नयी दिल्ली : मुसलिम महिलाओं को विवाह में सुरक्षा प्रदान करने से संबंधित तीन तलाक पर रोकवाला विधेयक नरेंद्र मोदी सरकार अब बुधवार को राज्यसभा में पेश कर सकती है. हालांकि सरकार इसे आज ही राज्यसभा में पेश करना चाहती थी और इसके लिए अपने सांसदों को सदन में उपस्थित रहने के संबंध में विह्प भी जारी किया था. लेकिन, रणनीतिक रूप से सरकार ने इस विधेयक कल तक के लिए टाल दिया और इस बीच वह विपक्ष को भरोसे में लेने के लिए पूरी ताकत लगायेगी. संसदीय कार्य मंत्री अनंत कुमार ने इस विधेयक पर कांग्रेस व अन्य दलों से बातचीत जारीहोने की बात कही है और उम्मीद जतायी है कि बिल कल राज्यसभा में पेश हो सकता है. वहीं, शरद पवार कीपार्टी एनसीपी मजीद मेमन व डीएमके की कनिमोझी ने इस विधेयक को सलेक्ट कमेटी को भेजने की बात कही है.
तीन तलाक से संंबंधित बिल को अगर विपक्षी दबाव में सलेक्ट कमेटी के पास सरकार भेजती है तो मौजूदा सत्र में यह बिल पारित नहीं हो पायेगा और ऐसे में इसे संसद के बजट सत्र में पारित कराना होगा. संसद का मौजूदा सत्र पांच जनवरी तक है. सरकार को इस तारीख से पहले इसे राज्यसभा में पारित कराना होगा.
वहीं, सलेक्ट कमेटी के पास भेजने के बाद वहां से आये सुझावों पर विचार करते हुए सरकार को इस पर आगे कदम बढ़ाना होगा. सरकार ने पिछले साल से आम बजट पेश करने की तारीख एक फरवरी निर्धारित की है, ऐसे में संसद का बजट सत्र इस महीने के आखिरी दिनों में शुरू हो सकता है.
समय सीमा की बाध्यता
सुप्रीम कोर्ट ने तीन तलाक पर 22 अगस्त 2017 को छह महीने तक के लिए रोक लगायी थी और केंद्र सरकार को आदेश दिया था कि वह इससे संबंधित कानून इस अवधि के बीचबनाये और इसे लागू करे. ऐसे में सरकार को इससे संबंधित बिल को फरवरी के तीसरे सप्ताह तक संसद में पारित करा कर राष्ट्रपति से मंजूरी लेकर अधिसूचित करना होगा. यानी अगले तीन दिनों में राज्यसभा में बिल पारित नहीं हो पाता है तो अगले डेढ़ से पौने दो महीने में पूरी प्रक्रिया को अमलीजामा पहानाना होगा.
सरकार को मुख्य विपक्ष कांग्रेस से उम्मीद
भले विपक्ष के कुछ क्षेत्रीय दल तीन तलाक से संबंधित बिल में तीन साल की सजा के प्रावधान को कड़ा बताते हुए मौजूदा स्वरूप में इसे पारित करवाने में रोड़ा अटका रहे हों, लेकिन भाजपा की सबसे बड़ी उम्मीद इस बिल पर मुख्य विपक्ष कांग्रेस से ही जुड़ी है. कांग्रेस के कमजोर प्रतिरोध के कारण सरकार ने इस बिल को लोकसभा में बिना किसी संशोधन के पारित करवाया था.
दरअसल, कांग्रेस को इस बात का डर है कि अगर वह बिल पारित करवाने में सहयोग नहीं करती है तो भाजपा उसे मुसलिम महिलाओं के हितों का विरोधी साबित करने के अभियान में जुड़ जायेगी. दूसरा कांग्रेस पर यह भी आरोप लगाया जाता रहा है कि वह मुसलिम समाज के पुरातनपंथियों व कट्टरपंथियों के दबाव में काम करती रही है. शाहबानो प्रकरण को इसी का उदाहरण बताया जाता है. ऐसे में कांग्रेस इस बिल पर फूंक-फूंक कर कदम बढ़ा रही है और भाजपा सरकारको मौजूदा सत्र में ही बिल पारित हो जाने की उम्मीद है.