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क्रांतिकारियों ने फांसी के विरोध में लूटा था खजाना

23 मार्च 1942 की घटना : काकोरी की तर्ज पर हुआ था सहजनवां ट्रेन एक्शन बैजनाथ सिंह आज 23 मार्च है. शहीद-ए-आजम भगत सिंह को याद कर उनके ख्यालों के भारत में दाखिल होने का वक्त. कुछ कहानियां पीछे इतिहास में छिपी हैं. क्रांतिवीरों में कुछ ही लोग बचे हैं. इन्हीं क्रांतिवीरों में शुमार हैं […]

23 मार्च 1942 की घटना : काकोरी की तर्ज पर हुआ था सहजनवां ट्रेन एक्शन
बैजनाथ सिंह
आज 23 मार्च है. शहीद-ए-आजम भगत सिंह को याद कर उनके ख्यालों के भारत में दाखिल होने का वक्त. कुछ कहानियां पीछे इतिहास में छिपी हैं. क्रांतिवीरों में कुछ ही लोग बचे हैं. इन्हीं क्रांतिवीरों में शुमार हैं बैजनाथ सिंह, जो काकोरी की तर्ज पर हुए सहजनवां ट्रेन एक्शन की कहानी सुनाते-सुनाते रो पड़ते हैं. आइए जानते हैं कि शाह आलम से विशेष बातचीत में बैजनाथ सिंह ने कैसे याद किया अपने आजादी के साथियों को…
कुछ ही लोगों को यह जानकारी होगी कि गोरखपुर के पास मौजूद सहजनवां स्टेशन है और यहां काकोरी की तर्ज पर आजादी के दीवानों ने ट्रेन लूटी थी. इस सहजनवां कांड के एकमात्र प्रत्यक्षदर्शी और क्रांतिवीर बैजनाथ सिंह पूरी कहानी अपनी जुबानी सुनाते हैं. बुजुर्ग हो चुके बैजनाथ सिंह के सीने में क्रांतिवीरों को लेकर कई ऐसे राज दफन हैं, जिसे वे कुरेदना नहीं चाहते.
वह कहते हैं कि 23 मार्च 1931 को देश की खातिर भगत सिंह ने हंसते-हंसते फांसी को चुन लिया था. चौतरफा क्रांतिकारियों में भगत सिंह की फांसी से रोष था. क्रांतिकारियों के एक दल ने तय किया कि काकोरी की तर्ज पर हथियारों के लिए सहजनवां में ट्रेन लूटी जायेगी. इस एक्शन के लिए जो तारीख चुनी गयी, वह थी 23 मार्च, 1942.
विपरीत परिस्थिति में लूटी ट्रेन, मिले कुल 12 हजार रुपये : बैजनाथ बताते हैं कि इस एक्शन की अगुवाई भगवान शुक्ला कर रहे थे. उन्होंने शाम को क्रांतिकारियों की एक गुप्त बैठक की.
एक्शन का खाका खींचा गया. रात में असलहों से लैस क्रांतिकारी अपने मिशन पर खेत खलिहानों के बीच से निकल पड़े. अंधेरे मे क्रांतिकारियों की टोली की अगुवाई कर रहे भगवान शुक्ला के पैर में अरहर की जड़ चुभ गयी, जिससे वे लहूलुहान हो गये फिर और वहीं उनका रिवाल्वर भी छूट गया. क्रांतिकारियों का दल फिर भी न रुका. वह अपने दोस्तों के साथ मिलकर सहजनवां में ट्रेन रोक कर सरकारी खजाने से 12 हजार रुपये लूटने में कामयाब रहे. बैजनाथ कहते हैं कि इस ट्रेन को लूटने का मकसद सशस्त्र क्रांति को आगे बढ़ाना था. उस दौर के क्रांतिकारियों का नाम जुबां पर आते ही बुजुर्ग बैजनाथ की आखों में आंसू आ जाते हैं.
वह बताते हैं कि भगत सिंह से प्रेरणा लेते हुए ही क्रांतिकारियों की टोली ने अंगरेज सरकार के खिलाफ बड़े एक्शन के लिए खुद को तैयार किया. साथ ही गोरखपुर के पास सहजनवां में ट्रेन से सरकारी खजाने को हथियाने का फैसला लिया गया. 23 मार्च 1942 की रात भगत सिंह की शहादत दिवस के मौके पर इन युवा क्रांतिकारियों ने ट्रेन लूटकर अंगरेज सरकार को सीधी चुनौती पेश की. इस एक्शन में बैजनाथ सिंह के साथ युवा साथी हरि प्रताप तिवारी, बाल स्वरूप शर्मा, कैलाश पति मिश्रा व बनारस ने आये दो क्रांतिकारी भी पूरे एक्शन के दौरान इनके साथ रहे.
हिल गयी थी अंगरेजी सरकार :
उस दौर में सरकारी खजाने से 12 हजार रुपये की लूट अंगरेज सरकार को हिला देने वाली घटना थी. सहजनवां में हुई इस लूट से जहां सरकार सकते में थी, वहीं क्रांतिकारियों ने इन रुपयों से हथियार खरीदे और ठप पड़ी क्रांतिकारी गतिविधि को रफ्तार दिया. इतनी बड़ी लूट से बौखलाई सरकार ने क्रांतिकारियों की गिरफ्तारी के लिए जाल बिछाने शुरू कर दिये और उनकी धरपकड़ की हर कोशिश में जुट गयी.
ऐसे में इन क्रांतिकारियों ने गुप्त स्थानों की शरण लेना मुनासिब समझा. इस दौरान फरारी की दशा में कई क्रांतिकारियों ने नेपाल के बिछुआ में रहकर नये एक्शन की प्लानिंग की. ठीक इसी दौरान ‘भारत छोड़ो आंदोलन’ शुरू हो गया. इस आंदोलन को मिले जनसमर्थन से मौजूदा अंगरेजी शासन की जड़ें हिल गयी. इस असर के पीछे असल ताकत जंग-ए-आजादी में लगे क्रांतिकारियों की थी, जिन्होंने देश के अलग-अलग हिस्सों में इस आंदोलन की कमान खुद अपने हाथों में ले ली.
चौतरफा दबावों से परेशान था अंगरेजी शासन
एक ओर क्रांतिकारियों के एक्शन से बेचैन और दूसरी ओर भारत छोड़ो आंदोलन ने अंगरेजों की नीदें उड़ा दीं. बगावत के इन नये बिगुल से अंगरेजों को हिंदुस्तान में तख्ता पलट नजदीक नजर आने लगा.
अधिकारियों को कुछ भी नहीं सूझ रहा था. ऐसे में अंगरेज अधिकारी छल की नीति पर नयी चाल चलकर क्रांतिकारियों की गिरफ्तारी की कोशिश में जुट गयी. अंगरेजों ने बैजनाथ सिंह को गिरफ्तार कर लिया. सहजनवां लूटकांड में क्रांतिकारी बैजनाथ सिंह पर मुकदमा चलाया गया और उन्हें आजीवन कारावास की सजा सुनायी गयी. कोर्ट में सुनवाई के दौरान भारत मां के इस सपूत के माथे पर तनिक भी शिकन नहीं दिखी. जब अंगरेज जज ने इस केस का फैसला सुनाते हुए उन्हें आजीवन कारावास दिया तो भी उनके होठों पर मुस्कुराहट बनी हुई थी. बैजनाथ सिंह की मुस्कुराहट के पीछे उन साथियों का भरोसा था जिन्हें वो आजादी की जंग में फौज के तौर पर पीछे छोड़कर आये थे.
युवाओं को उखाड़नी होंगी भ्रष्टाचार की जड़ें
देश की वर्तमान हालत को देखते हुए निराशा भरे शब्दों में वह कहते हैं कि देश को आज भी वास्तविक आजादी नहीं मिली. शहीद आंदोलनकारियों के सपने अब तक पूरे नहीं हो पाये हैं.
देश में जब तक लोगों के पास व्यक्तिगत संपत्ति रहेगी, तब तक यह लड़ाई चलती रहेगी. वह कहते हैं कि भ्रष्टाचार आजादी का सबसे बड़ा दुश्मन है. वह देश में भ्रष्टाचार के खिलाफ चलने वाले हर संघर्ष का समर्थन करते हैं. वह कहते हैं कि देश को भ्रष्टाचार से मुक्ति दिलाने के लिए फिर से एक आंदोलन की जरूरत है. युवा इस आंदोलन को आगे बढ़ाकर देश को भ्रष्टाचार से मुक्ति दिला सकते हैं.

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