नयी दिल्ली : केंद्र सरकार ने गुरुवार को दिल्ली हाईकोर्ट को बताया कि उसने अपनी हज नीति में संशोधन किया है और अब सालाना होने वाली हज यात्रा में दिव्यांगजन भी हिस्सा ले सकते हैं. दिल्ली हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति राजेंद्र मेनन एवं न्यायाधीश न्यायमूर्ति आईएस मेहता की एक पीठ के समक्ष केंद्र सरकार ने अदालत को हज नीति में संशोधन के बारे में बताया. केंद्र सरकार ने अदालत को यह भी बताया कि सिर्फ गंभीर बीमारियों जैसे कि कैंसर या टीबी से गुजर रहे लोगों के इस यात्रा को करने पर प्रतिबंध है.
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अल्पसंख्यक मामलों के मंत्रालय की ओर से पेश होते हुए केंद्र सरकार के वकील अजय दिगपॉल ने अदालत को बताया कि भारत की हज समिति (एचसीओआई) ने सर्वसम्मति से विशेष जरूरत वाले लोगों को इस यात्रा के लिए आवेदन करने की अनुमति देने का फैसला किया है. दिगपॉल ने ऐसे लोगों के चयन को लेकर बताया कि विशेष जरूरत वाले लोग हज यात्रा कर सकते हैं. अगर कोई (स्त्री या पुरुष) खुद से वह यह यात्रा संपन्न करने की स्थिति में हों या वह अपने साथ किसी रक्त संबंध वाले लोगों को ले जा सकते हैं, जो इस पूरी यात्रा के दौरान उनकी जिम्मेदारी उठा सकें.
इस संशोधित नीति में यह साफ किया गया है कि किसी भी व्यक्ति के दिव्यांग होने का मतलब खराब स्वास्थ्य से न निकाला जाये. संशोधित नीति में यह बताया गया है कि वे लोग जो गंभीर बीमारियों जैसे कि कैंसर, दिल की बीमारी, सांस संबंधी बीमारी, लीवर या किडनी की बीमारी वाले लोग हज यात्रा के लिए आवेदन नहीं कर सकते हैं. इससे पहले दिव्यांग और विशेष जरूरत वाले लोगों की भी यात्रा पर प्रतिबंध था. वकील गौरव कुमार बंसल की एक जनहित याचिका के जवाब में यह हलफनामा पेश किया गया. बंसल ने अपनी याचिका में हज नीति के उस प्रावधान को खत्म करने की मांग की थी, जिसमें दिव्यांग लोगों के हज यात्रा पर प्रतिबंध था.