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सरकार ने कोहिनूर हीरे के मुद्दे पर मारी पलटी

नयी दिल्ली : कोहिनूर हीरे के मुद्दे पर सरकार ने पलटी मारते हुए कहा कि वह बेशकीमती हीरे को वापस लाने के लिए पूरा प्रयास कर रही है. सरकार भी चाहती है कि भारत का वह अनमोल रत्न स्वदेश वापस आए. बीती रात सरकार ने एक बायन जारी करके ये बातें कही. हालांकि पहले उसने […]

नयी दिल्ली : कोहिनूर हीरे के मुद्दे पर सरकार ने पलटी मारते हुए कहा कि वह बेशकीमती हीरे को वापस लाने के लिए पूरा प्रयास कर रही है. सरकार भी चाहती है कि भारत का वह अनमोल रत्न स्वदेश वापस आए. बीती रात सरकार ने एक बायन जारी करके ये बातें कही. हालांकि पहले उसने उच्चतम न्यायालय में कहा था कि इसे ब्रिटिश शासकों द्वारा ‘न तो चुराया गया था और न ही जबरन छीना’ गया था, बल्कि पंजाब के शासकों ने इसे दिया था.

सरकार ने एक बयान में कहा कि मीडिया में ‘जो बात गलत ढंग से पेश की जा रही है’ उसके विपरीत उसने अभी अपनी राय से अदालत को अवगत नहीं कराया है. इससे एक दिन पहले सॉलीशीटर जनरल ने उच्चतम न्यायालय में कहा, ‘‘यह नहीं कहा जा सकता कि कोहिनूर को चुराया अथवा जबरन ले जाया गया है क्योंकि इसे महाराजा रंजीत सिंह के उत्तराधिकारी ने ईस्ट इंडिया कंपनी को सिख योद्धाओं की मदद की एवज में 1849 में दिया था.’

न्यायालय एक जनहित याचिका पर सुनवाई कर रहा था जिसमें मांग की गई है कि सरकार ब्रिटेन से 20 करोड डॉलर से अधिक कीमत का कोहिनूर हीरा वापस लाने के लिए कदम उठाए. आधिकारिक विज्ञप्ति में कहा गया है कि इस मुद्दे पर आई खबरें ‘तथ्यों पर आधारित नहीं हैं’. इसमें कहा गया है कि सरकार कोहिनूर को मैत्रीपूर्ण ढंग से कोहिनूर हीरे को वापस लाने के लिए हर संभव प्रयास करने के अपने संकल्प को दोहराती है.

क्या है विज्ञप्ति में
विज्ञप्ति में कहा गया है कि वास्तविक स्थिति यह है कि मामला इस समय न्यायालय के विचाराधीन है और जनहित याचिका को अभी स्वीकार किया जाना बाकी है. इसमें कहा गया है, ‘‘ भारत के सोलिसिटर जनरल से कहा गया था कि वह भारत सरकार के विचार जानें जो अब तक नहीं बताए गए हैं. भारत के सोलिसिटर जनरल ने माननीय अदालत को हीरे के इतिहास के बारे में सूचित किया और एएसआई द्वारा उपलब्ध कराए गए मौजूदा व्याख्यानों के आधार पर एक मौखिक बयान दिया था.’ ‘‘ इसलिए यह दोहराया जाना चाहिए कि भारत सरकार ने अभी तक अदालत को अपने विचारों से अवगत नहीं कराया गया है.’ विज्ञप्ति में यह भी कहा गया है कि अदालत ने सोलिसिटर जनरल की अपील पर छह सप्ताह का समय दिया ताकि वह इस मामले में अपना जवाब देने के लिए निर्देश ले सकें. विज्ञप्ति में कहा गया है, ‘‘इसमें भारत के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरु के 1956 के विचारों को भी पेश किया है. पंडित नेहरु ने रिकार्ड में यह बात कही थी कि इस खजाने को वापस लाने का दावा करने का कोई आधार नहीं है. उन्होंने साथ ही यह भी कहा था कि कोहिनूर को वापस लाने के प्रयासों से मुकिश्लें पैदा होंगी।’ विज्ञप्ति में कहा गया है कि नरेन्द्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद उनके प्रयासों से भारतीय इतिहास की तीन कलाकृतियां स्वदेश वापस आयी हैं जिनसे संबंधित देशों के साथ रिश्ते प्रभावित नहीं हुए.

दिग्विजय ने भाजपा की आलोचना की

कांग्रेस के महासचिव दिग्विजय सिंह ने ब्रिटेन से कोहिनूर हीरे को स्वदेश लाने के मुद्दे पर उच्चतम न्यायालय में भाजपा नीति राजग सरकार के रुख की आलोचना की. उच्चतम न्यायालय में एक जनहित याचिका पर सुनवाई के दौरान संस्कृति मंत्रालय ने कहा कि कोहिनूर को जबरदस्ती ले जाया गया या चुराया गया नहीं कहा जा सकता क्योंकि इसे महाराजा रणजीत सिंह के उत्तराधिकारियों ने सिख युद्धों में उनकी मदद के लिए 1849 में ईस्ट इंडिया कंपनी को मुआवजे के तौर पर दिया था. यहां राघोगढ में संवाददाताओं से बातचीत में सिंह ने कहा, ‘‘ भाजपा जब विपक्ष में थी तो यह आरोप लगाया करती थी कि कांग्रेस कोहिनूर को वापस देश में नहीं ला रही है. लेकिन अब वह इसे लिखित तौर पर उच्चतम न्यायालय में दे रही है कि इसे उपहार में दिया गया न कि ले जाया गया.’

एसजीपीसी ने केंद्र सरकार पर निशाना साधा

सिख गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी (एसजीपीसी) ने केंद्र सरकार के इस रुख के लिए उस पर निशाना साधा है कि ब्रिटिश शासक कोहिनूर हीरा न तो ‘जबरन’ और न ही ‘चुरा कर ले गए थे. एसजीपीसी के अध्यक्षत अवतार सिंह मक्कड ने कहा कि केंद्रीय संस्कृति मंत्रालय ने उच्चतम न्यायालय में जो रुख अपनाया उससे संस्था को घोर आपत्ति और असहमति है. उन्होंने कहा, ‘‘एसजीपीसी मंत्रालय के इस रुख की कडी निंदा करती है.’ मक्कड ने कहा कि इतिहास के अनुसार 1849 में ब्रिटिश सरकार का लाहौर महल पर कब्जा था और ‘उस वक्त लॉर्ड डलहौजी ने कोहिनूर महाराजा दलीप सिंह से जबरन छीना था. ‘ उन्होंने दावा किया कि कोहिनूर सिख समुदाय का है और इसे वापस लाकर एसजीपीसी के सुपुर्द किया जाना चाहिए.

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