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भारत, अमेरिका या चीन किस देश के लोगों के फेफड़ों में है ज्यादा दम

नयी दिल्ली : भारतीय फेफडों की क्षमता उत्तरी अमेरिका या यूरोप के लोगों के मुकाबले 30 प्रतिशत कम है जिससे उन्हें मधुमेह, दिल का दौरा या आघात होने का खतरा अधिक होता है. इंस्टीट्यूट ऑफ जीनोमिक्स एंड इंटीग्रेटिव बायोलॉजी (आईजीआईबी) संस्थान के निदेशक डॉ. अनुराग अग्रवाल का मानना है कि इसके पीछे जातीयता के साथ […]

नयी दिल्ली : भारतीय फेफडों की क्षमता उत्तरी अमेरिका या यूरोप के लोगों के मुकाबले 30 प्रतिशत कम है जिससे उन्हें मधुमेह, दिल का दौरा या आघात होने का खतरा अधिक होता है. इंस्टीट्यूट ऑफ जीनोमिक्स एंड इंटीग्रेटिव बायोलॉजी (आईजीआईबी) संस्थान के निदेशक डॉ. अनुराग अग्रवाल का मानना है कि इसके पीछे जातीयता के साथ वायु प्रदूषण, शारीरिक गतिविधि, पोषण, पालन-पोषण मुख्य कारक हैं.

शांति स्वरुप भटनागर पुरस्कार से सम्मानित अग्रवाल इस पर अहम अध्ययन कर रहे हैं. अग्रवाल ने कहा कि अमेरिकन थोरासिक सोसायटी से उपलब्ध आंकडों के अनुसार, भारतीयों की फोसर्ड वाइटल कैपैसिटी (एफवीसी) उत्तरी अमेरिकियों या यूरोपीय लोगों के मुकाबले 30 फीसदी कम है तथा चीन के लोगों से मामूली रुप से कम है.
एफवाईसी अधिकतम श्वास लेने के बाद जितना संभव हो सके, उतनी जल्दी श्वास छोडने की कुल मात्रा है. उन्होंने कहा कि एफवाईसी इस बात का संकेत होता है कि किसी व्यक्ति में दिल की बीमारियों को सहने में कितनी क्षमता है. अग्रवाल ने पीटीआई-भाषा से कहा, इसका मतलब है कि अमेरिकी मानकों पर मापे जाने वाले एक औसत भारतीय के फेफडे की क्षमता कम होगी। इस श्रेणी के लोगों में मधुमेह, दिल का दौरा पडने तथा आघात से मरने की अधिक आशंका देखी गई.
वल्लभभाई पटेल चेस्ट इंस्टीट्यूट में फुफ्फुसीय चिकित्सा विभाग के एक ताजा अध्ययन में यह पाया गया कि दिल्ली में बच्चों की फेफडों की क्षमता अमेरिका के बच्चों के मुकाबले 10 प्रतिशत कम है. विज्ञान और पर्यावरण केंद्र (सीएसई) द्वारा जारी एक रिपोर्ट में कल कहा कि दिल्ली में हर तीसरे बच्चे के फेफडों की स्थिति ठीक नहीं है.

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