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Film Review: फिल्म देखने से पहले जानें कैसी है ”उजड़ा चमन”

फिल्म : उजड़ा चमन निर्माता : कुमार मंगत और अभिषेक पाठक निर्देशक : अभिषेक पाठक कलाकार : सनी सिंह, मानवी गगरु, ऐश्वर्या सखूजा, शारिब हाशमी, करिश्मा शर्मा, गृशा कपूर और अन्य रेटिंग : डेढ़ उर्मिला कोरी कन्नड़ फिल्म ओन्दू मोट्टया कोंन्दू का हिंदी रीमेक यह फिल्म है. भारतीय समाज का इनर ब्यूटी से कोई सरोकार […]

  • फिल्म : उजड़ा चमन
  • निर्माता : कुमार मंगत और अभिषेक पाठक
  • निर्देशक : अभिषेक पाठक
  • कलाकार : सनी सिंह, मानवी गगरु, ऐश्वर्या सखूजा, शारिब हाशमी, करिश्मा शर्मा, गृशा कपूर और अन्य
  • रेटिंग : डेढ़

उर्मिला कोरी

कन्नड़ फिल्म ओन्दू मोट्टया कोंन्दू का हिंदी रीमेक यह फिल्म है. भारतीय समाज का इनर ब्यूटी से कोई सरोकार नहीं है. ऐसे समाज में कम उम्र में गंजापन कितनी बड़ी मुश्किल या हीनता का सबब बन सकता है. फिल्म के इसी कॉन्सेप्ट पर फिल्म की कहानी है.

फिल्म की कहानी 30 साल के चमन (सनी सिंह) की है जो गंजा हैं. इस वजह से उसकी शादी नहीं हो रही है. ऊपर से पंडित ने कह दिया कि 31 तक अगर चमन की शादी नहीं हुई तो वह आजीवन कुंवारा रह जाएगा.

दिक्कत सिर्फ यही नहीं है चमन खुद तो उजड़ा चमन है लेकिन लड़की उसे अप्सरा जैसी चाहिए. डेटिंग एेप के जरिये अप्सरा गुप्ता (मानवी) की एंट्री होती है लेकिन वह सिर्फ नाम की अप्सरा है.

चमन उसे अपनी जिंदगी से दूर करना चाहता है, जबकि घरवाले शादी करवाने पर तुले हैं. चमन क्या समझ पाएगा कि इंसान का दिल और स्वभाव से उसे जज किया जाना चाहिए ना कि सूरत से. यही एहसास के आने की कहानी आगे फिल्म की है.

फिल्म का कांसेप्ट अच्छा है लेकिन वह परदे पर उस तरह से प्रभावी ढंग से परिभाषित नहीं हो पाया है. लचर डायरेक्शन और कान पकड़कर लड़के का कंफेशन वाला कमजोर दृश्य फिल्म का क्लाइमेक्स है. जब तक क्लाइमेक्स तक फिल्म पहुंचती है, आपके जेहन में कई बार यह सवाल आ चुका होता है कि ये फिल्म कब खत्म होगी.

फिल्म की कहानी में लेयर्स नहीं है, सिर्फ गंजेपन का मजाक बनाया गया है. या लड़की नहीं मिल रही है, यही कहानी में दोहराया जा रहा है. फिल्म का मूल संदेश प्यार में सूरत नहीं सीरत देखनी चाहिए, यह संदेश भी पर्दे पर नहीं आ पाया है. मजाक उड़ाने वाले कई दृश्य बेतुके और हकीकत से दूर लगते हैं. मानवी के किरदार का इतनी जल्दी चमन के प्यार में पड़ जाना भी अजीब लगता है.

अभिनय की बात करें, तो ‘प्यार का पंचनामा’ और ‘सोनू के टीटू की स्वीटी’ में सराहे गए सनी सिंह बतौर लीड एक्टर यहां चूक गए हैं. उनके चेहरे पर परेशानी वाला एक ही हाव भाव पूरी फिल्म में नजर आता है.

मम्मी पापा के रोल में गृशा कपूर और अतुल कुमार अच्छे रहे हैं. दिल्ली वाला पंजाबी अंदाज उन्होंने बखूबी पकड़ा है. मानवी और सौरभ शुक्ला का अभिनय अच्छा बन पड़ा है. बाकी के किरदारों का काम भी ठीक ठाक है.

फिल्म के दूसरे पक्ष की तरह गीत-संगीत निराश ही करते हैं. कॉमेडी फिल्म की सबसे बड़ी जरूरत संवाद होते हैं, लेकिन यहां यह पहलू भी कमजोर रह गया है. कुल मिलाकर यह रोमांटिक कॉमेडी फिल्म निराश करती है.

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