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कृषि भारत की आत्मा और अर्थव्यवस्था का आधार : वेंकैया नायडू

National Agriculture Dialogue 2030 : कृषि भारत की आत्मा है. यह केवल खाद्य सुरक्षा के लिए ही अहम नहीं है बल्कि देश की अर्थव्यवस्था और देश की आधी आबादी का जीवनयापन भी कृषि पर ही निर्भर है. साथ ही यह हमारी पर्यावरण, संस्कृति और सभ्यता का स्तंभ है. उक्त बातें उपराष्ट्रपति एम वेंकैया नायडू ने नेशनल एग्रीकल्चर डायलॉग-2030 के उद्‌घाटन सत्र में कही.

कृषि भारत की आत्मा है. यह केवल खाद्य सुरक्षा के लिए ही अहम नहीं है बल्कि देश की अर्थव्यवस्था और देश की आधी आबादी का जीवनयापन भी कृषि पर ही निर्भर है. साथ ही यह हमारी पर्यावरण, संस्कृति और सभ्यता का स्तंभ है. उक्त बातें उपराष्ट्रपति एम वेंकैया नायडू ने नेशनल एग्रीकल्चर डायलॉग-2030 के उद्‌घाटन सत्र में कही.

गौरतलब है कि फूड एंड एग्रीकल्चर ऑर्गनाइजेशन (एफएओ) ने भारतीय कृषि पर नेशनल डायलॉग आयोजित करने की प्रक्रिया 2019 में शुरू की थी, जिसका उद्देश्य वर्ष 2030 तक एक दशक में हरित क्रांति के बाद की कृषि पर फोकस करना है.

विचार विमर्श प्रक्रिया का पहला चरण बुनियादी परिवर्तन के लिए जरूरी क्षेत्रों के मुद्दों की पहचान करना था. नीति आयोग, कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय और एफएओ की एक संयुक्त स्टीयरिंग कमेटी के निर्देशन में यह काम हुआ. कृषि क्षेत्र के अनुभवी विशेषज्ञों को चुने गये विषयों पर रिसर्च पेपर लिखने का जिम्मा दिया गया. 19 जनवरी से 22 जनवरी, 2021 के दौरान आयोजित वर्चुअल ‘नेशनल एग्रीकल्चर डायलॉग-2030’ में इन पेपर के प्रस्तुतीकरण पर चर्चा हो रही है.

कॉन्फ्रेंस का उद्घाटन 19 जनवरी को किया गया था. कार्यक्रम का उद्घाटन मुख्य अतिथि उपराष्ट्रपति एम वेंकैया नायडू ने किया. अपने उद्घाटन संबोधन में उन्होंने कहा कि कृषि भारत की आत्मा है. यह केवल खाद्य सुरक्षा के लिए ही अहम नहीं है बल्कि देश की अर्थव्यवस्था और देश की आधी आबादी का जीवनयापन भी कृषि पर ही निर्भर है. साथ ही यह हमारी पर्यावरण, संस्कृति और सभ्यता का स्तंभ है. उन्होंने कहा कि कृषि टिकाऊ होनी चाहिए, इसे समग्रता में देखना चाहिए जिसमें पशुपालन, पॉल्ट्री, मत्स्यपालन और मधुमक्खी पालन भी शामिल हों.

उपराष्ट्रपति ने भारतीय कृषि में महिलाओं की बढ़ती भागीदारी का जिक्र करते हुए कहा कि नीतियों के निर्माण के समय महिला किसानों को प्राथमिकता देने की जरूरत है. उन्होंने एग्री इंटरप्रेन्योर को बढ़ावा देने की जरूरत बताते हुए कहा कि हमें कृषि से प्रतिभा पलायन को रोकने पर जोर देना चाहिए.

उद्घाटन सत्र को संबोधित करते हुए केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण राज्य मंत्री पुरुषोत्तम रुपाला ने कहा कि भारत सरकार कृषि उत्पादकता में बढ़ोतरी के साथ प्राकृतिक संसाधनों के प्रबंधन पर जोर दे रही है. भारत को अब आर्गनिक और पोषक भोजन का केंद्र बनना चाहिए. प्रधानमंत्री ने किसानों की आय दोगुना करने का राष्ट्रीय लक्ष्य तय किया है. इसे हासिल करने के लिए स्मार्ट एग्रीकल्चर के मकसद से डिजिटल सिस्टम स्थापित करने पर तेज प्रगति हुई है. फसल उपरांत नुकसान को कम करने के लिए कई कार्यक्रम चल रहे हैं. उन्होंने 2020 में टिड्डी दल हमलों के खतरे से निपटने और फसलों के नुकसान को कम करने लिए उठाये गये कदमों का भी जिक्र किया.

इस सत्र को संबोधित करते हुए नीति आयोग के उपाध्यक्ष राजीव कुमार ने कहा कि हमने खाद्य सुरक्षा तो हासिल कर ली है लेकिन पोषण सुरक्षा नहीं. उन्होंने कहा कि हमें फसल चक्र पर गंभीरता से विचार करना चाहिए. हमें देखना होगा कि बेहतर पोषक भोजन का उत्पादन करने लिए क्या उत्पादन करना चाहिए और उसके लिए उत्पादन में किस तरह के विविधिकरण की जरूरत है. उन्होंने रसायनों के अत्यधिक उपयोग का मुद्दा उठाते हुए कहा कि इस तरह की खेती का दौर चला गया है अब बड़ी जोत में मशीनीकरण से होने वाली खेती की नीति पर पुनर्विचार की जरूरत है. अपने भाषण में उन्होंने कृषि से बेहतर आय पर जोर देते हुए कहा कि किसानों के बच्चे खेती करें उसके लिए यह जरूरी है.

उद्घाटन सत्र को संबोधित करते हुए नीति आयोग के सदस्य प्रोफेसर रमेश चंद ने कहा कि अब पूरा जोर पोषक, सुरक्षित और पारंपरिक भोजन पर होना चाहिए. यह मौजूदा खाद्य जिन्सों के लिए चुनौती लेकर आया है क्योंकि अभी पोषक भोजन की उपलब्धता और मांग के बीच असंतुलन की स्थिति है. हमें टिकाऊ खेती की जरूरत है. भोजन का यह उत्पादन ज्यादा प्रतिकूल परिस्थितियों में करना होगा. हमारे सामने चुनौती है कि हम अधिक भोजन उत्पादन करें या जो अभी हो रहा है उतना उत्पादन करें लेकिन ग्रीन हाउस गैसों (जीएचजी) का उत्सर्जन कम होना चाहिए.

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एफएओ के एशिया-प्रशांत क्षेत्र के क्षेत्रीय प्रतिनिधि जोंग-जिन किम ने एफएओ के महानिदेशक के प्रतिनिधि के रूप में नीति आयोग और भारत सरकार को यह पालिसी डायल़ॉग आयोजित करने के लिए बधाई देते हुए कहा कि पिछले 75 साल से एफएओ ने भूख के मुद्दे को हल करने के लिए किसानों और दूसरे संबंधित पक्षों के साथ करीब से मिलकर काम किया है. कोविड-19 जैसी अप्रत्याशित महामारी ने तमाम गतिविधियों को प्रभावित किया है लेकिन वह कई मौके भी लेकर आई है.

Posted By : Rajneesh Anand

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