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Viral Video: क्या साबुन से धोने पर मर जाता है रैबीज का वायरस? सच जानने के लिए देखें वीडियो

Viral Video: सोशल मीडिया पर रैबीज को लेकर एक वीडियो तेजी से वायरल हो रहा है. वायरल वीडियो में एनिमल एक्टिविस्ट अंबिका शुक्ला दावा करती हैं कि साबुन से जख्म धोने पर रैबीज वायरस मर जाता है. सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद यह बयान चर्चा में है. यह कोई मजाक नहीं है. आप भी इसे देख सकते हैं.

Viral Video: सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले के बाद कुत्ता प्रजाति एक बार फिर चर्चा में है. खासकर, उसके काटने के बाद रैबीज से होने वाली बीमारी से संबंधित वीडियो सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल हो रहा है, जिसमें वह यह कहती हुई पाई गई हैं कि सिर्फ साबुन से धोने पर रैबीज जैसा कीटाणु मर जाता है. अब आप कहेंगे कि यह क्या मजाक है? कहीं ऐसा हो सकता है? अगर ऐसा होता तो फिर एंटी-रैबीज दवा ही क्यों बनती? लेकिन, सोशल मीडिया के प्रमुख मंच एक्स (पुराना ट्विटर) पर एनिमल एक्टिविस्ट अंबिका शुक्ला का एक वीडियो तेजी से वायरल हो रहा है.

https://twitter.com/TheRedMike/status/1955628464859721809?t=a0BgSQGDNuyxizD1pNBUnw&s=08

एक्स पर एक यूजर @TheRedMike (द रेड माइक) ने एनिमल एक्टिविस्ट अंबिका शुक्ला के बयान वाला एक वीडियो पोस्ट किया है. इस वीडियो में वह कह रही हैं कि रैबीज जो वायरस फैलती है, वो केवल जब इन्फेक्शन, सलाइवा खून तक पहुंचता है. बस, इसका माध्यम ये है, मगर ये इतनी डेलिकेट वायरस है कि अगर आप साबुन से भी जख्म को धो दो तो रैबीज वायरस मर जाता है. इसलिए आप देखेंगे कि हमारे देश में जहां डेढ़ बिलियन लोग हैं, रैबीज की तादाद क्या है?

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KumarVishwat Sen
KumarVishwat Sen
कुमार विश्वत सेन प्रभात खबर डिजिटल में डेप्यूटी चीफ कंटेंट राइटर हैं. इनके पास हिंदी पत्रकारिता का 25 साल से अधिक का अनुभव है. इन्होंने 21वीं सदी की शुरुआत से ही हिंदी पत्रकारिता में कदम रखा. दिल्ली विश्वविद्यालय से हिंदी पत्रकारिता का कोर्स करने के बाद दिल्ली के दैनिक हिंदुस्तान से रिपोर्टिंग की शुरुआत की. इसके बाद वे दिल्ली में लगातार 12 सालों तक रिपोर्टिंग की. इस दौरान उन्होंने दिल्ली से प्रकाशित दैनिक हिंदुस्तान दैनिक जागरण, देशबंधु जैसे प्रतिष्ठित अखबारों के साथ कई साप्ताहिक अखबारों के लिए भी रिपोर्टिंग की. 2013 में वे प्रभात खबर आए. तब से वे प्रिंट मीडिया के साथ फिलहाल पिछले 10 सालों से प्रभात खबर डिजिटल में अपनी सेवाएं दे रहे हैं. इन्होंने अपने करियर के शुरुआती दिनों में ही राजस्थान में होने वाली हिंदी पत्रकारिता के 300 साल के इतिहास पर एक पुस्तक 'नित नए आयाम की खोज: राजस्थानी पत्रकारिता' की रचना की. इनकी कई कहानियां देश के विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हुई हैं.

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