका राजनीतिक सफर ऐसी कई घटनाओं से भरा पड़ा है.

1951 मेंउत्तर प्रदेश के हरदोई जिले में जन्मे नरेश अग्रवाल ने लखनऊ विश्वविद्यालय से लॉ और साइंस में ग्रेजुएशन की डिग्री ली. उत्तर प्रदेश कीराजनीति में थैलीशाह राजनेता की पहचान रखनेवाले नरेश अग्रवाल हरदोई से सात बार विधायक चुने जा चुके हैं. कहतेहैं कि हरदोई की आठ विधानसभा क्षेत्रों में उनकी मजबूत पकड़ है. इन्हें सियासी जमीन अपने पिता की बदौलत मिली. इनके पिता एससी अग्रवाल कांग्रेस से सांसद थे.

नरेश अग्रवाल कीछवि एक अवसरवादी नेता के रूप में बन गयी है. वे पूर्व में बसपा, भाजपा, कांग्रेस, सपासेहोते हुए वह अब फिर से भाजपा में आ गये हैं. प्रदेश की राजनीति में नरेश अग्रवाल एक बड़ा चेहरा हैं, लेकिन उनकी छवि एक बड़े दलबदलू नेता के रूप में भी बनी हुई है. नरेश अग्रवाल प्रदेश के सभी बड़े दलों को अपनी सेवाएं दे चुके हैं.

यही नहीं, 1980 से सरकार चाहे किसी भी पार्टी की रही हो,नरेश अग्रवाल या उनके बेटे मंत्री जरूर बने. नरेश अग्रवाल के बारे में यह बात कही जाती है कि वे राजनीति की हवा का रुख पहचानने में माहिर हैं.

1988-89 में जबउत्तर प्रदेश में कांग्रेस कमजोर पड़ रही थी, तब नरेश अग्रवाल ने उसका साथ छोड़ दिया. 1989 में कांग्रेस छोड़ने के बाद नरेश अग्रवाल ने 1997 अखिल भारतीय लोकतांत्रिक कांग्रेस का गठन किया और कल्याण सिंह, रामप्रकाश गुप्ता और राजनाथ सिंह सरकार में मंत्री भी बने.

1998 में मुलायम सिंह की सरकार में भी नरेश अग्रवाल मंत्री बने. 2007 में बहुजन समाज पार्टी की सरकार बनने के बाद वे सपा छोड़कर मायावती के साथ हो लिये. नरेश अग्रवाल ने 2008 में बसपा ज्वाइन की. हालांकि बसपा के साथ उनकी दोस्ती तीन साल ही चली.

2012 केउत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों से पहले उन्होंने बसपा छोड़कर सपा का दामन थाम लिया. 2011 में सपा में शामिल होने वाले नरेश अग्रवाल उस समय भी राज्यसभा सांसद थे. उन्होंने बेटे नितिन अग्रवाल को टिकट न मिलने पर बसपा छोड़करसपा का दामन थामा था और अब भाजपा के साथ हो लिये हैं.

देखना है कि ‘व्हिस्की में विष्णु और रम में राम’ देखने वाले नरेश अग्रवाल का भाजपा के साथ याराना कितने दिनों तक चलता है.

Prabhat Khabar Digital Desk
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