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‘आपरेशन ककून” का नेतृत्व करने वाले विजय कुमार लिख रहे हैं वीरप्पन पर किताब

नयी दिल्ली : कुख्यात डकैत वीरप्पन के मारे जाने के करीब 12 साल बाद उस पर के विजय कुमार एक किताब लिख रहे हैं. सेवानिवृत्त आईपीएस अधिकारी कुमार ने ही ‘आपरेशन ककून’ का नेतृत्व किया था जिसमें वीरप्पन मारा गया था. कुमार इस समय वीरप्पन पर करीब 1,000 पृष्ठ की पुस्तक लिख रहे हैं. वीरप्पन […]

नयी दिल्ली : कुख्यात डकैत वीरप्पन के मारे जाने के करीब 12 साल बाद उस पर के विजय कुमार एक किताब लिख रहे हैं. सेवानिवृत्त आईपीएस अधिकारी कुमार ने ही ‘आपरेशन ककून’ का नेतृत्व किया था जिसमें वीरप्पन मारा गया था.

कुमार इस समय वीरप्पन पर करीब 1,000 पृष्ठ की पुस्तक लिख रहे हैं. वीरप्पन ने दो दशक से अधिक समय तक दक्षिण के तीन राज्यों- तमिलनाडु, कर्नाटक और केरल में 6,000 वर्ग किलोमीटर के घने जंगलों में राज किया था और 200 से अधिक हाथियों को मारकर सैकड़ों करोड़ रुपये मूल्य के हाथी दांतों की तस्करी की थी. साथ ही उसने 180 से अधिक लोगों की हत्या की थी जिनमें ज्यादातर पुलिस और वन विभाग के अधिकारी थे.
सीआरपीएफ के प्रमुख के तौर पर सेवानिवृत्त होने के बाद गृह मंत्रालय में वरिष्ठ सुरक्षा सलाहकार के तौर पर अपनी सेवाएं दे रहे कुमार ने कहा, ‘‘ यह मेरे अपने अनुभवों का संकलन है. मेरा उद्देश्य एक स्पष्ट और सही तस्वीर पेश करना है कि कैसे वीरप्पन मारा गया.” कुमार ने वीरप्पन को पकड़ने या मारने के लिए चलाए गए ‘ऑपरेशन ककून’ की अगुवाई की थी. दिलचस्प है कि वीरप्पन के जीवन और उसके मारे जाने की घटनाओं पर राम गोपाल वर्मा निर्देशित एक हिंदी फिल्म पिछले पखवाडे ही रिलीज हुई है.
1975 बैच के आईपीएस अधिकारी कुमार ने कहा, ‘‘ मेरी पुस्तक एक सच्ची कहानी होगी. सुरक्षा कारणों से मैं कुछ लोगों के नाम का खुलासा नहीं करुंगा. अन्यथा इस आपरेशन का प्रत्येक विवरण मेरी पुस्तक में होगा.” रपटों के मुताबिक, ‘आपरेशन ककून’ की योजना 10 महीने के लिए बनाई गई थी और इस दौरान एसटीएफ के जवान उन गांवों में हाकर, मिस्त्री और स्थानीय सेवा कर्मियों के तौर पर घुसे जहां वीरप्पन आया जाया करता था.
जिस दिन वीरप्पन को मारा गया, उस दिन वह साउथ आरकोट में अपनी आंख का इलाज कराने की योजना बना रहा था. वह दिन था 18 अक्तूबर, 2004. वीरप्पन को धर्मापुरी जिले में पपिरापति गांव में खड़ी एंबुलेस तक ले जाया गया. वह एंबुलेंस वास्तव में पुलिस का वाहन था और वीरप्पन को उस पुलिसकर्मी ने वहां पहुंचाया जिसने वीरप्पन के गिरोह में घुसपैठ की थी.
उस गांव में एसटीएफ के जवानों का एक समूह पहले से तैनात था, कुछ सुरक्षाकर्मी सड़क पर सुरक्षा टैंकरों में छिपे थे और अन्य झाडियों में छिपे थे. उस एंबुलेंस का ड्राइवर जो पुलिसकर्मी था, वहां से सुरक्षित निकल गया. पुलिस की रिपोर्ट के मुताबिक, वीरप्पन और उसके गिरोह को पहले चेतावनी दी गई और फिर आत्मसमर्पण करने को कहा गया जिस पर गिरोह ने एसटीएफ के जवानों पर गोलीबारी शुरू कर दी. जवाबी कार्रवाई में वीरप्पन घटनास्थल पर ही मारा गया, जबकि उसके गिरोह के लोगों ने अस्पताल ले जाते समय एंबुलेंस में दम तोड़ दिया था.

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