Ram Manohar Lohia: राम मनोहर लोहिया का समाजवाद केवल आर्थिक संसाधनों का पुनर्वितरण तक सीमित नहीं था. उनके लिए समाजवाद समाज के हर वर्ग, हर व्यक्ति को सम्मान और समान अवसर देने का अभियान था. उनका लोकतंत्र का दर्शन यह कहता था कि लोकतंत्र सिर्फ शासन की पद्धति नहीं, बल्कि विषमताओं, अन्याय और गैरबराबरी को मिटाने का उपकरण होना चाहिए. उनके समाजवाद में ‘सिविल नाफरमानी’ और ‘सप्तक्रांति’ के सिद्धांतों का विशेष महत्व था.
सिविल नाफरमानी और लोकतंत्र का हथियार
लोहिया के अनुसार बदलाव का सबसे बड़ा हथियार था सिविल नाफरमानी. उन्होंने इसे यूनानी दर्शन और गांधी की अहिंसा से जोड़ा. उनका मानना था कि व्यक्ति अकेले भी अत्याचार और अन्याय के खिलाफ खड़ा हो सकता है.
लोहिया मानते थे कि सिविल नाफरमानी केवल विरोध नहीं, बल्कि बदलाव का हथियार है. उन्होंने सुकरात, और गांधी से प्रेरणा ली और इसे लोकतांत्रिक संघर्ष में तब्दील किया. लोहिया स्वयं को ‘कुजात गांधीवादी’ कहते थे, उन्होंने गांधीजी की अहिंसा की अवधारणा में संशोधन किया -‘ मारेंगे नहीं, पर मानेंगे भी नहीं’. इसमें आधा हिस्सा गांधी जी के अहिंसा का आदर्श है, दूसरा हिस्सा राम मनोहर लोहिया का है. उनका समाजवाद ‘समता से सम्पन्नता’, ‘सप्तक्रांति से समाजवाद’ और ‘सिविल नाफरमानी से लोकतंत्र’ के त्रिकोणीय सिद्धांतों पर खड़ा था.
उनकी समाजवादी सोच में यह भी था कि राजनीतिक और सामाजिक संस्थाएं मिलकर ही असमानता मिटा सकती हैं. राष्ट्रीय स्तर पर चौखंभा राज और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ‘विश्व पंचायत’ उनके शासन मॉडल का आधार थे.

संपत्ति का मोह छोड़ो, समाज में बराबरी दो
लोहिया के समाजवाद का मूल संदेश यह था कि संपत्ति का समान वितरण केवल उपागम है, असली मकसद है संपत्ति के मोह को खत्म करना. उन्होंने कहा:
“इसमें संपति के समान वितरण के साथ-साथ संपत्ति के मोह को समाप्त करने की प्रतिबद्धता है जिससे कि संपत्ति अर्जित करने की होड़ खत्म हो और समाज के सभी वर्गों को राष्ट्रीय संपत्ति के उपभोग में उचित एवं समान हिस्सेदारी मिले.”
उनका समाजवाद जाति, लिंग, रंग, वर्ग और धर्म के भेद को मिटाने का एक सम्पूर्ण दृष्टिकोण था. उनका मानना था कि सिर्फ आर्थिक सुधार पर्याप्त नहीं हैं, सामाजिक और सांस्कृतिक सुधार भी उतने ही जरूरी हैं.
जाति और योनि: लोहिया की सबसे बड़ी चुनौती
लोहिया के लिए भारत की सबसे बड़ी सामाजिक बीमारी थी ‘जाति’ और ‘योनि’ (जेंडर) का भेदभाव. उन्होंने स्पष्ट कहा:
“जाति-तोड़ो. जीभ से तो सभी कहते हैं कि जात-पात टूटनी चाहिए, लेकिन दरअसल जात-पात तोड़ने का कोई नहीं करता. जात-पात के भेद मिटाने चाहिए, यह काफी चालक जुमला है.”
उनका दृष्टिकोण यह था कि जाति व्यवस्था को ही खत्म किया जाना चाहिए. पिछड़ा वर्ग, दलित, आदिवासी, मुस्लिम, ईसाई और अन्य अल्पसंख्यकों के लिए समान अवसर सुनिश्चित करना उनकी प्राथमिकता थी. जब बात महिलाओं की होती थी, तो लोहिया और भी स्पष्ट हो जाते थे. उनके अनुसार, एक औरत समाज में सबसे अधिक शोषित होती है. उन्होंने कहा:
“जो लोग यह सोचते हैं कि आधुनिक अर्थतंत्र के द्वारा गरीबी मिटाने के साथ ही साथ ये कठघरे अपने आप ही खत्म हो जाएँगे, बड़ी भारी भूल करते हैं. गरीबी और ये कठघरे एक दूसरे के कीटाणुओं पर पनपते हैं.”
लोहिया का संदेश था कि औरतों की समानता सिर्फ कानून से नहीं आती, बल्कि समाज की सोच और व्यवहार में बदलाव से आती है.
औरतों की स्थिति और लोहिया का दृष्टिकोण

लोहिया महिलाओं के लिए समाज और परिवार में समानता के सख्त समर्थक थे. उन्होंने कहा:
“लड़की की शादी करना माँ-बाप की जिम्मेदारी नहीं, अच्छा स्वास्थ्य और अच्छी शिक्षा दे देने पर उनकी जिम्मेदारी खत्म हो जाती है. यदि कोई लड़की इधर-उधर घूमती है और दुर्घटना वश उसका अवैध बच्चा होता है, तो यह औरत और मर्द के बीच स्वाभाविक सम्बन्ध हासिल करने का हिस्सा है, उसके चरित्र पर किसी तरह का कलंक नहीं.”
उनके अनुसार, केवल दो ही अपराध अक्षम्य हैं — बलात्कार और झूठ बोलना. यह दृष्टिकोण उनके समय के लिए क्रांतिकारी था और आज भी प्रासंगिक है.
हिंदी, अंग्रेजी और असली आधुनिकता
लोहिया भाषाओं के जानकार थे — हिंदी, मराठी, बंगला, अवधी, अंग्रेजी, जर्मन. लेकिन उनकी अंग्रेजी से नफरत केवल गुलामी के प्रतीक के रूप में थी. उन्होंने साफ कहा:
मैं अंग्रेजी का घोर शत्रु हो गया हूं इसे खत्म करना चाहिए. हमारे यहां अदालत, कचहरी, बहीखाता, पढ़ाई-लिखाई, सरकारी दफ्तरों आदि में अंग्रेजी का जो प्रभाव हो गया है, उसको हमेशा के लिए खत्म करना चाहिए.”
लोहिया अंग्रेजी विरोध को हिंदी प्रचार से जोड़ने के विरोधी थे:
अंग्रेजी को हटाने का काम आप हिंदी भाषा के प्रचार के साथ मत जोड़ देना. दोनों में फर्क है. हिंदी का जो रचनात्मक काम है, उसको करो.
उनके लिए आधुनिकता भाषा में नहीं, सोच में थी. अंग्रेजी सिर्फ एक औजार थी, असली विकास तो विज्ञान, तकनीक और मानवता के मूल्यों में है.

जातीय और धार्मिक एकता
लोहिया जाति, धर्म, वर्ण, भाषा और भूगोल के आधार पर पाखंड और कर्मकांड के विरोधी थे. उन्होंने हमेशा साफ कहा कि समाज में समानता लाना ही असली लक्ष्य है. उनके लिए समाजवाद सिर्फ आर्थिक व्यवस्था नहीं, बल्कि सामाजिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक न्याय का रास्ता था.
लोहिया का समाजवाद विकासशील और विकसित देशों के बीच असमानता को मिटाने की सोच पर आधारित था. उनका मानना था कि केवल राजनीतिक अधिकार पर्याप्त नहीं हैं, बल्कि आर्थिक और सामाजिक अधिकार भी समान रूप से सभी को मिलने चाहिए.
लोहिया का संदेश आज भी प्रासंगिक
आजादी के 75 साल बाद भी भारत लोहिया के सपनों से अधूरा है. जाति, लिंग, धर्म और वर्ग के भेद अभी भी समाज में मौजूद हैं. लेकिन लोहिया की सोच हमें यह याद दिलाती है कि बदलाव हमेशा संभव है.
“लोग मेरी बात सुनेंगे, शायद मेरे मरने के बाद, लेकिन किसी दिन सुनेंगे जरूर.”
लोहिया का समाजवाद आज भी हमें यह सिखाता है कि असली विकास केवल तकनीक या धन से नहीं, बल्कि इंसानियत, समानता और न्याय से आता है.

संदर्भ सूची
अशोक पंकज, लोहिया के सपनों का भारत, लोकभारती प्रकाशन, प्रयागराज
विनोद तिवारी, बद्री नारायण, विचारों के आईना, राममनोहर लोहिया, लोकभारती प्रकाशन, प्रयागराज
राममनोहर लोहिया, आचरण की भाषा, लोकभारती प्रकाशन, प्रयागराज
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