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FIFA World Cup : फुटबॉल महाकुंभ की गुप्तगाथा: कैसे मिली रूस को फीफा की मेजबानी

केन बेनसिंगर, वरिष्ठ पत्रकार, अमेरिका तारीख 8 जून, 2010. तीन दिन बाद ही विश्वकप फुटबॉल के महाकुंभ के लिए विश्व की सबसे अधिक रंगारंग और रोमांचक स्पर्धा की दक्षिण अफ्रीका में शुरुआत होनेवाली थी. पर उस दिन जोहानिसबर्ग के सैंडटन कन्वेंशन सेंटर के एक बैठक कक्ष के बाहर रूस एवं इंग्लैंड के प्रतिनिधि अंदर चल […]

केन बेनसिंगर, वरिष्ठ पत्रकार, अमेरिका

तारीख 8 जून, 2010. तीन दिन बाद ही विश्वकप फुटबॉल के महाकुंभ के लिए विश्व की सबसे अधिक रंगारंग और रोमांचक स्पर्धा की दक्षिण अफ्रीका में शुरुआत होनेवाली थी. पर उस दिन जोहानिसबर्ग के सैंडटन कन्वेंशन सेंटर के एक बैठक कक्ष के बाहर रूस एवं इंग्लैंड के प्रतिनिधि अंदर चल रही बैठक की समाप्ति की प्रतीक्षा बड़ी बेकरारी से कर रहे थे, ताकि वे 2018 के विश्वकप की मेजबानी के लिए अपने देश के दावे के पक्ष में इस बैठक के सदस्यों के साथ पैरोकारी कर सकें.

कौनककैफ और जैक वार्नर
अंदर कमरे में उत्तर एवं केंद्रीय अमेरिका के अलावा कैरीबियाई देशों के विभिन्न राष्ट्रीय फुटबॉल संघों से उनके उस महासंघ के लिए निर्वाचित प्रतिनिधियों की बैठक चल रही थी, जो फुटबॉल जगत में अपने संक्षिप्त नाम ‘कौनककैफ’ से अधिक मशहूर है. दरअसल, फीफा (फेडरेशन ऑफ इंटरनेशनल फुटबॉल एसोसिएशन) के 208 सदस्य, जो अपने-अपने देश में फुटबॉल संघों के प्रमुख होते हैं, मुख्यतः छह महासंघों में विभक्त हैं और कौनककैफ इनमें से सिर्फ एक है. मगर 35-सदस्यीय यह महासंघ अंतरराष्ट्रीय फुटबॉल की जटिल सियासी चालों के लिहाज से उनमें सर्वाधिक प्रभावशाली माना जाता है.

इस प्रभाव की एक बड़ी वजह कौनककैफ के तब 67-वर्षीय त्रिनिदादी अध्यक्ष जैक वार्नर की शख्सीयत थी, जो जीवन के प्रारंभ में विषम गरीबी से गुजर इस पद पर पहुंचे अश्वेत फुटबॉल प्रशासक थे. वे एक जन्मजात राजनेता भी थे, जिन्हें अपने सदस्य देशों को एकजुट रखने में महारत हासिल थी. दूसरी ओर, फीफा के अन्य महासंघ गहरी गुटबंदियों के शिकार थे. जहां कौनककैफ के सभी सदस्य फीफा के वार्षिक सम्मेलनों में हमेशा अपने पूर्व निर्णय के अनुरूप एकजुट मतदान किया करते, वहीं बाकी पांचों महासंघ सदस्यों के मत विभिन्न दिशाओं में बिखर अपनी शक्ति खो देते थे.

इस वजह से फीफा में वार्नर की तूती बोला करती थी. फुटबॉल के खेल में पैसे की कोई कमी नहीं है और वार्नर को इस धनबल से अपने समर्थकों को उपकृत करने की कला बखूबी आती थी. नतीजा यह था कि वे फीफा के सर्वोच्च निर्णायक निकाय, उसकी 24-सदस्यीय कार्यकारिणी समिति (‘एक्सको’) के सबसे पुराने सदस्य थे. ज्ञातव्य है कि भविष्य के विश्वकप खेलों की मेजबानी तय करने का एकमात्र अधिकार एक्सको को ही हासिल है. इसलिए मेजबानी हासिल करने का इच्छुक कोई भी देश यह जानता था कि वार्नर का समर्थन हासिल करना अत्यंत अहम है. चूंकि वर्ष 2018 एवं 2022 के विश्वकप फुटबॉल खेलों की मेजबानी तय करने को स्विट्जरलैंड के ज्यूरिक स्थित फीफा के मुख्यालय में होनेवाली एक्सको की वह महत्वपूर्ण बैठक छह महीने बाद ही अपनी तय तिथि 2 दिसंबर, 2010 को संपन्न होने जा रही थी, इसलिए जोहानिसबर्ग में चल रही कौनककैफ की यह बैठक अचानक ही अहम हो उठी.

साल 2018 के इन खेलों की मेजबानी के लिए इंग्लैंड एक गंभीर दावा ठोंकने की तैयारी कर रहा था और इसमें उसका प्रबलतम प्रतिद्वंद्वी केवल रूस था. 2022 के विश्वकप के लिए अन्य देशों के अलावा अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया तथा कतर मुख्य दावेदार थे. रूस को 18 माह पूर्व ही 2014 के विंटर ओलंपिक के आयोजन का जिम्मा मिल चुका था और इस वजह से उसके हौसले बुलंद थे. तेल तथा अन्य प्राकृतिक संसाधनों का धनी यह देश इनकी बढ़ती कीमतों से काफी लाभान्वित होकर पिछले एक दशक के दौरान आर्थिक रूप से सुदृढ़ हो चुका था और यह पूरा देश तथा खासकर इसके नेता व्लादीमिर पुतिन रूस को कभी हासिल रहे महाशक्ति के खोये रुतबे की भरपाई करने का कोई भी मौका हाथ से निकलने देने को तैयार न थे. जब भूमंडल के कोने-कोने में अरबों लोग फुटबॉल के इस महाकुंभ को निहार रहे होते, तो यह मेजबानी पुतिन की छत्रछाया में रूस के पुनरुत्थान की पुष्टि कर रही होती. सबसे बढ़कर, यह रूसी जनता के दिलों में पुतिन के करिश्माई नेतृत्व का सिक्का जमा देती. यही वजह थी कि पुतिन इस मेजबानी को अपनी व्यक्तिगत प्रतिष्ठा का प्रश्न बना चुके थे.

बहरहाल, कौनककैफ के सदस्यों के सामने रूस की दावेदारी पेश कर रहे रूसी फुटबॉल एसोसिएशन के महामंत्री अलेक्सी सोरोकिन को अपनी प्रस्तुति का मौका पहले मिला, मगर ऐन वक्त पर रूसी प्रतिनिधिमंडल द्वारा तैयार प्रेजेंटेशन तकनीकी खराबी की वजह से प्रदर्शित ही नहीं किया जा सका. दूसरी तरफ, इंग्लैंड के दल की प्रस्तुति अत्यंत शानदार रही. इंग्लैंड का प्रेस इससे अत्यंत उत्साहित हो उठा. मगर इस उत्साह में उन्होंने जिस एक अहम तथ्य को नजरंदाज कर दिया, वह यह कि रूसी किसी भी कीमत पर यह मेजबानी हासिल करने का पक्का इरादा कर चुके थे और वे किसी भी हद तक जाने को तैयार थे.

रोमन अब्रामोविच की भूमिका
इस बैठक के दो ही दिन बाद फीफा ने जोहानिसबर्ग के इसी कन्वेंशन सेंटर में एक समारोह आयोजित कर 2018 एवं 2022 दोनों विश्वकप स्पर्धाओं के सभी दावेदारों को फीफा के विश्वभर के सदस्यों से मिलने का मौका दिया. इस सम्मेलन की शुरुआत के कई घंटे पहले ही इंग्लैंड के सुप्रसिद्ध पेशेवर फुटबॉल क्लब चेल्सिया एफसी के अरबपति स्वामी रोमन अब्रामोविच अपने निजी जेट विमान से रूस के वरीयतम उपप्रधानमंत्री इगोर शुवालोव के साथ सम्मेलन में भाग लेने जोहानिसबर्ग पहुंच गये. कभी एक ऑटो मैकेनिक रहे अब्रामोविच के सितारे रूस के पूर्व राष्ट्रपति बोरिस येल्तसिन के वक्त बदले, जब उन्हें येल्तसिन के अंध समर्थन के पुरस्कारस्वरूप रूस की सबसे बड़ी तेल उत्पादक कंपनियों में एक ‘सिबनेफ्ट’ पर स्वामित्व स्थापित करने का अवसर मिल गया.

येल्तसिन के बाद अब्रामोविच ने उनके उत्तराधिकारी पुतिन का दामन थाम लिया, जिन्होंने एक बार फिर अब्रामोविच को समृद्धि के शिखर तक पहुंचने का मौका सुलभ करा दिया. वर्ष 2003 में उसने चेल्सिया एफसी को खरीद लिया और इसके भी पांच वर्षों बाद वह रूस छोड़कर लंदन में जा बसा. मगर तब भी, उसने रूस और रूसी नेताओं से अपने निकट संपर्क बरकरार रखे. साधारणतः शर्मीले स्वभाव के इस शख्स की उस दिन के सम्मेलन में असाधारण उत्साहपूर्ण भागीदारी देखने ही बनती थी, जहां वह रूस के अन्य प्रतिनिधियों के साथ सोत्साह फीफा सदस्यों से मिलता रहा.

तब के ब्रिटिश फुटबॉल स्टार डेविड बेखम इस समारोह में आकर्षण के केंद्र थे और जब सबकी निगाहें उनकी ओर टंगी थीं, तो कब फीफा अध्यक्ष सेप ब्लैटर को अपने साथ लिए अब्रामोविच इस हॉल से निकल गया, इस पर किसी ने ध्यान तक न दिया. इसके पहले, इसी दिन फीफा के सभी सदस्यों के सम्मुख ब्लैटर ने पिछले चार वर्षों के दौरान फीफा के रिकॉर्ड आर्थिक लाभ का जिक्र गर्व से करते हुए बताया था कि इसके बैंक खाते में एक अरब डॉलर की रकम जमा है. उन्होंने इसके प्रत्येक सदस्य एसोसिएशन एवं महासंघ को लाखों डॉलर के बोनस देने की भी घोषणा की. यह इसी खुले संरक्षणवाद का कमाल था, जिसने फीफा के सभी 208 आमसभा सदस्यों को सेप ब्लैटर का दिवाना बना रखा था.

इसी के बाद ब्लैटर ने फीफा अध्यक्ष के अपने चौथे कार्यकाल के लिए अपनी उम्मीदवारी घोषित कर दी. 17 वर्षों तक विश्व के इस महासमृद्ध संगठन के महासचिव तथा बारह वर्षों तक इसके अध्यक्ष का पद सुशोभित करने के बाद सेप ब्लैटर को यह भलीभांति पता था कि इस शक्तिशाली साम्राज्य को किस तरह बरकरार रखा जा सकता है और इसके लिए कई तरह की संधियां-समझौते करने की सामर्थ्य भी उनमें विद्यमान थी. सो, अब्रामोविच के साथ धीमी आवाज में बातें करते हुए वे शीघ्रता से इस कन्वेंशन सेंटर के दूसरे तल्ले पर पहुंच एक निजी बैठक कक्ष में प्रवेश कर गये, जिसके बाद उसके दरवाजे बंद हो गये.

एक गुप्तचर की सहायता
इंग्लैंड इतनी भी गफलत में नहीं था कि विश्वकप की मेजबानी किसी दावेदार को सिर्फ उसके स्टेडियमों, हवाईअड्डों और खेल की गुणवत्ता पर ही मिल जायेगी. इंग्लैंड के समर्थन में लगी हस्तियों तथा कंपनियों ने एक भूतपूर्व जासूस क्रिस्टोफर स्टील को नियुक्त किया, ताकि वह इस दावेदारी हेतु इंग्लैंड के स्पर्धियों की कोशिशों के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी इकठ्ठा कर सके. स्टील ने 1990 के दशक के कई शुरुआती वर्ष मास्को में गुप्त रूप से बिताये थे और बाद में उसे ब्रिटिश खुफिया एजेंसी एमआई6 में रूसी प्रभाग का एक वरिष्ठ अधिकारी बना दिया गया था. लिहाजा, अपनी इस खोज में स्टील को जल्दी ही कई अहम सुराग हासिल कर लेने में देर न लगी.

अप्रैल 2010 में रूसी उपप्रधानमंत्री इगोर सेचिन एक विशालकाय प्राकृतिक गैस उत्पादन परियोजना के विषय में बातें करने कतर गये. उसी माह विश्व कप पर रूसी दावेदारी का दारोमदार वहन करनेवाला दल भी कतर पहुंचा. स्टील के विश्वसनीय सूत्रों ने उसे बताया कि कतर की ये दोनों यात्राएं कोई संयोगवश नहीं हुईं, बल्कि यहां गैस के समझौते के बदले विश्वकप मेजबानी के मतों का एक सौदा संपन्न हुआ है. समझा यह गया कि रूस ने कतर से वादा किया कि ‘एक्सको’ में रूसी प्रतिनिधि जहां 2022 के विश्वकप की मेजबानी के लिए कतर का समर्थन करेंगे, वहीं कतर के प्रतिनिधि 2018 के खेलों के लिए रूस के पक्ष में मतदान करेंगे. इसी बीच, कुछ दूसरे सूत्रों ने यह बताया कि रूसी अधिकारी सेंट पीटर्सबर्ग के सुप्रसिद्ध ‘हरमिटेज संग्रहालय’ से कुछ महत्वपूर्ण पेंटिंग उठाकर कुछ एक्सको सदस्यों को भेंटस्वरूप देने के लिए ले गये हैं. स्टील ने ये सूचनाएं अपने नियोक्ताओं तक पहुंचा दीं.

स्वाभाविक था कि इन खबरों ने इंग्लैंड के दावेदार दल के कान खड़े कर दिये. स्टील का निष्कर्ष साफ था, इंग्लैंड मेजबानी की इस दावेदारी में रूस के मुकाबले कहीं नहीं ठहर रहा था. स्टील को यह बात अच्छी तरह पता थी कि उसके द्वारा रूस तथा फीफा के बारे में प्राप्त सूचनाएं कितनी महत्वपूर्ण हैं, जो एक और पक्ष के लिए अत्यंत मूल्यवान सिद्ध हो सकती हैं. सो उसने ये सूचनाएं अमेरिकी खुफिया एजेंसी, एफबीआई को भी हस्तांतरित कर दीं.

फीफा और विश्वकप की शुरुआत
यह बीसवीं सदी के आरंभ की बात है, जब फुटबॉल के अपेक्षाकृत इस नये खेल की बढ़ती लोकप्रियता के साथ यह मांग भी उठी कि विभिन्न देशों के फुटबॉल क्लबों के बीच मैच आयोजित किये जायें. पर, समस्या यह थी कि विभिन्न देशों में इस खेल के नियम भी भिन्न थे, जिनके बीच समरूपता लाने हेतु किसी एक आयोजक निकाय की जरूरत महसूस की जाती. ब्रिटेन के फुटबॉल एसोसिएशन अपने देश को ही इस खेल का जन्मदाता मानते हुए किसी भी अन्य निकाय की अधीनता स्वीकार करने को तैयार न थे. अंततः यूरोप के सात फुटबॉल खिलाड़ी देशों ने 21 मई 1904 को एक बैठक कर ब्रिटेन के बगैर ही इस निकाय की स्थापना का निर्णय कर लिया. उन्होंने इस अलाभकारी संस्था का नाम इंटरनेशनल फेडरेशन ऑफ फुटबॉल एसोसिएशन (फीफा) रखते हुए इसे इस खेल की सर्वोच्च नियामक संस्था करार दिया.

धीरे-धीरे ब्रिटेन सहित सभी देश इस संस्था के सदस्य बनते हुए इसकी सर्वोच्चता स्वीकार करते गये. ओलिंपिक खेलों में फुटबॉल की अपार लोकप्रियता से प्रभावित अपने सदस्य देशों की बढ़ती मांग के आगे झुककर फीफा ने 1928 में विश्वकप खेल आयोजित करने की योजना बनानी शुरू की. अंततः, 1924 एवं 1928 के ओलिंपिक खेलों में फुटबॉल के चैंपियन रहे उरुग्वे को 1930 के इस प्रथम विश्वकप आयोजन की मेजबानी दे दी गयी. आधुनिक संचार तथा विज्ञापन सुविधाओं के विकास के साथ ही विश्वकप के टेलीविजन एवं प्रायोजन सौदों की बदौलत 1974 के बाद फीफा की आय बेतहाशा बढ़ी. जल्दी ही विश्वकप फुटबॉल विश्व का सबसे बड़ा तथा सर्वाधिक आयोत्पादक आयोजन बन चुका था.

ज्यूरिक, 2 दिसंबर 2010

और फिर वह निर्णायक तिथि भी आ ही पहुंची, जब विश्वकप फुटबॉल के दो आयोजनों की मेजबानी का अंतिम फैसला किया जाना था. ज्यूरिक में फीफा के मुख्यालय, ‘फीफा हाउस,’ के प्रवेश पर पत्रकारों की भीड़ लगी थी. वर्ष 2007 में बने इस भवन का डिजाइन ऐसा है कि इसके परिसर के बाहर से अंदर की गतिविधियां बिलकुल ही नहीं देखी जा सकतीं. भवन के आठ तल्लों में से पांच तो भूतल के नीचे ही हैं. फीफा की कार्यकारिणी समिति–एक्सको–के सदस्यों को उनके होटल से यहां लाने में लगायी गयीं मर्सीडीज की महंगी कारें एक-एक कर उस विशालकाय भवन में प्रवेश करतीं और सीधा तीसरे तल्ले के बैठक कक्ष के समीप पहुंच कर ही रुकतीं, ताकि माननीय सदस्यों को कोई देख भी न सके. इस बैठक के लिए एक्सको सदस्यों को ज्यूरिक स्थित विश्व के अग्रणी होटलों में शुमार जिस सुप्रसिद्ध ‘बाउर ऑ लैक’ होटल में ठहराया गया, मेजबानी के दावेदार सभी नौ देशों ने अपने हित एक अंतिम पैरोकारी के तहत अपने प्रतिनिधिमंडलों को ठहराने के लिए भी इसी होटल में बुकिंग करा रखी थी. इस अवसर पर इन सभी ने अपने देश की मुख्य और आकर्षक हस्तियों को भेज रखा था, ताकि उनका अधिकाधिक असर पड़ सके. अमेरिकी दल में उसके राष्ट्रीय स्टार खिलाड़ी डोनोवन, अभिनेता मॉर्गन फ्रीमैन तथा यहां तक कि पूर्व राष्ट्रपति बिल क्लिंटन भी शामिल थे.

इंग्लैंड को रूस की तुलना में अपनी दावेदारी कमजोर पड़ती जाने का पूरा अनुमान हो चुका था. तभी उसके लिए एक और दुर्भाग्यपूर्ण घटना यह घटी कि बीबीसी ने एक डाॅक्यूमेंट्री प्रसारित कर फीफा के तीन एक्सको सदस्यों पर एक स्पोर्ट्स मार्केटिंग फर्म से लाखों डॉलर की रिश्वतखोरी का आरोप लगा डाला. इसने यह खबर भी दी कि कौनककैफ के अध्यक्ष जैक वार्नर ने 2010 विश्वकप के 80 हजार डॉलर से भी अधिक कीमत के टिकट मुनाफे लेकर बेचने की कोशिश की. जैसे ही इंग्लैंड के दावेदारी दल को इस डाॅक्यूमेंट्री का पता चला, उसने उसका प्रसारण रोकने हेतु बीबीसी को मनाने की भरपूर कोशिश की, पर बीबीसी ने इनकार कर दिया. इस तरह, इंग्लैंड की मुश्किलें बढ़ती ही जा रही थीं. फिर भी एक अंतिम आशा के रूप में इस अवसर पर उसने अपनी तीन राष्ट्रीय हस्तियों को ज्यूरिक भेजा- प्रधानमंत्री डेविड कैमरून, प्रिंस विलियम और डेविड बेखम. इसी बीच, इस दल के लिए एक उत्साहजनक खबर यह आयी कि रूसी राष्ट्रपति पुतिन इस मौके पर ज्यूरिक नहीं आ रहे हैं.

ओबामा का फोन
फीफा अध्यक्ष ब्लैटर के रात्रि विश्राम के ठीक पहले उन्हें अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने फोन किया. ब्लैटर ने विश्वकप की मेजबानी के लिए कई अवसरों पर स्वयं ही सार्वजनिक रूप से अमेरिकी दावेदारी का यह संकेत करते हुए समर्थन किया था कि यह इस आयोजन के लिए विशाल वाणिज्यिक संभावनाओं के द्वार खोलेगा.

‘इस मेजबानी के लिए हमारी संभावनाएं कैसी हैं?’ फोन पर ओबामा ने पूछा.

ब्लैटर अटके और धीमे स्वर में उन्होंने कहा, ‘राष्ट्रपति महोदय, यह कठिन है.’

‘मैं समझ सकता हूं. अच्छा, गुड लक,’ ओबामा ने कहा और उन्होंने फोन रख दिया.

अगले ही दिन एक्सको सदस्यों के मतदान के पश्चात सैकड़ों पत्रकारों के सामने ब्लैटर ने फीफा के मंच से घोषणा की कि एक्सको सदस्यों ने 2018 एवं 2022 के विश्वकप आयोजनों के लिए क्रमशः रूस और कतर का चयन किया है. फिर उन्होंने मंच पर बारी-बारी से रूसी उपप्रधानमंत्री इगोर शुवालोव एवं कतर के शाही परिवार के सदस्यों को विश्वकप की ट्रौफियां सौंप दीं.

इस घोषणा के कुछ ही घंटे बाद, व्लादिमीर पुतिन का विमान ज्यूरिक में उतरा और उन्होंने जल्दबाजी में बुलाये एक पत्रकार सम्मेलन को अत्यंत प्रसन्न मुद्रा में संबोधित किया. इसमें एक पत्रकार ने उनसे पूछ लिया, ‘क्या यह कहना उचित होगा कि दावेदारी की इस स्पर्धा के वक्त ज्यूरिक से हजारों मील दूर रहना चुनते हुए भी विजय हासिल कर आप विश्व के सबसे चतुर प्रधानमंत्री सिद्ध हुए हैं?’

पुतिन ने मुस्कुराते हुए उस पत्रकार का आभार व्यक्त किया और कहा, ‘यह सुनना बहुत अच्छा लगा.’

फैसले से सबसे बड़ा धक्का इंग्लैंड में महसूस किया गया, जिसे इतनी कोशिशों के बाद भी केवल दो मत मिल सके थे. उसके दावेदारी दल के एक सदस्य ने जैक वार्नर को घेरा और पूछा कि आपने हमें अपना मत देने का वादा कर भी क्यों ऐसा नहीं किया? वार्नर ने बगैर किसी लाग-लपेट के जवाब दिया, ‘हमें कौन रोक सकता है?’ इसी दल के एक सदस्य ने फीफा के महासचिव जेरोमी वाल्के को अत्यंत उदास मुद्रा में अपना चेहरा अपनी हथेलियों में डुबोते हुए बुदबुदाता सुना, ‘यह तो फीफा का अंत है.’

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