रांची : भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की कद्दावर नेता राजनीति की इस ऊंचाई तक पहुंचने वालीं एकमात्र महिला थीं, जो जेपी आंदोलन की उपज थीं. 70 के दशक के जयप्रकाश नारायण के आंदोलन ने देश को कई बड़े नेता दिये. सुषमा स्वराज भी उसी आंदोलन की उपज थीं. वह इस आंदोलन की एकमात्र महिला थीं, जिन्होंने राजनीति में न केवल नाम कमाया, ऊंचे पदों को सुशोभित किया, बल्कि सभी पार्टियों में इज्जत और प्रतिष्ठा भी पायी.
देश और देशवासियों के प्रति उनकी निष्ठा ही थी कि उनके निधन से देश की सभी राजनीतिक पार्टियों के नेता दुखी हैं. उनके सीनियर नेता से लेकर साथी तक अपने आंसू नहीं रोक पा रहे. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी खुद बुधवार को अपनी सुषमा दीदी को उनके आवास पर श्रद्धांजलि देने पहुंचे, तो अपनी भावनाओं को छिपा न सके. सुषमा स्वराज को तराशने वाले लालकृष्ण आडवाणी भी भावुक हो गये थे. भाजपा के विचारों की धुर विरोधी पार्टी समाजवादी पार्टी (सपा) के नेता रामगोपाल वर्मा सुषमा को श्रद्धांजलि देने के बाद रो पड़े.
एक बेहद अनुशासित राजनीतिक कार्यकर्ता सुषमा स्वराज ने अपने जीवन में कई कीर्तिमान गढ़े, लेकिन उनकी चर्चा बहुत कम हुई. मात्र 25 साल की उम्र में वह हरियाणा की मंत्री बनीं. दिल्ली मुख्यमंत्री बनने वाली वह पहली महिला थीं. किसी राष्ट्रीय पार्टी की पहली महिला प्रवक्ता थीं सुषमा स्वराज. लोकसभा में विपक्ष की पहली महिला नेता बनने का गौरव भी सुषमा स्वराज को प्राप्त है. इतना ही नहीं, वह देश की पहली महिला विदेश मंत्री भी बनीं. विदेश मंत्री के रूप में लोगों की मदद करने का उन्होंने एक कीर्तिमान बनाया.
कहा जाता है कि रात के दो बजे भी यदि किसी ने सुषमा स्वराज से मदद मांगी, तो उन्होंने बिना किसी आनाकानी के, तत्काल उसकी मदद की. जनता पार्टी हो या भारतीय जनता पार्टी, हर जगह उन्होंने एक अनुशासित कार्यकर्ता के रूप में काम किया. पार्टी ने जो भी जिम्मेदारी दी, उसका बखूबी निर्वहन किया. उन्होंने हमेशा पार्टी के हित को अहम माना. कभी भी अपने कैरियर की चिंता नहीं की. पार्टी ने जब भी, जो भी कहा, सुषमा स्वराज ने उस पर कभी कोई सवाल खड़े नहीं किये. उन्होंने सिर्फ उस काम को पूरा करने के बारे में सोचा.

