नयी दिल्ली : दिल्ली की एक अदालत ने अपनी घरेलू सहायिका से बलात्कार करने के आरोपी व्यक्ति को इस आधार पर बरी कर दिया कि पीड़िता ने तीन महीने बाद पुलिस से संपर्क किया और वह घटना के बाद भी वहां काम करती रही. अदालत ने इस बात का जिक्र किया कि प्राथमिकी दर्ज होने के बाद जब पीड़िता की चिकित्सकों ने मेडिकल जांच की, तब उसने यौन उत्पीड़न करने वाले व्यक्ति के रूप में अपने नियोक्ता का नाम नहीं लिया.
अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश उमेद सिंह ग्रेवाल ने कहा कि कोई भी महिला हाल ही में खुद से बलात्कार करने वाले नियोक्ता के पास काम के लिए नहीं जायेगी, क्योंकि यह नियोक्ता को इस बारे में स्पष्ट संदेश देगा कि वह (महिला) तैयार है और उस तरह की हरकत को इच्छुक है. इस तरह काम पर फिर से वापस जाना निश्चित तौर पर नियोक्ता को यह यकीन दिलायेगा कि महिला/लड़की उसके साथ यौन हरकतों (संबंधों) के लिए इच्छुक है.
महिला के साथ यह कथित घटना 2010 में हुई थी. अदालत ने कहा कि महिला ने लंबे समय तक इस घटना का खुलासा किसी परिचित से नहीं किया और न ही तीन महीने तक कोई प्राथमिकी दर्ज करायी. महिला एक या दो दिन बाद काम पर लौट आयी थी. शिकायत के मुताबिक, पीड़िता ने रोहिणी स्थित एक मकान में नवंबर, 2009 में काम करना शुरू किया था. उसे यह रोजगार प्लेसमेंट एजेंसी ‘डोमेस्टिक हेल्प सर्विस’ के जरिये मिला था.
अदालत ने इस बात का जिक्र किया कि महिला के पास शिकायत करने का पूरा अवसर था, लेकिन वह चुप रही. अदालत ने कहा कि इस तरह की जिरह से यह जाहिर होता है कि उसके पास न सिर्फ प्लेसमेंट एजेंसी, बल्कि पुलिस के पास (बलात्कार की) शिकायत करने के लिए भरपूर मौका था. वह आरोपी के घर से कई बार बाहर निकली थी, लेकिन वह चुप रही.
महिला ने अपनी शिकायत में आरोप लगाया था कि पांच-छह दिनों के बाद उससे नियोक्ता के पिता ने बलात्कार किया. आरोपी को मार्च, 2010 में गिरफ्तार किया गया था और एक प्राथमिकी दर्ज की गयी थी.