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चुनाव में रैलियों से मालामाल हरियाणा का यह गांव, On Demand जुटाता है भीड़

गुल्हा चीका (हरियाणा) : क्या आप राजनीतिक रैली आयोजित करने वाले हैं ? क्या आपको इसके लिए भीड़ चाहिए ? इसके लिए किस तरह के पैकेज चाहिए ? पंजाब-हरियाणा सीमा पर स्थित गुल्हा चीका गांव में एकमात्र टैक्सी स्टैंड पर जाने वाले किसी भी व्यक्ति का सबसे पहले इन्हीं कुछ सवालों से सामना होता है. […]

गुल्हा चीका (हरियाणा) : क्या आप राजनीतिक रैली आयोजित करने वाले हैं ? क्या आपको इसके लिए भीड़ चाहिए ? इसके लिए किस तरह के पैकेज चाहिए ? पंजाब-हरियाणा सीमा पर स्थित गुल्हा चीका गांव में एकमात्र टैक्सी स्टैंड पर जाने वाले किसी भी व्यक्ति का सबसे पहले इन्हीं कुछ सवालों से सामना होता है.

कुरूक्षेत्र लोकसभा क्षेत्र में इस टैक्सी स्टैंड पर कैब ऑपरेटरों के लिए चुनाव का समय कुछ पैसे कमाने का भी है. उन्होंने कैब चलाना रोक दिया है और इसकी जगह रैलियों के लिए वाहनों और भीड़ की आपूर्ति कर रहे हैं. जरूरत के मुताबिक ग्राहक अलग-अलग पैकेज ले सकते हैं. स्थानीय टैक्सी ऑपरेटर बिन्नी सिंघला ने कहा, अगर पंजाब में कोई रैली होती है तो उन्हें सिख लोग चाहिए होते हैं.

हरियाणा में कोई रैली हो तो जाट चाहिए. इसलिए हम हर तरह की भीड़ मुहैया कराते हैं. हमारे पास अपनी कारें भी हैं और चूंकि रैलियों के लिए बड़ी संख्या में गाड़ियों की जरूरत होती है, हम कमीशन पर दूसरे से भी उसे लेते हैं. सिंघला के मुताबिक पंजाब और हरियाणा में रैली के लिए आम तौर पर 150-500 ‘किट्स’ की मांग आती है.

उन्होंने कहा कि हमने राजस्थान में दो रैलियों के लिए भी पैकेज भेजे हैं, लेकिन, दूसरे राज्यों में हमारा कारोबार सक्रिय नहीं हुआ है क्योंकि वहां ले जाने के लिए व्यवस्था करनी पड़ती है. पांच सीटों वाली एक कार 2500 रुपये में, सवारियों के साथ इसकी कीमत 4500 रुपये पड़ती है. अलग तरह की भीड़ की जरूरत हो तो यह राशि 6000 रुपये तक जा सकती है.

कारोबार के बारे में एक अन्य टैक्सी ऑपरेटर 47 वर्षीय राकेश कपूर ने कहा, हम रैलियों में जाने वाले लोगों को 300-300 रुपये देते हैं. रैली अगर शाम में हो तो लोगों को ले जाने वाली पार्टी उनके खाने-पीने, दारू आदि की व्यवस्था करती है. अगर वे इसका इंतजाम नहीं कर पाते हैं तो हम अतिरिक्त शुल्क पर इसका इंतजाम करते हैं.

उन्होंने कहा कि राजनीतिक दल सीधे तौर पर कभी उनसे संपर्क नहीं करते हैं बल्कि कार्यकर्ता उनके पास आते हैं. यह पूछे जाने पर कि भीड़ में किस तरह के लोग होते हैं, उन्होंने कहा कि खेतों, दुकानों में काम करने वाले होते हैं. कॉलेज में जाने वाले लड़के, घूंघट वाली महिलाएं भी होती हैं. एक अन्य टैक्सी ऑपरेटर मनजिंदर सिंह ने कहा कि 2014 के लोकसभा चुनाव के पहले इस तरह के कारोबार ने गति पकड़ी थी.

उन्होंने कहा, एक दशक पहले, पार्टियां इलाके में पुलिसकर्मियों को बुलाती थीं जो टैक्सी ऑपरेटरों को अपनी कारें भेजने के लिए कहते थे. अगर वे ऐसा नहीं करते थे तो उनपर जुर्माना लगाया जाता था या दूसरे तरीके से तंग किया जाता था. सिंह ने कहा, उस समय भीड़ जुटाना आसान था, लेकिन अब चीजें बदल गयी हैं.

रैलियों में जाने वाले लोग पूछते हैं कि कार में एसी है ना, खाने में क्या मिलेगा. अब लोग इतनी आसानी से नहीं मानते. अगर वे एक दिन बिताते हैं तो बदले में वे कुछ चाहते भी हैं. सिंघला, कपूर और सिंह ने कहा कि रैलियों में भेजे जाने वाले लोगों को वह किसी पार्टी के पक्ष में प्रभावित करने की कोशिश नहीं करते.

कपूर ने कहा, यह उनपर है कि वे किसे वोट देना चाहते हैं. हमारी भूमिका उन्हें रैलियों में ले जाने तक सीमित है. ना तो हम उन्हें किसी पार्टी के पक्ष में मतदान के लिए कहते हैं ना ही वे हमें सुनते हैं. एक ही व्यक्ति अलग-अलग दलों की रैलियों में जाता है, किसी को वोट देने के लिए हम कैसे कह सकते हैं. हरियाणा में लोकसभा की 10 सीटें हैं जहां 12 मई को मतदान होगा.

Prabhat Khabar Digital Desk
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