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वन उत्पादों पर पहला अधिकार आदिवासी समाज का है : अर्जुन मुंडा

ब्यूरो, नयी दिल्ली आदिवासियों के लिए रोजगार के अवसर बढ़ाने, आय में वृद्धि और सशक्त बनाने के लिए वन-धन योजना के बेहतर क्रियान्वयन के लिए टीमों को प्रशिक्षित करने का लक्ष्य रखा गया है ताकि वन उत्पादों की ब्रिकी से आदिवासियों के जीवन स्तर में आमूल-चूल बदलाव आ सके. इस योजना के तहत देश के […]

ब्यूरो, नयी दिल्ली

आदिवासियों के लिए रोजगार के अवसर बढ़ाने, आय में वृद्धि और सशक्त बनाने के लिए वन-धन योजना के बेहतर क्रियान्वयन के लिए टीमों को प्रशिक्षित करने का लक्ष्य रखा गया है ताकि वन उत्पादों की ब्रिकी से आदिवासियों के जीवन स्तर में आमूल-चूल बदलाव आ सके. इस योजना के तहत देश के जनजातीय बहुल क्षेत्रों में 50,000 वन-धन विकास केंद्र बनाये जायेंगे.

देश के 307 प्रमुख जनजातीय जिलों को इस योजना के दायरे में लाया गया है. इस योजना के जरिए सरकार तक वन उत्पादों पर तय किये गये न्यूनतम समर्थन मूल्य दिलाने का काम किया जायेगा. मौजूदा वित्त वर्ष में 3000 वन धन विकास केंद्रों की स्थापना करनी है. इसे लेकर शुक्रवार को भारतीय जनजातीय सहकारी विपणन विकास परिसंघ (ट्राईफेड) ने एक कार्यशाला का आयोजन किया.

कार्यशाला का उद्घाटन करते हुए केंद्रीय आदिवासी मामलों के मंत्री अर्जुन मुंडा ने कहा कि वन उत्पादों के सच्चे हकदार आदिवासी हैं और उन्हें इसकी सही कीमत मिलनी चाहिए. जल, जंगल और जमीन का सही मायने में संरक्षक आदिवासी समाज ही हैं. लेकिन मौजूदा समय में प्राकृतिक संसाधनों से वंचित हैं. ऐसे में सरकार प्रयास कर उन्हें उनका हक दिलाने का काम कर रही है. उन्‍होंने इसके लिए निजी और सरकारी क्षेत्र के सभी हितधारकों को मिलाकर ऐसा नेटवर्क बनाने को कहा ताकि योजना का लाभ पारदर्शी तरीके से मिल सके.

केंद्रीय राज्य मंत्री रेणुका सिंह ने जनजातीय समुदायों की आय बढ़ाने तथा उनके लिए रोजगार के अवसर सृजित करने के बारे में इस योजना के महत्व पर जोर दिया. योजना का लाभ इन समुदायों तक पहुंचे, इसके लिए ट्राईफेड की टीमों को पूरी जवाबदेही के साथ निश्चित समय सीमा के भीतर योजना को लागू करने की दिशा में काम करना होगा. गौरतलब है कि इस कार्यशाला का आयोजन वन-धन योजना के क्रियान्वयन के लिए गठित टीमों को प्रशिक्षण देने के लिए आयोजित की गयी थी.

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