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मॉनसून देगा दगा! : जून महीने में पिछले सौ साल में सबसे कम बारिश

मान्यता है कि भारत में तीन ही मौसम होते हैं – मॉनसून पूर्व, मॉनसून और मॉनसून के बाद. समझा जा सकता है कि यदि यह दगा दे जाये, तो स्थिति क्या होगी. तीन बातें तो स्पष्ट हैं -पानी के लिए त्रहिमाम, सूखा और अर्थव्यवस्था का चरमराना. सवाल है कि इस बार मॉनसून कमजोर क्यों हुआ? […]

मान्यता है कि भारत में तीन ही मौसम होते हैं – मॉनसून पूर्व, मॉनसून और मॉनसून के बाद. समझा जा सकता है कि यदि यह दगा दे जाये, तो स्थिति क्या होगी. तीन बातें तो स्पष्ट हैं -पानी के लिए त्रहिमाम, सूखा और अर्थव्यवस्था का चरमराना. सवाल है कि इस बार मॉनसून कमजोर क्यों हुआ? विज्ञान कहता है कि कम दबाव का क्षेत्र इस बार कम बन रहा है, जिस कारण बारिश कम हो रही है.

लेकिन, हम वातावरण का जिस प्रकार से दोहन कर उसका नाश कर रहे हैं. क्या यह उसका परिणाम नहीं है. जरा सोचिए, जुलाई का महीना शुरू होने को है, पर पर्याप्त बारिश नहीं हुई है. नतीजा सामने है खाद्य वस्तुओं की कीमतों में इजाफा, देश के बड़े जलाशयों का सूखना. समस्या से निबटने के लिए सरकार तो पहल कर रही है, पर हम भी कुछ करें. आइए, प्रकृति से खिलवाड़ बंद करें, जल को सहेजें, तालाबों को अतिक्रमण से मुक्त करें.

इस साल जून माह में भारत में होने वाली कुल बारिश के राष्ट्रीय औसत में भारी कमी देखने को मिल रही है, जो 42 प्रतिशत तक पहुंच गयी है. पिछले सौ सालों के आंकड़ों को पलटने पर पाते हैं कि जून माह में 100 मिमी से कम बारिश केवल दो साल हुई है, 2009 में 85.7 मिमी और 1926 में 97.2 मिमी. पिछली सदी में इस माह में सबसे कम बारिश 1905 में हुई थी, जो महज 88.7 मिमी रही थी.

इस बीच बारिश के आंकड़ों पर नजर रखने वाली एक एजेंसी का मानना है कि पिछले 113 सालों केवल 12 बार ऐसा हुआ है जब जून माह में बारिश के स्तर में 30 प्रतिशत से ज्यादा की कमी आयी है. समझा जा सकता है कि स्थिति किस कदर भयावह है, क्योंकि मॉनसून का मौसम देश में 80 प्रतिशत बारिश के लिए जिम्मेदार है. वैसे मौसम विभाग का आकलन है कि इस साल 15 से 20 फीसदी कम बारिश होगी.

जनता करे पहल

– रेन वॉटर हार्वेस्टिंग के जरिये बरसात के पानी का संचय

– तालाबों तक जानेवाले पानी की राह से अतिक्रमण हटायें

आखिर ऐसे हालात क्यों

मौसम विभाग के मुताबिक एक से 18 जून के बीच देश भर में 45} कम वर्षा हुई, जो 43.4 मिमी रही. सामान्यत: यह 78.8 मिमी रहती है. मध्य भारत में सामान्य से 57} व उत्तर पश्चिमी भारत में सामान्य से 48} कम वर्षा एक से 25 जून के बीच दर्ज की गयी है. वर्षा के स्तर में पिछले हफ्ते के मुकाबले आंशिक वृद्धि हुई है. एक जून से 25 जून के बीच 74.4 मिमी बारिश दर्ज की गयी है, जबकि सामान्यत: यह 124.5 मिमी रहती है. इस प्रकार यह 40% कम है. मौसम विभाग के मुताबिक एक नये पश्चिमी विक्षोभ के कारण जुलाई के शुरू में उत्तर पश्चिमी भारत में वर्षा के प्रभावित होने के आसार हैं.

सूखे से इनकार नहीं

गत दिनों मौसम विभाग ने प्रधानमंत्री के समक्ष जो प्रेजेटेंशन दिया था, उसके मुताबिक 10 से 20 जुलाई तक का समय मॉनसून के लिहाज से अति महत्वपूर्ण है. यदि इस दौरान पर्याप्त बारिश नहीं हुई, तो स्थिति विकट हो सकती है. सरकार को इसके लिए तैयार रहना चाहिए. जुलाई के दूसरे सप्ताह में बेहतर बारिश होने के आसार 50-50 फीसदी हैं. अनाज की पैदावार के लिहाज से महत्वपूर्ण मध्य, उत्तरी और पश्विमी भारत में ‘अल नीनो’ के सक्रि य होने से पहले ही सूखे जैसे हालात हैं. यही वजह है कि केंद्र ने सूखे से निबटने की रणनीति तैयार की है. 17 विभाग व मंत्रालय ों ने मिलकर इस योजना को तैयार किया है. योजना में देश की सभी क्षेत्रों में पानी की उपलब्धता, बेहतर पैदावार, पशुओं के लिए चारे की व्यवस्था, प्रभावित क्षेत्रों में विशेष टीम भेजने और महंगाई पर नियंत्रण पाने की उपाय शामिल हैं.

मॉनसून पैटर्न में तब्दीली

स्टैनफोर्ड वुड्स इंस्टीट्यूट फॉर एनवॉयरमेंट ने भारत के मॉनसून पर एक स्टडी की थी. इस स्टडी को ‘नेचर क्लाइमेट चेंज’ नामक पत्रिका में प्रकाशित किया गया है. स्टडी के मुताबिक भारत में हवा और नमी की वजह से मौसम कई बार खुष्क तो, कई बार शुष्क रहता है. शोधकर्ताओं ने पाया कि भारत में मॉनसून के दौरान कई परिवर्तन दर्ज होते हैं जिनमें बारिश और कम बारिश के अंतराल में होने वाले परिवर्तन अहम हैं. इन परिवर्तनों की वजह से मौसम कई बार अत्यधिक शुष्क हो जाता है, तो कभी सूखे के हालात पैदा हो जाते हैं.

इसका असर खेतों, जल संसाधनों, इंफ्रास्ट्रक्चर और मानव तंत्र पर पड़ता है. द एशिया में वर्ष 1980 से अभी तक मॉनसून और बारिश के पैटर्न पर नजर रखने के लिए की गयी स्टडी में कहा गया है कि भारत में आनेवाले दिनों में गरमी और बढ़ेगी.

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