नयी दिल्ली : इन दिनों एक नाम है जो काफी ट्रेंड कर रहा है ‘जी हां’, हम यहां बात कर रहे हैं बाबा वीरेंद्र देव दीक्षित की ,जो आध्यात्मिक आश्रम का संचालन करते हैं. हाईकोर्ट से लेकर छापेमारी की खबर तो अपने पढ़ ली होगी, लेकिन हम यह आपको बाबा के अतीत में ले चलते हैं. गुजरात के अहमदाबाद जिले में एक इलाका है पाल्दी. इस बाबा की डेब्यू यहीं से हुई थी. 1969 की बात है वीरेंद्र देव दीक्षित अहमदाबाद में पीएचडी करने के लिए पहुंचा था. यहां वह पाल्दी इलाके के प्रभु पार्क स्थित प्रजापिता ब्रह्म कुमारी आश्रम में गया जहां उस वक्त ब्रह्मकुमारी रही वेदांती ने उसे पीएचडी कोर्स की जानकारी दी. पूरे देश में ब्रह्मकुमारी आश्रम की स्थापना करने वाले लेखराज कृपालिनी की जब मौत हो गयी, तो वीरेंद्र देव दीक्षित ने कहा कि मेरे अंदर लेखराज कृपालिनी की आत्मा प्रवेश कर गयी है. उसने कहा कि वीरेंद्र राम है और मैं कृष्ण हूं….
इसके अलावा वीरेंद्र ने यह भी कहा कि उसके अंदर शिव निरंकार की भी आत्मा प्रवेश कर गयी है. वह इतने में नहीं रुके आगे उन्होंने कहा कि मैं शंकर हूं… आश्रम की ब्रह्मकुमारियों ने इसका विरोध किया और वीरेंद्र देव दीक्षित को अहमदाबाद के ब्रह्मकुमारी आश्रम से बाहर का रास्ता दिखा दिया. इस वाक्या के बाद वह माउंट आबू पहुंचा. वहां के आश्रम में उसने ब्रह्मकुमारियों से कहा कि 1970 में वो ही शंकर था. इतना सुनना था कि ब्रह्मकुमारियों ने उसकी ठुकाई कर दी, जिसके बाद वह माउंट आबू से भी भाग खड़ा हुआ और अहमदाबाद वापस आ गया.
अहमदाबाद में उसने दलसुख भाई के घर में शरण ली. 1970 से 1973 तक वीरेंद्र देव ने अहमदाबाद में ही गिरीश अधवार्यु के घर में शरण ली. इस दौरान उसने ब्रह्मकुमारी की मुरली के खिलाफ नगाड़े की धुन लिखनी शुरू कर दी, इसका उद्देश्य खुद को शंकर साबित करना था. नाराज ब्रह्मकुमारियों ने एक बार फिर से वीरेंद्र देव दीक्षित की ठुकाई की, जिसके बाद उसने अहमदाबाद छोड़ दिया. 1973 में वीरेंद्र दिल्ली आ गया और उसने पुष्पा माता के घर में शरण ली. पुष्पा माता की 9 साल की एक बेटी थी कमला जिसपर बाबा की बुरी नजर थी. खबरों की मानें तो वीरेंद्र देव ने उसके साथ दुष्कर्म किया और कहा कि वो उसे जगदंबा (देवी दुर्गा का एक रूप) बना देगा. 1977 में उसने उस घर का त्याग कर दिया और प्रेमकांता के घर में रहने चला गया, उसने प्रेमकांता को भी जगदंबा बनाने के लिए कहा और उससे दुष्कर्म किया.
वीरेंद्र देव ने 1973 से 1976 के दौरान आजादपुर, दिल्ली की सीता माता, पुष्पा माता, कड़कड़डूमा की संतोष माता के अलावा फरीदाबाद की सोमा और शांति के साथ दुष्कर्म किया. उसने सभी को झांसे में लाया और खुद के शंकर होने का ढोंग रचाया. 1973-76 के बीच वो दिल्ली में कभी एक जगह पर नहीं रहा, क्योंकि ब्रह्मकुमारी उसकी हत्या कर देना चाहती थी.
1976 में वीरेंद्र देव के दिमाग में नयी बात आयी और उसने एक ग्रुप बनाया जिसका नाम रखा अडवांस पार्टी. वीरेंद्र देव ने इस नाम को बदलकर बाद में आध्यात्मिक ईश्वरीय विश्वविद्यालय रखा. 1977 में दिल्ली के ही अशोक पाउजा ने उसकी जमकर ठुकाई कर दी, जिसके बाद वो पहले फर्रूखाबाद के काम्पिल और फिर कानपुर पहुंचा. 1978 में उसने एक साल तक कानपुर को अपना ठिकाना बनाया. काम्पिल में वीरेंद्र देव को एक ब्रह्मकुमारी का भी साथ मिला जिसके बाद उसने कहना शुरू कर दिया कि लेखराज किरपालनी की आत्मा उसके अंदर प्रवेश कर गयी है. आगे उसने कहा कि वो कृष्ण की आत्मा है, जिसे 16108 गोपियों की आवश्यकता है. इसलिए उसने किशोरियों और युवतियों के साथ दुष्कर्म करना शुरू कर दिया. 31 दिसंबर 1995 की बात है जब एक दक्षिण भारतीय शख्स ने वीरेंद्र का विरोध किया. इस विरोध से बाबा इतने बौखला गये कि उसने उस शख्स की हत्या करवा दी. काम्पिल के ही डॉ. अग्निहोत्री ने जब विरोध के सुर बुलंद किये तो वीरेंद्र ने उसे भी धमकी दे डाली.
बात 30 मार्च 1998 की है कोलकाता की युवती के घर वाले कम्पिल थाने पहुंचे और वहां पर बेटी को आश्रम में बंधक बनाकर रखने और दुष्कर्म करने का आरोप लगाया. पुलिस आश्रम पहुंची और आश्रम के 11 सेवादारों को गिरफ्तार किया. पुलिस ने पीड़िता को नारी निकेतन भेज दिया. ठीक इसके चार दिन बाद ही 3 अप्रैल 1998 को दिल्ली के अशोक पाउजा ने वीरेंद्र देव दीक्षित के साथ ही कमला और कर्नाटक की शांता बहन के खिलाफ केस दर्ज करवाने का काम किया. 16 अप्रैल 1998 को मथुरा की महिला ने भी वीरेंद्र और कमला के खिलाफ दुष्कर्म का मुकदमा दर्ज करवाया. यही नहीं बिजली विभाग के अधिकारियों ने कम्पिल के आश्रम में बिजली चोरी की शिकायत करते हुए मुकदमा दर्ज करवाया. पुलिस जब वीरेंद्र की गिरफ्तारी के लिए आश्रम में पहुंची, तो वहां के लोग पुलिस ने उलझ पड़े. पुलिस ने वीरेंद्र देव, सेवादार रवींद्र दास, जगन्नाथ, महेश, जनार्दन, मनोरंजन, कोपली, शांता बहन सहित आठ लोगों पर केस दर्ज किया और इन्हें सलाखों के पीछे धकेल दिया. ये लोग 6 महीने तक जेल में रहे. इसी दौरान काम्पिल आश्रम पर आयकर विभाग ने भी छापेमारी की थी और पांच करोड़ रुपये बरामद किये.
इसके अलावा बाबा का आश्रम कलकत्ता में भी था, जिसके मुखिया रॉबिन दास को 2015 में पुलिस ने आतंकियों की मदद के आरोप में जेल भेज दिया था. बताया जाता है कि छापेमारी के दौरान उसके आश्रम से 30 लड़किया भी मिलीं थीं. वीरेंद्र देव दीक्षित ने काप्मिल और दिल्ली के रोहिणी को अपना ठिकाना बनाया और फिर अपने काले कर्मों की शुरुआत इन्हीं जगहों से की. 16108 गोपियों के साथ रास लीला मनाने की बात करने वाले बाबा के आश्रम में जब 19 दिसंबर को जब छापेमारी की गयी तो पता चला कि वो आश्रम नहीं पूरा किला है. दिल्ली हाई कोर्ट के आदेश पर जब टीम 21 दिसंबर की सुबह रोहिणी आश्रम पहुंची, तो उसे पूरे आश्रम की तलाशी लेने में 9 घंटे से भी ज्यादा का समय लगा. 1200 वर्ग गज के आश्रम में कुल 22 कमरे बने थे, जिनमें से 13 के ताले तोड़े गये. इस दौरान वहां से 41 लड़कियां बरामद हुईं.
मीडिया रिपोर्ट्स की मानें तो इस विश्वविद्यालय में दो आश्रम मिले. एक मुख्य आश्रम है और दूसरा वीवीआईपी आश्रम. वीवीआईपी आश्रम अभी हाल ही में बना है, जिसे मुख्य आश्रम से जोड़ने के लिए सुरंग तैयार की गयी.