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17वीं लोकसभा : एक नजर में पढ़ लें कुछ जरूरी आंकड़े

नयी दिल्ली : सत्रहवीं लोकसभा के लिए हुए आम चुनावों के परिणाम आ गये हैं. पार्टियों की स्थिति स्पष्ट हो गयी. तय हो गया है कि किस पार्टी की सरकार बनेगी. पुरानी सरकार ने इस्तीफा दे दिया है और नयी सरकार कुछ दिनों में शपथ लेगी. इस बार की संसद कैसी होगी? कितने पढ़े-लिखे लोग […]

नयी दिल्ली : सत्रहवीं लोकसभा के लिए हुए आम चुनावों के परिणाम आ गये हैं. पार्टियों की स्थिति स्पष्ट हो गयी. तय हो गया है कि किस पार्टी की सरकार बनेगी. पुरानी सरकार ने इस्तीफा दे दिया है और नयी सरकार कुछ दिनों में शपथ लेगी. इस बार की संसद कैसी होगी? कितने पढ़े-लिखे लोग संसद पहुंचे हैं, कितनी महिलाएं इस बार संसद में पहुंचीं हैं, महिला सांसदों की संख्या घटी है या बढ़ी है? किन दलों की सीटों में इजाफा हुआ है, किसकी सीटें पिछले आम चुनावों की तुलना में कम हुई हैं. किस पेशे से जुड़े लोग संसद में पहुंचे हैं इस बार. हमारे सांसदों में युवा सांसद कितने हैं. एक नजर में पूरी रिपोर्ट देख लीजिए.

भारत की 545 लोकसभा सीटों वाली संसद के गठन के लिए 543 लोकसभा सीटों पर चुनाव होते हैं. वर्ष 2019 के लोकसभा चुनावों में बड़े पैमाने पर नकदी मिलने की वजह से तमिलनाडु की वेल्लोर लोकसभा सीट पर मतदान को चुनाव आयोग ने रद्द कर दिया. इसलिए इस बार 542 सीटों पर ही चुनाव हुए. सभी सीटों के परिणाम आ गये हैं.

चुनाव परिणामों के मुताबिक, भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी है. वर्ष 2014 के आम चुनावों में 282 सीटें जीतने वाली भाजपा को इस बार 303 सीटें मिली हैं. इस तरह 1971 के बाद नरेंद्र मोदी की सरकार पहली सरकार बन गयी, जिसे पूर्ण बहुमत के साथ दूसरे कार्यकाल के लिए चुना गया है.

देश पर पांच दशक से अधिक शासन करने वाली पार्टी कांग्रेस का प्रदर्शन पिछले चुनावों के मुकाबले कुछ बेहतर रहा, लेकिन वह मुख्य विपक्षी दल का दर्जा हासिल करने के काबिल इस बार भी नहीं रही. 2014 में 44 सीटें जीतने वाली कांग्रेस राहुल गांधी की अगुवाई में महज 52 सीटें ही जीत पायी.

प्रधानमंत्री बनने का सपना देख रहीं ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस इस बार औंधे मुंह गिरी है. पश्चिम बंगाल में पिछले आम चुनावों में 34 सीटें जीतने वाली तृणमूल को इस बार सिर्फ 22 सीटों पर जीत मिली. वामपंथियों का गढ़ रहे पश्चिम बंगाल में इस बार लेफ्ट को एक भी सीट नहीं मिली.

नरेंद्र मोदी को हराने और किसी को बहुमत नहीं मिलने की स्थिति में वैकल्पिक सरकार बनाने की जोड़-तोड़ में जुटे आंध्रप्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू की तेलुगू देशम पार्टी लोकसभा की तीन सीटों पर सिमटकर रह गयी. 2014 में नायडू की पार्टी को 16 सीटों पर जीत मिली थी. इसी तरह दक्षिण की एक और पार्टी अन्नाद्रमुक 37 सीटों से एक सीट पर सिमट गयी. हालांकि, इस राज्य में द्रमुक ने शानदार प्रदर्शन किया. 2014 में 0 पर सिमट चुकी पार्टी को इस बार 23 सीटें हासिल हुई हैं और यह पार्टी लोकसभा में भाजपा और कांग्रेस के बाद तीसरी सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी है.

आंध्रप्रदेश में वाईएसआर कांग्रेस पार्टी ने इस बार बेहतरीन प्रदर्शन किया. पार्टी के सांसदों की संख्या 9 से बढ़कर 16 हो गयी है. आंध्रप्रदेश से कटकर बने राज्य तेलंगाना में सत्तारूढ़ दल तेलंगाना राष्ट्र समिति (टीआरएस) का प्रदर्शन पिछले चुनावों के मुकाबले अच्छा नहीं रहा. 2014 में 11 सीटें जीतने वाली टीआरएस को इस बार 9 सीटों से ही संतोष करना पड़ा. वहीं, ओड़िशा में बीजू जनता दल (बीजद) के गढ़ में भाजपा ने बेहतर प्रदर्शन किया. फलस्वरूप नवीन पटनायक की पार्टी की सीटें 20 से घटकर 12 रह गयीं.

देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश में वर्ष 2014 के चुनावों में शून्य (0) रही मायावती की पार्टी बहुजन समाज पार्टी (बसपा) ने इस बार अपनी धुर विरोधी समाजवादी पार्टी (सपा) से गठबंधन किया और किंगमेकर बनने का सपना देख रही थीं. वह किंगमेकर तो नहीं बन सकीं, लेकिन उनकी पार्टी 0 से 10 तक पहुंच गयी.

दूसरी तरफ, एक बार फिर भाजपा के साथ जुड़े बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की पार्टी जनता दल यूनाइटेड (जदयू) ने बेहतरीन प्रदर्शन किया. 16वीं लोकसभा में उनके 2 सांसद थे, जो 17वीं लोकसभा में बढ़कर 16 हो गये हैं. महाराष्ट्र में एनडीए की सहयोगी शिव सेना ने पिछली बार 18 सीटें जीती थीं, इस बार भी 18 सीटें जीतीं. इस तरह उसे न कोई फायदा हुआ, न नुकसान.

सांसदों की औसत आयु 54 वर्ष

सत्रहवीं लोकसभा में सांसदों की औसत आयु 54 वर्ष है. महिला सांसदों की बात करें, तो वे पुरुष सांसदों के मुकाबले जवां हैं. उनकी औसत आयु पुरुष सांसदों से छह साल कम हैं. वर्ष 2019 के लोकसभा चुनावों में जो जनप्रतिनिधि चुने गये हैं, उनमें 12 फीसदी की उम्र 40 साल से कम है. 41 फीसदी की उम्र 41-55 वर्ष के बीच है, तो 42 फीसदी 56-70 साल के हैं. मात्र 6 फीसदी सांसदों की उम्र 70 साल से अधिक है. 16वीं लोकसभा में 40 साल तक की उम्र के मात्र 8 फीसदी सांसद थे.

यहां बताना प्रासंगिक होगा कि जैसे-जैसे संसद की उम्र बढ़ रही है, अपने सांसदों की भी उम्र बढ़ रही है. पहली लोकसभा में 26 फीसदी सांसदों की उम्र 40 साल से कम थी.

394 सांसद स्नातक

इस बार स्नातक तक पढ़े 394 लोग संसद पहुंचे हैं. 17वीं लोकसभा में 27 फीसदी सांसदों ने हायर सेकेंड्री तक की पढ़ाई की है, जबकि 43 फीसदी ग्रेजुएट (स्नातक) हैं. 25 फीसदी पोस्ट ग्रेजुएट और 4 फीसदी सांसदों के पास डॉक्टरेट की डिग्री है. 16वीं लोकसभा में 20 फीसदी सांसदों के पास उच्चतर माध्यमिक की डिग्री थी. ज्ञात हो कि 1996 से 75 फीसदी स्नातक की डिग्री लेने वाले लोग चुनकर संसद पहुंचे हैं.

1977 में सबसे कम, 2019 में सबसे ज्यादा महिला

पहली लोकसभा में 5 फीसदी महिलाएं थीं, जो अब बढ़कर 14 फीसदी हो गयी हैं. इस बार 78 महिलाएं चुनकर संसद पहुंची हैं. 16वीं संसद में 62 महिलाओं को लोगों ने अपना जनप्रतिनिधि चुना था. हालांकि, भारत में धीरे-धीरे महिलाओं की राजनीति और संसद में भागीदारी बढ़ रही है, लेकिन यह अब भी विकसित और कई पिछड़े देशों की तुलना में कम है. अमेरिका में 24 फीसदी, ब्रिटेन में 32 फीसदी, दक्षिण अफ्रीका में 43 फीसदी, बांग्लादेश में 21 फीसदी और रवांडा में 61 फीसदी महिला प्रतिनिधि हैं.

सबसे ज्यादा समाजसेवी और किसान

सबसे ज्यादा समाजसेवी और किसान इस बार लोकसभा पहुंचे हैं. 39 फीसदी सांसदों ने खुद को राजनीतिक और सामाजिक कार्यकर्ता बताया है. वहीं, 38 फीसदी ने अपना पेशा कृषक बताया है. 542 सांसदों में 23 फीसदी व्यवसायी हैं, 4 फीसदी वकील, 4 फीसदी डॉक्टर, तीन फीसदी कलाकार और दो फीसदी शिक्षक हैं. कई सांसदों ने बताया है कि उनका पेशा एक से ज्यादा है.

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