16.1 C
Ranchi

लेटेस्ट वीडियो

Bhulabhai Desai: भूलाभाई देसाई, वो वकील जिसने ब्रिटिश शासन को कठघरे में खड़ा कर दिया

Bhulabhai Desai: आज भूलाभाई देसाई की जन्मतिथि है. जिन्होंने अदालत की सन्नाटे में जब अंग्रेज जजों ने “गुनाहगार” कहा, तो एक आवाज गूंजी. “मैं कानून के सामने खड़ा हूं, लेकिन इतिहास के सामने सिर ऊँचा रखता हूं.” यह आवाज किसी क्रांतिकारी की नहीं, बल्कि एक वकील की थी. भूलाभाई देसाई, जिसने तर्क और साहस को हथियार बनाकर ब्रिटिश हुकूमत को अदालत में ललकारा था.

Bhulabhai Desai : भारत की आजादी की लड़ाई में अगर हथियारों से ज्यादा किसी ने असर छोड़ा, तो वो था शब्दों और तर्कों का शस्त्र. भूलाभाई देसाई—एक सधा हुआ वक्ता, तेजर्रार वकील और दूरदर्शी राजनेता—ने आजादी के आंदोलन में वह भूमिका निभाई जो अक्सर इतिहास की मोटी किताबों में हाशिये पर छूट जाती है. 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन के बाद चले ‘आईएनए ट्रायल’ में उन्होंने ब्रिटिश राज की न्याय व्यवस्था की नींव हिला दी.
भारत के स्वतंत्रता आंदोलन में कई चेहरे हैं — कुछ इतिहास की किताबों के पन्नों पर चमकते हैं, तो कुछ समय की धूल में दब गए. भूलाभाई देसाई दूसरा नाम हैं — एक ऐसे वकील, जिनकी ज़ुबान में आग थी, तर्क में धार थी, और जिनकी अदालत की बहसों ने ब्रिटिश हुकूमत की बुनियाद हिला दी. वे बॉम्बे बार के चमकते सितारे थे, लेकिन उन्होंने अपनी कानूनी प्रतिभा को सिर्फ नाम-शोहरत के लिए नहीं, बल्कि आजादी की लड़ाई में हथियार की तरह इस्तेमाल किया.

बॉम्बे बार का शेर: जब वकालत देशभक्ति बन गई

भूलाभाई देसाई बॉम्बे बार में एक कद्दावर व्यक्तित्व थे. उनकी तीक्ष्ण बुद्धि, वाक्पटुता और कानून में गहरी समझ के लिए वे मशहूर थे. लेकिन वे सिर्फ एक ‘लॉयर’ नहीं थे — वे एक लीगल वारियर थे. उन्होंने औपनिवेशिक शासन के खिलाफ अदालत को ही युद्ध का मैदान बना दिया.

उनकी सबसे बड़ी कानूनी लड़ाई 1945–46 में आईएनए ट्रायल (आजाद हिंद फौज मुकदमे) के दौरान हुई. यह सिर्फ एक केस नहीं था, यह भारत की आजादी की लड़ाई का एक नाटकीय सार्वजनिक मंच था और भूलाभाई इस रंगमंच के सबसे प्रभावशाली कलाकार बने.

Bhulabhai Desai1
Bhulabhai desai

लाल किला: अदालत नहीं, एक क्रांतिकारी रंगमंच था

5 नवंबर 1945, दिल्ली के लाल किले के अंदर एक ऐसा मुकदमा शुरू हुआ जिसे दुनिया भर ने देखा. शाहनवाज खान, प्रेम सहगल और गुरबख्श ढिल्लों पर ‘राजद्रोह’ का मुकदमा चल रहा था. ब्रिटिश हुकूमत चाहती थी कि इस ट्रायल के ज़रिए आजाद हिंद फौज की ‘गद्दारी’ साबित की जाए. लेकिन हुआ उल्टा — भूलाभाई देसाई ने अदालत में ऐसा तर्कजाल बुना जिसने उपनिवेशवाद को ही कठघरे में ला खड़ा किया.

इतिहासकार मृदुला मुखर्जी बताती हैं, “लाल किले में अपने बचाव के जरिए भूलाभाई ने एक ऐसे युद्ध को बहस में पुनर्जीवित किया जो जमीन पर पराजित हो चुका था. सुभाष बोस का भूत, हेमलेट के पिता की तरह, लाल किले की प्राचीर पर टहल रहा था.”

मैं गलत तरीकों का इस्तेमाल नहीं करूंगा — नैतिकता और फॉरेंसिक का संगम

भूलाभाई की अदालत में एक-एक जिरह उनकी असाधारण फोटोग्राफिक मेमरी, नैतिकता और रणनीतिक कौशल का प्रदर्शन थी. तेज बहादुर सप्रू, जवाहरलाल नेहरू और डॉ. केएन काटजू उनके साथ थे, लेकिन मुख्य रणनीति देसाई के हाथ में थी.

मृदुला मुखर्जी बताती हैं—किसी ने देसाई को सलाह दी कि एक गवाह को उसके पिता का जिक्र कर नर्वस किया जा सकता है. देसाई ने तुरंत कहा, “यह उचित नहीं है, मैं गलत तरीकों का उपयोग नहीं करूंगा.” अगले ही दिन, उन्होंने उसी गवाह को कानूनी तर्कों और याददाश्त की धार से ध्वस्त कर दिया.

एक सूबेदार से जिरह में उन्होंने जो कहा, वह महाधिवक्ता के रिकॉर्ड में दर्ज था. जब महाधिवक्ता ने आपत्ति की, देसाई ने शांतिपूर्वक कहा— इस अदालत में रिकॉर्ड जैसी भी कोई चीज रखी है. मेरा सुझाव है कि हम रिकॉर्ड को देखें. रिकॉर्ड खुला — और देसाई सही साबित हुए.

‘गद्दार’ नहीं, ‘मुक्ति के योद्धा’ थे आईएनए के सिपाही

भूलाभाई ने अपने तर्कों में आईएनए सैनिकों को राजद्रोही नहीं, बल्कि एक गुलाम राष्ट्र के योद्धा के रूप में पेश किया. उन्होंने कहा कि इंडियन नेशनल आर्मी कोई विद्रोही गिरोह नहीं, बल्कि “उचित रूप से गठित, स्व-शासित सेना है, जिसके पास अपना कोड, रैंक, वर्दी और पदक हैं.”

उन्होंने ब्रिटिश म्युनिसिपल लॉ की सीमाओं को लांघकर मामला अंतरराष्ट्रीय सार्वजनिक कानून के दायरे में खींच लिया. देसाई ने कहा — विदेशी शासन से मुक्ति पाने के लिए युद्ध करना पूर्णतया उचित है.
उन्होंने ब्रिटिश न्यायालय को चुनौती दी कि जिस युद्ध में भारतीयों ने ब्रिटेन के लिए जर्मनी और जापान से लड़ा, वैसा ही युद्ध अगर भारतीय अपनी आजादी के लिए ब्रिटेन के खिलाफ लड़ें तो उसे अवैध कैसे कहा जा सकता है?

Bhulabhai Desai
Jawaharlal nehru, rajendra prasad with bhulabhai desai

जब भारतीय अदालत में गूंजी अंतरराष्ट्रीय कानून की आवाज

भूलाभाई देसाई के तर्क सिर्फ भारत तक सीमित नहीं थे. उन्होंने औपनिवेशिक शासन की नैतिक और कानूनी वैधता पर अंतरराष्ट्रीय कानून के आधार पर हमला बोला.

“प्रभुत्व वाले राष्ट्रों को केवल शांति के नाम पर शाश्वत प्रभुत्व के अधीन नहीं किया जा सकता.”

मृदुला मुखर्जी बताती हैं कि यह वह दौर था जब अंतरराष्ट्रीय कानून की यूरोकेंद्रित नींव हिल रही थी. भूलाभाई के तर्कों ने इस विमर्श को नई दिशा दी.

जब अदालत से निकला आंदोलन, सड़कों पर उठा तूफान

अदालत ने 31 दिसंबर 1945 को तीनों आईएनए अधिकारियों को दोषी ठहराया, लेकिन असली जीत अदालत में नहीं, सड़कों पर हुई. नेहरू ने कहा—

“आईएनए ट्रायल ने भारत को स्वतंत्रता के पथ पर कई कदम आगे बढ़ाया है. भारतीय इतिहास में इससे पहले कभी भी इस तरह की एकीकृत भावनाएं और विचार प्रकट नहीं किए गए थे.”

इस मुकदमे के बाद 1946 में रॉयल इंडियन नेवी विद्रोह, ब्रिटिश भारतीय सेना में असंतोष और बड़े पैमाने पर सार्वजनिक विरोध ने ब्रिटिश शासन की नींव हिला दी. यह मुकदमा “भारत में औपनिवेशिक शासन के लिए ऊंट की पीठ तोड़ने वाला कहावत वाला तिनका” था.

स्वास्थ्य बिगड़ता गया, लेकिन बहस थमी नहीं

ट्रायल के दौरान देसाई का स्वास्थ्य लगातार गिरता गया. उनके पैर सूज गए थे, डॉक्टरों ने आराम की सलाह दी. लेकिन उन्होंने कहा—“मेरा कर्तव्य पहले है.”
उन्होंने दो दिनों तक बिना रुके 10-10 घंटे बहस की — बिना किसी नोट को देखे, बिना किसी की मदद के. आखिर काटजू के कहने पर उन्होंने थोड़ा पीछे हटने का फैसला किया, लेकिन तब तक उनका नाम इतिहास में दर्ज हो चुका था.

भारत में स्वतंत्रता का इतिहास अकसर गांधी और कांग्रेस पर केंद्रित रहा है, जबकि भूलाभाई जैसे व्यक्तित्वों की भूमिका को इतिहासकारों ने अपेक्षाकृत कम दर्ज किया है.

आजादी से पहले चला गया वो योद्धा

आईएनए ट्रायल के बाद भूलाभाई देसाई का बॉम्बे में ‘रॉकस्टार’ की तरह स्वागत हुआ. लेकिन इतिहास की एक विडंबना यह भी है कि जिस व्यक्ति ने अदालत में भारत की आजादी के लिए जिरह की, वह स्वतंत्र भारत को देखने के लिए जीवित नहीं रहा.

6 मई 1946 को भूलाभाई देसाई का निधन हो गया. उसी वर्ष बॉम्बे के एक और बेटे ने डायरेक्ट एक्शन प्लान लॉन्च किया — जिसने उनके सपनों के भारत को खंडित कर दिया. आज भूलाभाई की स्मृति एक सड़क तक सिमट गई है — ब्रीच कैंडी और महालक्ष्मी मंदिर को जोड़ने वाली ‘भूलाभाई देसाई रोड’. कुछ लोग अब भी इसे ‘वार्डन रोड’ कहते हैं.

Bhulabhai Desai 1
Bhulabhai desai with c. Rajagopalachari 

इतिहास को उसका नायक लौटाने का समय

भूलाभाई देसाई को इतिहास में वह जगह अब तक नहीं मिली जिसकी वे हकदार हैं. उन्होंने अदालत को स्वतंत्रता संग्राम का अखाड़ा बना दिया. उन्होंने कानून को हथियार बनाया, और उपनिवेशवाद को उसके ही तर्कों से पराजित किया.

उनका यह वक्तव्य आज भी गूंजता है—
“संसार में सभी व्यक्ति स्वतंत्र जन्म लेते हैं और उन्हें स्वतंत्र रहने का अधिकार है.”

भारत की स्वतंत्रता की गाथा में भूलाभाई देसाई वह नायक हैं, जिनकी बहसों ने साम्राज्य को झुकाया, और जिनकी आवाज़ ने एक राष्ट्र को एकजुट किया. उन्हें याद करना सिर्फ अतीत को जानना नहीं, स्वतंत्रता के अर्थ को फिर से समझना है.

Also Read: Ram Manohar Lohia : लोग मेरी बात सुनेंगे, शायद मेरे मरने के बाद, कहानी राम मनोहर लोहिया की

Pratyush Prashant
Pratyush Prashant
कंटेंट एडिटर. लाड़ली मीडिया अवॉर्ड विजेता. जेंडर और मीडिया में पीएच.डी. . वर्तमान में प्रभात खबर डिजिटल के बिहार टीम में काम कर रहे हैं. साहित्य पढ़ने-लिखने में रुचि रखते हैं.

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

संबंधित ख़बरें

Trending News

जरूर पढ़ें

वायरल खबरें

ऐप पर पढें
होम आप का शहर
News Snap News Reel