!!अमिताभ!!
रांची:नरेंद्र मोदी की सरकार में आरएसएस की झलक दिखने लगी है. मोदी पैर छूने की परंपरा को अपने सांसदों और नेताओं से निकालना चाहते हैं. इसके पीछे मात्र एक कारण आरएसएस है. यदि हम संघ के इतिहास पर नजर डालें तो वहां पैर छूने की परंपरा नहीं है. अगर कोई व्यक्तिगत संबंध के कारण एसा करता है तो यह स्वीकार्य है. यहां सभी कार्यकर्ताओं को एक दर्जे का समझा जाता है. संघ में कोई बड़ा या छोटा नहीं होता है.
इस परंपरा से मोदी को जोड़कर देखा जा सकता है. क्योंकि मोदी ने संघ में रहकर ही लगभग अपना सारा जीवन काटा है. यही कारण है कि मोदी ने सांसदों को पैर न छूने की नसीहत दी है. शुक्रवार को मोदी ने भाजपा सांसदों को सुशासन का पाठ पढ़ाते हुए कहा कि वे किसी नेता के पैर छूने की आदत समेत इस तरह की किसी भी आदत से बचें और वे जमीनी स्तर पर जुड़े रहें.
मोदी और संघ
अपने किशोरावस्था से ही मोदी आरएसएस के संपर्क में आ गये थे. 1971 में भारत-पाकिस्तान युद्ध के बाद वे पूर्णकालिक प्रचारक बन गए. तर्कशक्ति, तीक्ष्ण बौद्धिक क्षमता और सांगठनिक कौशल के धनी मोदी ने आरएसएस में गहरी पैठ बनाई. आपातकाल के दौरान (1975-77) छद्म वेश धारण कर मोदी सरकार की पकड़ से दूर रहे. उन्होंने प्रतिबंधित साहित्य बांटने और जार्ज फर्नांडिस जैसे नेताओं को सुरक्षित स्थान पर पहुंचाने का काम किया.
नीलांजन मुखोपाध्याय ने अपनी किताब एनाटॉमी ऑफ नरेंद्र मोदी-द मैन एंड हिज पॉलीटिक्स में लिखा है कि शुरुआती दौर में संघ में भी उन्हें वरिष्ठों के लिए चाय-नाश्ता बनाने की जिम्मेदारी दी गई. लेकिन मेहनत उन्हें हर मनचाहे मुकाम पर ले गई. वह संघ के उन दो पहले प्रचारकों में थे जो बाद में पूरी तरह से भाजपा के लिए कार्य करने लगे. मोदी आरएसएस के जरिये ही 1985 में भाजपा में शामिल हुए. तब शंकर सिंह वाघेला और केशूभाई पटेल गुजरात भाजपा के कद्दावर नेताओं में से थे. अहमदाबाद नगर निकाय चुनाव (1986) में पार्टी की जीत में उनका अहम योगदान रहा. आडवाणी की रथ यात्रा राष्ट्रीय स्तर पर उनकी पहली बड़ी राजनीतिक जिम्मेदारी थी.
1988 में वह गुजरात भाजपा इकाई में संगठन सचिव चुने गए. लेकिन वर्ष 1991 में मुरली मनोहर जोशी की कन्याकुमारी से श्रीनगर तक की एकता यात्रा के सफल संयोजन से मोदी का कद और बढ़ा. भाजपा की 1995 में गुजरात विधानसभा चुनाव में जीत के पीछे मोदी की चुनावी रणनीति की अहम भूमिका रही. उनकी प्रतिभा को देखते हुए नवंबर 1995 में उन्हें भाजपा का राष्ट्रीय सचिव बनाकर दिल्ली भेजा गया. जहां उन्हें हरियाणा और हिमाचल की जिम्मेदारी दी गई. मोदी को मई 1998 में भाजपा का महासचिव बनाया गया. गुटबाजी खत्म करने के लिए 1998 के गुजरात चुनाव में प्रत्याशियों के चयन में मोदी ने शंकर सिंह वाघेला की बजाय केशूभाई के समर्थकों को तवज्जो दी और इस रणनीति से पार्टी को कामयाबी मिली. जिसके बाद वे तीन बार गुजरात के मुख्यमंत्री बने और बाद में वे अब देश के प्रधानमंत्री के रुप में कामकाज संभाल रहे हैं.