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राष्ट्रपति चुनाव में टकराव की जमीन तैयार, खत्म हो रहे सर्वसम्मति के आसार

नयी दिल्ली : वर्ष 2007 और 2012 की तरह वर्ष 2017 में भी राष्ट्रपति चुनाव की जमीन तैयार हो रही है. विपक्ष ने जिस तरह से सरकार के खिलाफ अपना साझा उम्मीदवार खड़ा करने की तैयारियां शुरू की है, उससे यह स्पष्ट हो गया है कि देश के प्रथम नागरिक को चुनने के लिए चुनाव […]

नयी दिल्ली : वर्ष 2007 और 2012 की तरह वर्ष 2017 में भी राष्ट्रपति चुनाव की जमीन तैयार हो रही है. विपक्ष ने जिस तरह से सरकार के खिलाफ अपना साझा उम्मीदवार खड़ा करने की तैयारियां शुरू की है, उससे यह स्पष्ट हो गया है कि देश के प्रथम नागरिक को चुनने के लिए चुनाव ही एकमात्र विकल्प रह गया है. हर बीतते दिन और विपक्ष की गोलबंदी के साथ राष्ट्रपति चुनाव में सर्वसम्मति के आसार खत्म होते जा रहे हैं.

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दरअसल, कांग्रेस आलाकमान सोनिया गांधी के नेतृत्व में इस बार विपक्ष अपना सर्वसम्मत उम्मीदवार तलाश रहा है. हालांकि, अभी तक यह स्पष्ट नहीं है कि विपक्ष किसे अपना उम्मीदवार बनाना चाहता है. लेकिन, जनता दल यूनाइटेड के नेता शरद यादव ने कहा है कि यदि राष्ट्रपति चुनाव में विपक्ष अपना साझा उम्मीदवार खड़ा करते हैं, तो वर्ष 2019 के आम चुनावों में महागंठबंधन की जमीन भी तैयार हो जायेगी.

चुनाव आयोग द्वारा राष्ट्रपति चुनाव की तारीखों के एलान से पहले विपक्षी दलों के बीच अपना उम्मीदवार फाइनल करने की कवायद ने भाजपा को मौका दे दिया है. भाजपा अब अपना उम्मीदवार खड़ा कर सर्वसम्मति न बनने के लिए विपक्ष को जिम्मेदार ठहरायेगी. खबर है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कोई ऐसा उम्मीदवार मैदान में उतारेंगे, जो विपक्ष को भी चौंका देगा.

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यहां बताना प्रासंगिक होगा कि वर्ष 2002 में भाजपा नीत एनडीए सरकार ने डॉ एपीजे अब्दुल कलाम को सर्वसम्मतिसे राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बनाया था. तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी और कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने खुद कलाम के लिए नामांकन पत्र का एक-एक सेट दाखिल किया था. सिर्फ वामदलों ने अपना अलग उम्मीदवार खड़ा किया था.

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भाजपा के एक बड़े नेता ने कहा है कि विपक्ष अपना उम्मीदवार खड़ा करता है, तो सरकार के पास चुनाव लड़ कर जीतने के अलावा कोई रास्ता नहीं बचेगा. हालांकि, उन्होंने कहा कि अगर विपक्ष सर्वसम्मति का आदर करता है, तो सरकार इसका स्वागत करेगी.

ज्ञात हो कि वर्ष 2007 में जब यूपीए ने प्रतिभा पाटील का नाम राष्ट्रपति चुनाव के लिए आगे किया, तो तत्कालीन उपराष्ट्रपति और वरिष्ठ भाजपा नेता भैरोंसिंह शेखावत ने चुनाव लड़ने का एलान कर दिया. ऐसे मेंभाजपा को चुनाव का रास्ता अख्तियार करना पड़ा.

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वर्ष 2012 में प्रणब मुखर्जी का नाम तय करने से पहले यूपीए को काफी मशक्कत करनी पड़ी थी. कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने विपक्ष के नेताओं से सर्वसम्मति से चुनाव के लिए समर्थन मांगा, लेकिन तृणमूल कांग्रेस की सुप्रीमो ममता बनर्जी और समाजवादी पार्टी के मुखिया मुलायम सिंह यादव इसके लिए तैयार नहीं थे. उधर, एक हफ्ते बादभाजपा की मदद से पीए संगमा भी चुनाव में कूद पड़े थे.

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