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आपातकाल के कोख से राजनेताओं के नयी पीढ़ी ने जन्म लिया: पीएम मोदी

नयी दिल्ली: प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 25 जून 1975 से 21 मार्च 1977 तक लगे आपातकाल को लोकतंत्र पर सबसे बडा आघात करार देते हुए आज यहां कहा कि इसकी यादों को बनाये रखने की जरुरत है ताकि देश के लोकतांत्रिक ढांचे और मूल्यों को और मजबूत बनाने के लिए इससे सबक लिया जा सके. […]

नयी दिल्ली: प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 25 जून 1975 से 21 मार्च 1977 तक लगे आपातकाल को लोकतंत्र पर सबसे बडा आघात करार देते हुए आज यहां कहा कि इसकी यादों को बनाये रखने की जरुरत है ताकि देश के लोकतांत्रिक ढांचे और मूल्यों को और मजबूत बनाने के लिए इससे सबक लिया जा सके. उन्होंने कहा कि आपातकाल के खिलाफ संघर्ष ने नई पीढी के नेताओं और देश में नई तरह की राजनीति को जन्म दिया.

लोकतंत्र के प्रहरी कार्यक्रम में प्रधानमंत्री ने कहा, ‘‘ आपातकाल लोकतंत्र पर सबसे बडा आघात था. उस अवधि में देश को संकट के जिस दौर से गुजरना पडा, उसने भारतीय लोकतंत्र को संतुलित किया और वह मजबूत होकर निकला. मैं उन लोगों का आभारी हूं जिन्होंने इसके खिलाफ संघर्ष किया और लडे. ‘ मोदी ने इस अवसर पर आपातकाल के खिलाफ संघर्ष करने वालों और जेल जाने वाले कुछ लोगों को सम्मानित भी किया. मोदी ने कहा, ‘‘ आपातकाल को इस रुप में याद नहीं किया जाना चाहिए कि तब क्या हुआ था बल्कि इसे हमारे देश के लोकतांत्रिक ढांचे और मूल्यों को और मजबूत बनाने के संकल्प के रुप में याद रखे जाने की जरुरत है.’

लोकनायक जयप्रकाश नारायण की 113वीं जयंती पर श्रद्धांजलि देते हुए प्रधानमंत्री ने कहा कि जयप्रकाश नारायण एक संस्थान थे, वह एक प्रकाशपुंज और आदर्श थे और आपातकाल के दौरान एक नई राजनीतिक पीढी ने जन्म लिया जो जेपी की प्रेरणा से लोकतांत्रिक मूल्यों के प्रति पूरी तरह से समर्पित थी. इस समारोह में मोदी ने आपाकताल के खिलाफ संघर्ष करने वालों को सम्मानित किया जिनमें भाजपा के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी, शिरोमणि अकाली दल के प्रकाश सिंह बादल, चार राज्यपाल कल्याण सिंह, ओ पी कोहली, बलराम दास टंडन और बजूभाई वाला, लोकसभा के पूर्व डिप्टी स्पीकर करिया मुंडा के अलावा भाजपा नेता वी के मल्होत्रा, जयंती बेन मेहता और सुब्रमण्यम स्वामी शामिल हैं.इससे पहले प्रधानमंत्री पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के आवास पर जाकर उनसे मिले. मोदी ने राजग के पूर्व संयोजक जार्ज फर्नाडिस के आवास पर भी जाकर उनसे भेंट की जिन्होंने उन दिनों में लोकतंत्र के लिए संघर्ष में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की थी.

प्रधानमंत्री ने कहा, ‘‘ आपातकाल विरोधी संघर्ष से जो सबसे बडा संदेश निकल कर सामने आया, वह दमन के खिलाफ संघर्ष करने की प्रेरणा थी. इसलिए आज राजनीति में कई लोग अपने प्रारंभिक दिनों को आपातकाल से, जेपी आंदोलन, नवनिर्माण आंदोलन से जोडते हैं… जिसने देश को नये तरह की राजनीति प्रदान की. ‘ मोदी ने कहा, ‘‘ हम आपातकाल को किसी की आलोचना करने के लिए याद नहीं रखना चाहते बल्कि समग्र रुप से लोकतंत्र के प्रति अपनी प्रतिबद्धता और प्रेस की स्वतंत्रता के लिए याद रखना चाहते हैं.’ उन्होंने कहा कि भारतीय मीडिया की अपनी पसंद है लेकिन उसे देश के लोगों को आपातकाल के दिनों को नहीं भूलने देना चाहिए. उन्होंने कहा कि आपातकाल के दौरान जो नेतृत्व पैदा हुआ, वह टीवी स्क्रीन के लिए नहीं था, बल्कि वह नेतृत्व देश के लिए जीने..मरने वाला था. आपातकाल लगाने के लिए तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी पर निशाना साधते हुए मोदी ने कहा कि खराब चीजों से भी कुछ अच्छी बातें निकल आती हैं और तब हुए संघर्ष ने लोकतंत्र को मजबूत बनाने में मदद की.

प्रधानमंत्री ने जेपी को खुले मन वाले व्यक्ति के रूप में याद किया जो किसी एक विचार या विचारधार से बंधे नहीं थे. ‘‘ वे सचाई के लिए जिये और जो उन्हें अच्छा लगा, वह किया.’ मोदी ने इस बात का भी जिक्र कि आपातकाल के दिनों में किस तरह से वरिष्ठ नेता एल के आडवाणी के साथ काम किया. प्रधानमंत्री ने अकाली नेताओं की भूमिका की सराहना की और पंजाब के मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल को ‘भारत का नेल्सन मंडेला’ बताया और कहा कि उन्होंने काफी वर्ष जेल में बिताये और वह भी राजनीतिक कारणों से. प्रधानमंत्री ने पूर्व राष्ट्रपति ए पी जे अब्दुल कलाम को याद किया और कहा कि अगर अब्दुल कलामजी ने अपनी लेखनी में किसी की प्रशंसा की तो वे नानाजी देशमुख थे.

अपने संबोधन में आडवाणी ने कहा कि जब भारत स्वतंत्र हुआ तब ध्यान केवल उपनिवेशवाद से मुक्ति का नहीं बल्कि लोकतांत्रिक ढांचे को मजबूत बनाने का था. उन्होंने ऐसे कार्यक्रम आयोजित करने और आपातकाल के खिलाफ संघर्ष करने वालों को याद करने के लिए प्रधानमंत्री और उनकी सरकार के प्रयासों की सराहना की. प्रकाश सिंह बादल ने कहा कि जेपी एक संस्थान थे, वे प्रकाशपुंज और आदर्श थे. मोदी ने इससे पहले आरएसएस नेता नानाजी देशमुख को उनकी जयंती पर श्रद्धांजलि दी. समारोह में मोदी ने राकांपा नेता डी पी त्रिपाठी, पत्रकार वीरेन्द्र कपूर, के विक्रम राव, प्रो. रामजी सिंह, कामेश्वर पासवान और आरिफ बेग को भी सम्मानित किया.

लोकतंत्र के लिए जयप्रकाश नारायण के संघर्ष को मानक बनाये जाने पर जोर देते हुए उन्होंने कहा कि उनके भाषणों में उन लोगों के गहरे आक्रोश की अभिव्यक्ति होती है जो आपातकाल के दौरान प्रभावित हुए थे. ‘‘ हालांकि वह मृदुभाषी थे, उनके भाषण उबलते हुए लावा के समान थे.’ जयप्रकाश नारायण के बारे में मोदी की टिप्पणी तब सामने आई है जब बिहार में प्रथम चरण के लिए विधानसभा चुनाव का मतदान होना है. भारतीयों के भीतर लोकतांत्रिक मूल्य सन्निहित होने को रेखांकित करते हुए मोदी ने कहा कि तब शीर्ष राजनीतिक नेतृत्व जेल में बंद था लेकिन जब तत्कालिन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने चुनाव की घोषणा की, लोगोंं ने बडे पैमाने पर अपने मताधिकार का उपयोग किया.

उन्होंने कहा कि तब एक मत चुनाव के बहिष्कार करने का भी था जबकि दूसरा मत इसमें हिस्सा लेने का था. प्रधानमंत्री ने कहा, ‘‘ 1977 में जब चुनाव की घोषणा हुई, तब शीर्ष नेतृत्व जेल में था। कोई नहीं जानता था कि क्या होगा. लेकिन लोगों की ताकत को देखिए, लोकतंत्र के प्रति उनके सम्मान को देखिए. चुनाव भय के माहौल में हुए… भय के कारण लोग सार्वजनिक रैलियों में शामिल नहीं हुए लेकिन लोकतंत्र के इस रास्ते का अनुसरण करते हुए मतदाताओं ने बडे बडे दिग्गजो को धूल चटाई.’ प्रधानमंत्री ने कहा कि इंदिरा गांधी को देश से अधिक विदेशों में अपनी छवि की ज्याद चिंता थी. विदेशों में भी कई विपक्षी नेता थे जो दमन के खिलाफ आवाज उठा रहे थे. मोदी ने उस समय विदेशों में सुब्रमण्यम स्वामी के कार्यो और उनकी लिखी किताब का जिक्र किया. मोदी ने ट्विट किया कि जेपी की जयंती पर आयोजित यह कार्यक्रम आपातकाल विरोधी आंदोलन में हिस्सा लेने वालों के कार्यो की याद ताजा करता है. जयप्रकाश नारायण को श्रद्धांजलि देते हुए मोदी ने कहा, ‘‘ जेपी के सम्पूर्ण क्रांति के संदेश को हमें सम्पूर्ण विकास के लिए अपनी ताकत बनाना चाहिए और सबका साथ, सबका विकास क साथ लोकतंत्र को और मजबूत बनाना चाहिए. ‘

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