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पासवान : मंझे हुए राजनेता, जिन्होंने छह प्रधानमंत्रियों के साथ किया काम

नयी दिल्ली/पटना : राजनीतिक माहौल को भांप लेने की काबिलियत रखने वाले लोक जनशक्ति पार्टी के प्रमुख रामविलास पासवान के नाम छह प्रधानमंत्रियों की कैबिनेट में मंत्री के तौर पर काम करने की अनूठी उपलब्धि जुड़ी है. पासवान ने बृहस्पतिवार को कैबिनेट मंत्री के तौर पर शपथ ली. पासवान (72) के राजनीतिक सफर की शुरुआत […]

नयी दिल्ली/पटना : राजनीतिक माहौल को भांप लेने की काबिलियत रखने वाले लोक जनशक्ति पार्टी के प्रमुख रामविलास पासवान के नाम छह प्रधानमंत्रियों की कैबिनेट में मंत्री के तौर पर काम करने की अनूठी उपलब्धि जुड़ी है. पासवान ने बृहस्पतिवार को कैबिनेट मंत्री के तौर पर शपथ ली. पासवान (72) के राजनीतिक सफर की शुरुआत 1960 के दशक में बिहार विधानसभा के सदस्य के तौर पर हुई और आपातकाल के बाद 1977 के लोकसभा चुनावों से वह तब सुर्खियों में आए, जब उन्होंने हाजीपुर सीट पर चार लाख मतों के रिकार्ड अंतर से जीत हासिल की.

1989 में जीत के बाद वह वीपी सिंह की कैबिनेट में पहली बार शामिल कियेगये और उन्हें श्रम मंत्री बनाया गया. एक दशक के भीतर ही वह एचडी देवगौडा और आईके गुजराल की सरकारों में रेल मंत्री बने. 1990 के दशक में जिस ‘जनता दल’ धड़े से पासवान जुड़े थे, उसने भाजपा की अगुवाई वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) का साथ दिया और वह संचार मंत्री बनायेगये और बाद में अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व वाली सरकार में वह कोयला मंत्री बने.

बाबू जगजीवन राम के बाद बिहार में दलित नेता के तौर पर पहचान बनाने के लिए उन्होंने आगे चलकर अपनी लोक जनशक्ति पार्टी (लोजपा) की स्थापना की. वह 2002 में गुजरात दंगे के बाद विरोध में राजग से बाहर निकल गये और कांग्रेस नीत संप्रग की ओर गये. दो साल बाद ही सत्ता में संप्रग के आने पर वह मनमोहन सिंह की सरकार में रसायन एवं उर्वरक मंत्री नियुक्त कियेगये.

संप्रग-दो के कार्यकाल में कांग्रेस के साथ उनके रिश्तों में तब दूरी आ गयी जब 2009 के लोकसभा चुनाव में अपनी पार्टी की हार के बाद उन्हें मंत्री पद नहीं मिला. पासवान अपने गढ़ हाजीपुर में ही हार गए थे. 2014 के लोकसभा चुनाव के पहले भाजपा ने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के जदयू के अपने पाले में नहीं रहने पर पासवान का खुले दिल से स्वागत किया और बिहार में उन्हें लड़ने के लिए सात सीटें दी. लोजपा छह सीटों पर जीत गयी.

पासवान, उनके बेटे चिराग और भाई रामचंद्र को भी जीत मिली थी. नरेंद्र मोदी के कार्यकाल में खाद्य, जनवितरण और उपभोक्ता मामलों के मंत्री के रूप में पासवान ने सरकार का तब भी खुलकर साथ दिया जब उसे सामाजिक मुद्दों पर आलोचना का सामना करना पड़ा. जन वितरण प्रणाली में सुधार लाने के अलावा दाल और चीनी क्षेत्र में संकट का भी प्रभावी तरीके से उन्होंने समाधान किया. वह हालिया लोकसभा चुनाव नहीं लड़े थे. उनके छोटे भाई और बिहार के मंत्री पशुपति कुमार पारस हाजीपुर से जीते. पासवान अब संभवत: बिहार से राज्यसभा जाने वाले हैं.

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Prabhat Khabar Digital Desk
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