नयी दिल्ली : उच्चतम न्यायालय ने कर्नाटक में मुख्यमंत्री एचडी कुमारस्वामी के विश्वास मत प्राप्त करने से पहले ही अयोग्य घोषित किये गये 17 विधायकों की याचिका पर शुक्रवार को सुनवाई पूरी कर ली. इस पर फैसला बाद में सुनाया जायेगा.
हालांकि, कर्नाटक कांग्रेस की ओर से न्यायालय में दलील दी गयी कि इस मामले को संविधान पीठ को सौंप दिया जाये. प्रदेश कांग्रेस की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने दलील दी कि तत्कालीन विधानसभा अध्यक्ष केआर रमेश कुमार ने विधायकों को अयोग्य घोषित करने के लिए अपने अधिकार का इस्तेमाल किया था और उनके निर्णय पर सवाल नहीं उठाया जा सकता. उन्होने कहा कि इस मामले को संविधान पीठ को सौंपने की आवश्यकता है क्योंकि इसमें सांविधानिक महत्व के गंभीर मसले उठाये गये हैं. न्यायमूर्ति एनवी रमण, न्यायमूर्ति संजीव खन्ना और न्यायमूर्ति कृष्ण मुरारी की पीठ ने विधान सभा अध्यक्ष के निर्णय को चुनौती देने वाली कांग्रेस-जद(एस) के 17 बागी विधायकों की याचिका पर सुनवाई के बाद कहा कि इस पर फैसला बाद में सुनाया जायेगा.
सदन में विश्वास मत हासिल करने में विफल रहने पर कुमारस्वमाी ने इस्तीफा दे दिया था और इस घटनाक्रम ने भाजपा के बीएस येदियुरप्पा के नेतृत्व में राज्य में नयी सरकार के गठन का रास्ता साफ कर दिया था. कर्नाटक के 17 अयोग्य विधायकों में से कुछ की ओर से बुधवार को न्यायालय में दलील दी गयी कि विधान सभा की सदस्यता से इस्तीफा देने का उनका अजेय अधिकार है और तत्कालीन अध्यक्ष केआर रमेश कुमार द्वारा उन्हें अयोग्य करार देने का फैसला दुर्भावनापूर्ण है और इसमें प्रतिशोध की बू आती है. हालांकि, सिब्बल ने कहा कि त्यागपत्र देने के लिए कोई वाजिब कारण होना चाहिए और उपलब्ध सामग्री के आधार पर अध्यक्ष को त्यागपत्र की मंशा की जांच करनी होती है. उन्होंने कहा कि लिखित में त्यागपत्र भेजना और अध्यक्ष द्वारा उसे स्वीकार करना इस्तीफे के दो पहलू हैंझ.
सालिसीटर जनरल तुषार मेहता ने बृहस्पतिवार को विधानसभा अध्यक्ष के कार्यालय की ओर से दलील दी थी कि संविधान के प्रावधानों के तहत कानून निर्माताओं को इस्तीफा देने का अधिकार है और अध्यक्ष को इसे स्वीकार करना चाहिए. इस समय वी हेगड़े कागेरी विधान सभा के अध्यक्ष हैं. मेहता ने कहा था, हमें उन सभी का (अयोग्य विधायकों) पक्ष सुनने और नये सिरे से गौर करने में कोई दिक्कत नहीं है. उन्होंने यह कहा था, संविधान के प्रावधान के तहत विधायक को त्यागपत्र देने का अधिकार है. अनुच्छेद 190 (3) के अलावा त्यागपत्र अस्वीकार करने की कोई गुंजाइश नहीं है. अनुच्छेद 190 (3) में प्रावधान है कि विधानसभा के अध्यक्ष या सभापति को सिर्फ यह सुनिश्चित करना है कि क्या सदस्य ने स्वेच्छा से त्यागपत्र दिया है और वह सही है और यदि नहीं, वह ऐसे त्यागपत्र स्वीकार नहीं करेंगे.