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RTG होता तो लंबा होता चंद्रयान-3 मिशन, जानें कैसे करता है काम

चंद्रयान-3 मिशन की अवधि मात्र 14 दिन रखी गयी थी, लेकिन कि दिलचस्प यह है कि नासा का एक अंतरिक्ष यान वॉयजर-1 पिछले 46 वर्षों से लगातार काम कर रहा है. इसके लगातार काम करने का राज है - आरटीजी. आइए जानते हैं आरटीजी क्या है और कैसे काम करता है?

Chandrayan-3 Mission: 23 अगस्त 2023 को भारत ने चांद के दक्षिणी ध्रुव पर चंद्रयान-3 मिशन की मदद से विक्रम लैंडर और प्रज्ञान रोवर को उतार कर इतिहास रच दिया था. इस मिशन की अवधि मात्र 14 दिन रखी गयी थी. ऐसा इसलिए था, क्योंकि चंद्रमा पर एक दिन पृथ्वी के 14 दिनों के बराबर होता है. चूंकि दिन के समय मशीनों को सूरज से ऊर्जा मिल सकती है, पर रात के समय चांद का तापमान ध्रुवों पर -200 डिग्री से भी नीचे चला जाता है. इतनी कड़ाके की ठंड उपकरण नहीं झेल पाते हैं और खराब हो जाते हैं. दिलचस्प यह है कि नासा का एक अंतरिक्ष यान वॉयजर-1 पिछले 46 वर्षों से लगातार काम कर रहा है और वह अभी सौर मंडल के बाहर जा चुका है. वह इतनी दूर है कि वहां सूर्य का प्रकाश भी ठीक से नहीं पहुंच पा रहा है. इस कारण वहां भीषण ठंड है. फिर भी वॉयजर लगातार काम कर रहा है. इसके लगातार काम करने का राज है – आरटीजी, जो यान को न सिर्फ गर्म रखता है, बल्कि उसको लगातार बिजली भी उपलब्ध कराता है.

क्या होता है आरटीजी

आरटीजी यानी रेडियोआइसोटोप थर्मोइलेक्ट्रिक जेनरेटर एक ऐसा जेनरेटर है, जिसमें ऊर्जा के लिए रेडियोएक्टिव तत्व प्लूटोनियम-238 का प्रयोग किया जाता है. ये जेनरेटर बहुत ही हल्के, छोटे और विश्वसनीय होते हैं. नासा इनका इस्तेमाल करीब 60 साल से कर रहा है. इन तत्वों की खासियत है कि इनका धीमी गति से प्राकृतिक रूप से क्षय होता रहता है, जिससे इनसे रेडियोएक्टिव किरणें निकलती रहती हैं. इस कारण इनसे तापमान का भी उत्सर्जन होता है. एक तरफ स्पेस का अत्यंत ठंडा वातावरण और दूसरी तरफ इन तत्वों से निकलनेवाली गर्मी इन दोनों का उपयोग एक खास तरह के डिवाइस में किया जाता है, जिन्हें थर्मोकपल्स कहते हैं, जो इस गर्मी को सीधे बिजली में बदल देते हैं. प्लूटोनियम डाइऑक्साइड का इस्तेमाल रेडियोआइसोटोप हीटर यूनिट में भी किया जाता है, जो अंतरिक्षयान को गर्म रखते हैं.

पेंसिल इरेजर के बराबर आकार

एक रेडियोआइसोटोप हीटर यूनिट में प्लूटोनियम का आकार मात्र एक पेंसिल इरेजर के आकार का होता है. हर यूनिट से एक वाट ऊर्जा का उत्पादन होता है. कई यूनिट की मदद से यान को गर्म रखा जाता है. आम भाषा में आरटीजी को न्यूक्लियर बैट्री भी कहा जाता है, पर यहां जान लेना जरूरी है कि यह कोई परमाणु रिएक्टर नहीं है और न ही इसमें मौजूद प्लूटोनियम का इस्तेमाल परमाणु बम बनाने के लिए किया जाता है. शुरुआत से लेकर अभी तक नासा के करीब 24 मिशन में इस रिएक्टर का उपयोग किया जा चुका है. इसरो ने भी आरटीजी के विकास के लिए अपने कदम बढ़ा दिये हैं. यह काम इसरो भाभा एटॉमिक रिसर्च सेंटर के साथ मिल कर करेगा.

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Prabhat Khabar News Desk
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