नयी दिल्ली. निर्भया गैंगरेप मामले में सुप्रीम कोर्ट ने दोषियों की फांसी की सजा को बरकरार रखा है. सुप्रीम कोर्ट ने चारों दोषियों अक्षय ठाकुर, पवन गुप्ता, मुकेश सिंह और विनय शर्मा को फांसी की सजा बरकरार रखते हुए कहा कि समाज में संदेश देना बहुत जरूरी था. बचाव पक्ष कोर्ट से फैसले से असंतुष्ट है.
हालांकि, बचाव पक्ष के पास कुछ कानूनी अधिकार हैं जिससे वो इस फैसले कि खिलाफ अपील कर सकता है. इसके तहत चारों आरोपी सुप्रीम कोर्ट में पुनर्विचार याचिका दायर कर सकते हैं. पुनर्विचार याचिका पर कार्यवाही करनेवाली बेंच में, फांसी की सजा सुनानेवाली पीठ से ज्यादा सदस्य होने चाहिए. इस मामले में, तीन और जजों को पुनर्विचार याचिका पर कार्यवाही करनेवाली बेंच में शामिल होना होगा. अगर, इस याचिका के बावजूद फांसी की सजा स्थगित नहीं होती है, तो बचाव पक्ष कोर्ट में ‘क्युरेटिव पिटीशन’ डाल सकता है.
अंत में दोषियों के पास फांसी की सजा के खिलाफ, राष्ट्रपति के समक्ष दया याचिका दायर करने का भी विकल्प होगा. संविधान के अनुच्छेद 72 के अनुसार राष्ट्रपति फांसी की सजा को माफ कर सकते हैं, दोषियों को क्षमा दे सकते हैं, सजा को खारिज कर सकते हैं या फिर उसे बदल भी सकते हैं. हालांकि, क्षमा देने का फैसला पूरी तरह से राष्ट्रपति का निजी निर्णय नहीं होता. उन्हें केंद्रीय मंत्रिमंडल से सलाह कर इस फैसले को अमली जामा पहनाना होता है.
बचाव पक्ष के वकील बोले, मानवाधिकार की धज्जियां उड़ीं
फैसले के बाद दोषियों के वकील एपी सिंह ने कहा कि हम फैसले से खुश नहीं हैं, हम पुनर्विचार याचिका डालेंगे. यह मानवाधिकारों का हनन है. फैसला आने से एपी सिंह ने कहा कि जो भी अपराधी हैं वह आदतन अपराधी नहीं हैं, इनका कोई भी अपराधिक रिकॉर्ड नहीं है. हमारा देश गांधी के आदर्शों पर चलनेवाला देश है, हम हिंसा को बढ़ावा क्यों दे रहे हैं. सिंह ने कहा कि समाज में संदेश देने के लिए किसी को फांसी नहीं दे सकते हैं. सिंह ने कहा कि जो दोषी हैं वो अभी बच्चे हैं, सभी बेरोजगार हैं. अक्षय कुमार बिहार के औरंगाबाद से आया है वो बेरोजगार था. विनय कुमार बीए का छात्र था और जिम ट्रेनर के तौर पर कार्यरत था. पवन गुप्ता अपने पिता के साथ काम कर रहा था. सभी पढ़ रहे थे.