नयीदिल्ली : बांग्लादेशी लेखिका तस्लीमा नसरीन ने आज कहा कि ‘‘कुछ खराब घटनाएं” भारत को ‘‘असहिष्णु” नहीं बना देती है और उनमें शामिल लोगों को अधिक समावेशी होने की शिक्षा दी जानी चाहिए. झारखंड में हाल ही में भीड़ द्वारा दो मवेशी व्यापारियों की हत्या कर उन्हें पेड़ से लटकाने की घटना, पिछले वर्ष दादरी में भीड द्वारा की गयी हत्या, तर्कवादी गोविन्द पानसरे की हत्या, नरेन्द्र दाभोलकर और एमएम कलबुर्गी की हत्या की लेखिका ने निंदा की.
तस्लीमा ने कहा, ‘‘यह असहिष्णुता नहीं है, गोमांस खाने या अलग विचार रखने को लेकर लोगों की हत्या करना जघन्य अपराध है. लेकिन कुछ खराब घटनाओं के कारण, मैं भारत के 1.24 अरब लोगों को असहिष्णु नहीं कह सकती. हर जगह कुछ लोग असहिष्णु होते हैं. सीआइआइ यंग इंडिया की ओर से आयोजित एक कार्यक्रम में तस्लीमा ने उपरोक्त बातें कहीं. कार्यक्रम में पूर्व आइपीएस अधिकारी किरन बेदी, ट्रांसजेंडर कार्यकर्ता लक्ष्मी नारायण त्रिपाठी आदि ने भी हिस्सा लिया.
1994 में लिखे अपने उपन्यास के कारण अपने देश में कट्टरपंथियों का विरोध झेलने के बाद से स्वनिर्वसन में रह रहीं 53 वर्षीय बांग्लादेशी लेखिका ने कहा कि वह भारत को असहिष्णु नहीं कहना चाहतीं क्योंकि भारत के कानून और संविधान सहिष्णु हैं. तस्लीमा ने कहा, अन्य किसी भी समाज की भांति भारतीय समाज में भी कुछ लोग असहिष्णु हैं. यह महिलाओं के प्रति असम्मान का रुख रखने वाला पैतृक समाज है जहां ज्यादातर पुरुष, महिलाओं के प्रति, उंची जाति के लोग निचली जाति के लोगों के प्रति, धनी लोग गरीबों के प्रति, विषमलिंगी लोग समलैंगिकों और ट्रांसजेंडर के प्रति असहिष्णु हैं. उनके अनुसार, देश में कुछ असहिष्णु लोगों का होना असामान्य नहीं है.
लेखिका ने कहा, यह बहुत असामान्य नहीं है कि कुछ लोग असहिष्णु हैं, लेकिन उन लोगों को शिक्षित किया जाना चाहिए. हमें उन्हें असहिष्णु नहीं होने की शिक्षा देनी चाहिए. अच्छे कानून हैं और उन्हें सजा दी जा सकती है.