Supreme Court: बिहार में पुलों के गिरने की घटनाओं की जांच के लिए एक उच्च स्तरीय समिति बनाए जाने की मांग वाली याचिका पर सुप्रीम कोर्ट में बुधवार को सुनवाई हुई. मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना और न्यायाधीश संजय कुमार की खंडपीठ ने जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा कि बिहार सरकार द्वारा दाखिल जवाबी हलफनामे में दिए गए विवरण को देखते हुए इस मामले को पटना हाईकोर्ट हस्तांतरित किया जाता है. पीठ ने कहा कि बिहार सरकार ने हलफनामे में पुलों के गिरने से रोकने के लिए उठाए गए कदमों की विस्तृत जानकारी दी है.
सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता के वकील ने कहा कि बिहार में कई पुल गिरने के मामले सामने आने के बाद भी राज्य सरकार की ओर से पुलों की जांच तीसरी पार्टी से नहीं कराया जा रहा है. न्यायाधीश संजय कुमार ने कहा कि तीन निर्माणाधीन पुल गिरे और इसके लिए अधिकारियों को निलंबित किया गया, लेकिन फिर इन अधिकारियों को तैनात कर दिया है. ऐसा लगता है कि सभी की मिलीभगत है. इस पर बिहार सरकार के वकील ने कहा कि संबंधित अधिकारियों के खिलाफ विभागीय जांच चल रही है. सरकार की ओर से 10 हजार पुलों का निरीक्षण किया गया है.
मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना ने कहा कि अब मामले की सुनवाई पटना हाईकोर्ट करेगी और वही हर महीने इसकी निगरानी करेगी. पीठ ने सुप्रीम कोर्ट की रजिस्ट्री को 4 हफ्ते के अंदर पूरे मामले को पटना हाईकोर्ट हस्तांतरित करने का आदेश दिया और सभी पक्षों को 14 मई को हाईकोर्ट के समक्ष पेश होने को कहा.
क्या है मामला
बिहार में एक के बाद एक कई पुल गिरने का मामला सामने आने के बाद वकील बृजेश सिंह ने सुप्रीम कोर्ट में जनहित याचिका दाखिल कर पुलों का ऑडिट करने के लिए एक उच्च स्तरीय एक्सपर्ट कमेटी बनाने और निर्माणाधीन पुलों की निगरानी करने की भी मांग की थी. जुलाई 2024 में दाखिल याचिका में कहा गया था कि पुलों का गिरना लोगों की सुरक्षा से जुड़ा मामला है. चिंता की बात यह भी है कि बिहार बाढ़ प्रभावित क्षेत्र है और ऐसे में पुलों का गिरना गंभीर चिंता का विषय है. याचिका में निर्माणाधीन पुलों की रियल टाइम निगरानी एनएचएआई के तय मानक के अनुसार किया जाना चाहिए.
पिछले साल 29 जुलाई को तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली 3 सदस्यीय पीठ ने बिहार के मुख्य सचिव, पथ निर्माण सचिव, केंद्रीय सड़क मंत्रालय और राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (एनएचएआई) से जवाब मांगा था.