देश को सरकार तो मिल गयी, विरोधी दल का नेता नहीं, 16 वीं लोकसभा के हुए चुनाव से सरकार तो बन गयी, पर प्रतिपक्ष के नेता का मामला फंस गया. यह पहली बार नहीं है कि लोकसभा में प्रतिपक्ष का कोई नेता नहीं है. आजादी के बाद 1952 से 1969 तक कोई प्रतिपक्ष का नेता नहीं था. संसद की अब तक की यात्र में छह बार ऐसी नौबत आ चुकी है. हम यह भी कह सकते हैं कि देश के 62 साल के संसदीय इतिहास में संसद ने किसी मान्यता प्राप्त विपक्ष के बगैर ही अपना काम चलाया. इस तसवीर का दूसरा पहलू यह भी है कि मान्यता प्राप्त विपक्ष नहीं रहने के बावजूद ज्यादा धारदार तरीके से तब की विपक्षी पार्टियों ने सरकार के सामने परेशानी खड़ी कर दी थी. बहरहाल, सदन में विपक्ष का नेता न हो तो वह सदन पूर्ण नहीं कही जायेगी.
लोकसभा अथवा राज्य का सदस्य ही प्रतिपक्ष का नेता हो सकता है. लेकिन प्रतिपक्ष का नेता वही हो सकता है जिसके दल के पास उस सदन की दस फीसदी सीटें हों. ऐसे ही दल को राज्यसभा में सभापति और लोकसभा में अध्यक्ष के प्रतिनिधि को नेता प्रतिपक्ष के तौर पर मान्यता देते हैं. इस प्रकार 16 वीं लोकसभा में प्रतिपक्ष के नेता का पद की मान्यता इसीलिए नहीं दी गयी है कि सत्ताधरी गंठबंधन को छोड़कर किसी दूसरे दल या गंठबंधन के पास दस फीसदी सीटें यानी 55 सीटें नहीं हैं.
पार्टी और गंठबंधन को लेकर विवाद
प्रतिपक्ष का नेता कौन होगा, इस पर विवाद कायम है. सविधान के कुछ जानकारों की राय में किसी पार्टी को ही प्रतिपक्ष के नेता की जिम्मेदारी मिल सकती है बशर्ते उस पार्टी के पास सदन की कुल सीटों की तुलना में 10 फीसदी सीटें हों. संविधान के जानकारों का एक खेमा ऐसा भी है जो कहता है कि विपक्ष की सबसे बड़ी पार्टी को प्रतिपक्ष के नेता पद की मान्यता मिलनी चाहिए. इसके लिए कोई जरूरी नहीं कि उस पार्टी के पास सदन की कुल सीटों की तुलना में 10 फीसदी सीटें हो ही. संविधान विशेषज्ञ सुभाष कश्यप का कहना है कि संसद में विपक्ष की वह पार्टी जिसके पास कुल निर्वाचित सदस्यों का 10 फीसदी होना अनिवार्य है, उसे ही प्रतिपक्ष के नेता की मान्यता मिलती है.
लगातार तीन टर्म नेता प्रतिपक्ष नहीं
पहली, दूसरी ओर तीसरी लोकसभा में किसी पार्टी के नेता को सदन में प्रतिपक्ष के नेता की मान्यता इसी आधार पर नहीं मिली थी कि विपक्ष के किसी दल के पास सदन की कुल सीटों की तुलना में 10 फीसदी सीटें नहीं थीं. 1980 और 1984 में भी नेता प्रतिपक्ष का पद खाली रह गया था.
वेतन- भत्ता संबंधी एक्ट का मामला
1977 में प्रतिपक्ष के नेता के वेतन व भत्ते को लेकर एक कानून बना. इस कानून में कहा गया है कि प्रतिपक्षी दलों में सबसे बड़ी पार्टी के नेता को लोकसभाध्यक्ष मान्यता देंगे. उसे ही नेता, प्रतिपक्ष कहा जायेगा. पर प्रतिपक्ष के नेता के लिए व्यवस्था है कि 121 (सी) के तहत कुल संख्या का 10 फीसदी कोरम के लिए जरूरी है. इतनी ही संख्या प्रतिपक्ष के नेता के लिए भी जरूरी है. हालांकि सुप्रीम कोर्ट के अधिवक्ता एमएम लाहोटी कहते हैं कि सैलरी एंड अलाउंस ऑफ लीडर ऑफ ऑपोजिशन इन पार्लयिामेंट ऐक्ट 1977 में कहीं भी लीडर ऑफ ऑपोजिशन के लिए 10 फीसदी सीट होने की अनिवार्यता नहीं है.
नेता प्रतिपक्ष की क्या होती है भूमिका
संसदीय प्रणाली में पक्ष और विपक्ष को एक-दूसरे का पूरक कहा गया है. सत्तापक्ष की नीतियों की तर्कसंगत तरीके से आलोचना वगैरह के अलावा कई महत्वपूर्ण पदों पर नियुक्ति प्रक्रिया में प्रतिपक्ष के नेता की मौजूदगी को संवैधानिक दृष्टि से अहम बताया गया है. मसलन, लोकपाल, सीबीआइ, आइबी या सीवीसीके निदेशक सीवीसी का चयन करने वाली कमेटी में प्रतिपक्ष के नेता को होना चाहिए.
नियुक्ति हो चुकी है रद्द
15 वीं लोकसभा में प्रतिपक्ष की नेता भाजपा की सुषमा स्वराज थीं. यूूपीए-2 की सरकार ने सीवीसी की नियुक्ति की सभी औपचारिकताएं पूरी कर ली थीं. पर उस नियुक्ति पर प्रतिपक्ष की नेता श्रीमती स्वराज का अलग नजरिया था. लिहाजा, उन्होंने उस नियुक्ति पर अपनी राय विपरीत दी थी. मामला सुप्रीम कोर्ट में गया. अंतत: सीवीसी की नियुक्ति रद्द हो गयी थी.
पहले पीएम जो बने प्रतिपक्ष के नेता
राजीव गांधी विपक्ष के नेता की जिम्मेदारी संभालने वाले पहले पूर्व प्रधानमंत्री थे. नौवीं लोकसभा में विपक्षी दलों ने वीपी सिंह के नेतृत्व में चुनाव लड़ा था. चुनाव में कांग्रेस सत्ता से बाहर हो गयी थी.
10 फीसदी सीट का प्रावधान नहीं
लोकसभा के पूर्व महासचिव पीडीटी अचारी का कहना है कि कानून के मुताबिक सबसे बड़े विरोधी दल के नेता को यह पद मिलना चाहिए. 1977 में प्रतिपक्ष के नेता के वेतन व भत्ते के जिस कानून का हवाला देकर 10 फीसदी सीट पाने वाले विरोधी दल के हिस्से में यह प्रतिपक्ष की कुरसी जाने की बात की जा रही है, वह सही नही है. दरअसल, विरोधी दल में जिसके सदस्यों की तादाद ज्यादा होगी उसे विरोधी दल के नेता के रूप में मान्यता मिलती है.
क्या मिलती हैं सुविधाएं
लोकसभा या राज्यसभा में विरोधी दल के नेता को वे सभी सुविधाएं मिलती हैं जो एक कैबिनेट मंत्री को देय है. संसद परिसर में कार्यालय के लिए कमरे, मानव संसाधन वगैरह सुविधाएं मिलती हैं.