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अपने शिक्षकों और कोचों के दिल में अब भी राज करते हैं धौनी, पढ़ें – ”माही” की ”अनोखी कहानी”

रांची: महेंद्र सिंह धौनी भारतीय क्रिकेट के सबसे सफल कप्तान और विकेटकीपर की सूची में शामिल हैं और उनकी इस यात्रा में योगदान देने वाले लोगों को इस पर गर्व है. धौनी के बचपन के कोच केशव रंजन बनर्जी हों, जीव विज्ञान की शिक्षिका सुषमा शुक्ला या फिर मेकोन स्टेडियम के प्रभारी उमा कांत जेना […]

रांची: महेंद्र सिंह धौनी भारतीय क्रिकेट के सबसे सफल कप्तान और विकेटकीपर की सूची में शामिल हैं और उनकी इस यात्रा में योगदान देने वाले लोगों को इस पर गर्व है.

धौनी के बचपन के कोच केशव रंजन बनर्जी हों, जीव विज्ञान की शिक्षिका सुषमा शुक्ला या फिर मेकोन स्टेडियम के प्रभारी उमा कांत जेना इन सभी को धौनी की यात्रा में योगदान देने का गर्व है.

धौनी के जीवन पर बनी फिल्म ‘एमएस धौनी: द अनटोल्ड स्टोरी’ में इनमें से कई किरदारों का जिक्र है और जब आप रांची पहुंचते हैं तो आपके अंदर यह पता करने की उत्सुकता पैदा होती है कि फिल्म के किरदार असल जीवन में कितने अलग या समान हैं. बनर्जी ‘सर’ ने बताया, कुछ लोग मेरे से पूछते हैं कि क्या आपको पैसे दिये गये थे क्योंकि उन्होंने फिल्म में आपके किरदार को दिखाया गया था और इससे मुझे चिढ़ होने लगी थी.

उन्होंने कहा, मैं उसका जैविक पिता नहीं हूं, लेकिन पिता तुल्य हूं. अगर पिता अपने बेटे से कुछ मांगता है तो यह शर्मनाक है. उनकी हिंदी में बंगाली लहजा है जैसा कि फिल्म में राजेश शर्मा के किरदार का था. उन्होंने कहा, वह काफी शर्मीला लड़का था और अब भी है. वह हमेशा अपनी हंसी में अपनी भावनाओं को छिपा सकता है. उसे पता था कि क्रिकेट उसे वह जीवन दे सकता है जो वह अपने लिए और इससे भी अधिक अपने परिवार के लिए चाहता है.

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माही अब भी इसी तरह का है. ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ यहां शुक्रवार को होने वाले तीसरे एकदिवसीय अंतरराष्ट्रीय मैच के संदर्भ में उन्होंने कहा, मुझे तीसरे एकदिवसीय अंतरराष्ट्रीय के दो पास मिले हैं. मैंने माही की मां को फोन किया और उन्होंने इसका इंतजाम कर दिया.

विनम्रता ऐसी चीज है जो सभी लगभग लोग धौनी के साथ जोड़ते हैं. जवाहर विद्या मंदिर की सेवानिवृत्त शिक्षिका सुषमा शुक्ला ने कहा, वह काफी शांत बच्चा था. मैंने सातवीं और आठवीं में उसे जीव विज्ञान पढ़ाया. मुझे याद है कि मैंने उससे पूछा था ‘महेंद्र, तुम सिंह को या धौनी?’ उसने जवाब दिया था, ‘मैडम, हम सिंह भी हैं और धौनी भी’.

उन्होंने बताया, क्रिकेट के लिए पूरी तरह समर्पित होने के बावजूद वह 60 प्रतिशत अंक ले आता था. मुझे याद है कि एक बार उसने जीव विज्ञान की प्रयोगात्मक परीक्षा में हिस्सा नहीं लिया, क्योंकि उसे किसी मैच में खेलना था और उसी ट्रेन से यात्रा कर रहा था जिससे मैं कर रही थी.

सुषमा ने बताया, संभवत: उसे पता था कि मैं वहां थी और उसकी टीम का एक साथी मेरे पास आया और बोला मैडम, क्या आप महेंद्र की शिक्षिका हो. मैंने कहा, कौन धौनी. लड़के ने बताया कि उसने मैच के लिए जीव विज्ञान की प्रयोगात्मक परीक्षा छोड़ दी. ‘लेकिन मैडम, यह लड़का एक दिन दुनिया भर में नाम कमाएगा’.

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सुषमा और पीटी शिक्षिका आभा सहाय जहां रहती हैं वहां सेलीब्रिटी की तरह हैं और उन्हें सभी जानते हैं. उन्होंने कहा, मैं महाराष्ट्र में अपने पैतृक नगर में रहती हूं और उस फिल्म में हमें लगभग 30 सेकेंड के लिए दिखाया गया इसलिए वे मुझे धौनी की शिक्षिका के रूप में जानते हैं. आभा को धौनी की शिक्षिका होने के कारण जो सम्मान मिलता है वह उनके लिए सर्वोच्च है.

उन्होंने कहा, हम गर्व महसूस करते हैं हमने एक विनम्र इन्सान को बनाने में थोड़ी भूमिका निभाई. वह महान खिलाड़ी है, लेकिन सफलता हासिल करने के बाद काफी लोगों में ऐसी विनम्रता नहीं होती. मेकोन स्टेडियम के मैदान प्रभारी उमा कांत जेना ने 1985 में पहली बार धौनी को देखा जब वह सिर्फ साढ़े तीन साल के थे. जेना ने याद करते हुए कहा, यह कॉलोनी का दरवाजा है और माहिया (वह धौनी को इसी नाम से पुकारते थे) प्लास्टिक की गेंद और बल्ले के साथ यहीं घूमता रहता था.

उन्होंने कहा, किसने सोचा था कि वह इतना कुछ हासिल कर लेगा. भारतीय कप्तान बनने के बाद वह एक बार आया था और मेरे बेटे विजय को बल्ला और विकेटकीपिंग ग्लब्‍स दिये. अच्छा प्रदर्शन करने पर उसने पूरी किट देने का वादा किया. जेना ने कहा, और आपको पता है कि सबसे शर्मनाक क्या था? वह जमीन पर बैठा था जबकि मैं कुर्सी पर.

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मैंने उसे कहा कि ऐसा मत करो, लेकिन उसने मेरी बात नहीं सुनी. बनर्जी ने साथ ही याद किया कि कैसे एक बार धौनी देर रात उनकी शादी की सालगिरह पर बधाई देने पहुंच गये थे और उनकी पत्नी को चाउमीन बनाने के लिए कहा.

बनर्जी से बताया कि वह कभी नहीं भूल पाएंगे कि धौनी ने उनकी पत्नी के इलाज में मदद की थी. उन्होंने कहा, मैं अपनी पत्नी को इलाज के लिए वेल्लूर ले जाना चाहता था और हमें तीन महीने बाद का समय मिला था. सिर्फ तभी मैंने उससे बात की थी और पूछा था कि क्या वह मदद कर सकता है. उन्होंने कहा, पंद्रह दिन के भीतर हमें वेल्लूर से फोन आया और मेरी पत्नी का समय पर इलाज हो पाया. मुझे नहीं पता कि उसने किसे फोन किया.

Prabhat Khabar Digital Desk
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