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Science & Tech: संस्थानों और उद्योग जगत के बीच तकनीकी सहयोग को मजबूत बनाने की पहल 

बायोई 3 नीति को वर्ष 2024 में केंद्रीय मंत्रिमंडल से मंजूरी मिली थी, जिसका मुख्य लक्ष्य भारत की जैव-अर्थव्यवस्था को अगले स्तर तक ले जाना है. यह नीति 2070 तक "नेट ज़ीरो कार्बन उत्सर्जन" के राष्ट्रीय संकल्प को पूरा करने में महत्वपूर्ण योगदान देगी.

Science & Tech: अंतर्राष्ट्रीय आनुवंशिक अभियांत्रिकी एवं जैव प्रौद्योगिकी केंद्र (आईसीजीईबी) ने शनिवार को बायोई 3 नीति की पहली वर्षगांठ को ” बायोई 3 @1″  कार्यक्रम के रूप में मनाया. इस नीति का मकसद है-जैव प्रौद्योगिकी को अर्थव्यवस्था, पर्यावरण और रोजगार से जोड़ना, ताकि देश की जैव-अर्थव्यवस्था को मजबूत बनाया जा सके.यह नीति केंद्र सरकार की एक अग्रणी पहल है, जिसका उद्देश्य जैव प्रौद्योगिकी को “अर्थव्यवस्था, पर्यावरण और रोजगार” से जोड़कर देश की जैव-अर्थव्यवस्था को नयी दिशा देना.है. इस अवसर पर शोध संस्थानों और उद्योग जगत के विशेषज्ञ एक मंच पर आए और “संस्थान–उद्योग सहयोग: जलवायु सहनशील कृषि और स्वच्छ ऊर्जा” विषय पर गहन चर्चा की.


इस आयोजन में देश के कई प्रमुख शोध संस्थानों ने भाग लिया. इनमें नेशनल एग्री फूड बायोटेक्नोलॉजी इंस्टिट्यूट (मोहाली), नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ प्लांट जीनोम रिसर्च (नयी दिल्ली), नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ एनिमल बायोटेक्नोलॉजी (हैदराबाद), इंस्टीट्यूट ऑफ पेस्टिसाइड फॉर्मुलेशन टेक्नोलॉजी (गुरुग्राम) और रीजनल सेंटर फॉर बायोटेक्नोलॉजी (फरीदाबाद) शामिल थे. कार्यक्रम ने संस्थानों और उद्योग जगत के बीच तकनीकी सहयोग को मजबूत बनाने पर विशेष ध्यान केंद्रित किया. उद्योग जगत की यह भागीदारी दर्शाती है कि भारत में वैज्ञानिक शोध और औद्योगिक क्षेत्र के बीच साझेदारी दिन-प्रतिदिन मजबूत हो रही है, जो देश की जैव-अर्थव्यवस्था को गति देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है.

उद्योग जगत की बड़ी कंपनियों ने लिया भाग 


कार्यक्रम को दो सत्रों में विभाजित किया गया. पहले सत्र में विभिन्न संस्थानों के निदेशकों ने जलवायु सहनशील कृषि और स्वच्छ ऊर्जा से संबंधित अपनी अत्याधुनिक तकनीकों और चल रहे शोध कार्यों की जानकारी दी. जिसमें कृषि और ऊर्जा क्षेत्र में आत्मनिर्भरता तथा स्थिरता की दिशा में उठाए जा रहे कदमों पर प्रकाश डाला गया. दूसरे सत्र में उद्योग प्रतिनिधियों की पैनल चर्चा हुई. विशेषज्ञों ने इस दौरान प्रयोगशाला से बाजार तक तकनीकों को पहुंचाने की चुनौतियों और अवसरों पर अपने विचार साझा किए. 

एक प्रदर्शनी का भी आयोजन किया गया, जिसमें उद्योग जगत को उभरती प्रौद्योगिकियों के व्यावहारिक उपयोग और भविष्य की संभावनाओं से अवगत कराया. उद्योग जगत की बड़ी कंपनियों, बलराम चीनी मिल्स, प्रसाद सीड्स, नुजिवीडू सीड्स, बायोसीड्स, मैनकाइंड एग्रो और इंसेक्टिसाइड्स इंडिया आदि ने भी भाग लिया. जिसका संदेश साफ है कि वैज्ञानिक शोध और उद्योग मिलकर भारत की जैव-अर्थव्यवस्था को और मजबूत बना सकते हैं. 

नेट ज़ीरो कार्बन उत्सर्जन के लक्ष्य को करेगा पूरा 

कार्यक्रम के साथ ही एक प्रदर्शनी भी आयोजित की गई, जिसमें भाग लेने वाले शोध संस्थानों ने कृषि-बायोटेक, सतत ऊर्जा, पशु स्वास्थ्य और कीटनाशक निर्माण में हुए नवीनतम नवाचार प्रस्तुत किए. गौरतलब है कि बायोई 3 नीति को वर्ष 2024 में केंद्रीय मंत्रिमंडल से मंजूरी मिली थी. इस नीति का मुख्य लक्ष्य भारत की जैव-अर्थव्यवस्था को अगले स्तर तक ले जाना है. यह नीति 2070 तक “नेट ज़ीरो कार्बन उत्सर्जन” के राष्ट्रीय संकल्प को पूरा करने में अहम योगदान देगी. साथ ही, यह इनोवेशन, सतत विकास और समावेशी प्रगति को बढ़ावा देते हुए पर्यावरण संरक्षण और आर्थिक विकास का संतुलन स्थापित करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है.

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