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केरल लव जेहाद : सुप्रीम कोर्ट ने कहा पत्नी गुलाम नहीं, पति अभिभावक नहीं, जानें हादिया से क्या-क्या पूछा गया…

नयी दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट ने केरल लव जेहाद मामले में सुनवाई करते हुए हादिया से कहा कि पत्नी कोई गुलाम नहीं और ना ही पति उसका अभिभावक है. गौरतलब है कि कल हादिया सुप्रीम कोर्ट के सामने उपस्थित हुई और कहा कि वह अपने पति के पास रहना चाहती है. मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा, […]


नयी दिल्ली :
सुप्रीम कोर्ट ने केरल लव जेहाद मामले में सुनवाई करते हुए हादिया से कहा कि पत्नी कोई गुलाम नहीं और ना ही पति उसका अभिभावक है. गौरतलब है कि कल हादिया सुप्रीम कोर्ट के सामने उपस्थित हुई और कहा कि वह अपने पति के पास रहना चाहती है. मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा, न्यायाधीश एएम खानविलकर और न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ ने 25 साल की हादिया से लगभग आधे घंटे बातचीत की और उसके जीवन से संबंधित कई सवाल किये, जो उसकी महत्वाकांक्षा, पढ़ाई और हॉबी से जुड़े थे.

हादिया ने सुप्रीम कोर्ट से कहा कि वह अपने पति के साथ रहने की स्वतंत्रता चाहती है. लेकिन कोर्ट ने उसकी यह मांग नहीं मानी और उसे पढ़ने के लिए तमिलनाडु के सलेम भेज दिया. हालांकि कोर्ट ने हादिया को उसके माता-पिता के संरक्षण से मुक्त कर दिया. अदालत में काफी देर तक चली कार्यवाही के बाद शीर्ष न्यायालय ने हदिया की यह अर्जी नहीं मानी कि उसे उसके पति के साथ जाने दिया जाये.
उसने न्यायालय से यह भी कहा कि उसे जीने और इस्लामिक आस्था का पालन करने की आजादी चाहिए. हदिया के पिता, जो बंद कमरे में सुनवाई चाहते थे कि इच्छा के खिलाफ खुली अदालत में करीब डेढ़ घंटे तक 25 साल की हदिया से बात करने वाले शीर्ष न्यायालय ने केरल पुलिस को निर्देश दिया कि उसे सुरक्षा मुहैया कराये और सुनिश्चित करे कि वह जल्द से जल्द सलेम जाकर वहां के शिवराज मेडिकल कॉलेज में होम्योपैथी की पढ़ाई करे. केरल उच्च न्यायालय की ओर से हदिया और शफीन जहां के बीच हुआ निकाह 29 मई को रद्द कर दिए जाने के बाद करीब छह महीने से हदिया अपने माता-पिता के पास थी.

हदिया जन्म से हिंदू है और उसने शादी से कुछ महीने पहले धर्म परिवर्तन कर इस्लाम कबूल किया है. उच्चतम न्यायालय शफीन की अर्जी पर अगले साल जनवरी के तीसरे हफ्ते में सुनवाई करेगा. शफीन ने निकाह रद्द करने के केरल उच्च न्यायालय के फैसले को चुनौती दी है. प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली पीठ ने कॉलेज के डीन को हदिया का स्थानीय अभिभावक नियुक्त किया और उन्हें छूट दी कि वह कोई दिक्कत होने पर अदालत से संपर्क कर सकते हैं. न्यायमूर्ति ए एम खानविलकर और डी वाई चंद्रचूड की सदस्यता वाली पीठ ने निर्देश दिया कि हदिया से कॉलेज में आम छात्रों की तरह ही बर्ताव किया जाए.

न्यायालय ने हदिया का यह अनुरोध भी मान लिया कि उसे पहले अपनी दोस्त के घर जाने दिया जाए, क्योंकि पिछले 11 महीने से उसे मानसिक तौर पर प्रताड़ित किया गया है. हदिया को सलेम स्थित कॉलेज जाने से पहले अपनी दोस्त के यहां जाने की इजाजत दे दी गयी.
हदिया से जब कहा गया कि वह सलेम में अपने किसी करीबी रिश्तेदार या परिचित का नाम सुझाए जिसे स्थानीय अभिभावक बनाया जा सके, इस पर उसने कहा कि उसे इस भूमिका में सिर्फ अपने पति की जरुरत है.

उसने कहा कि उसके पति उसकी पढाई के खर्च का ख्याल रख सकते हैं और उसे अपना प्रोफेशनल कोर्स पूरा करने के लिए सरकारी खर्च की जरुरत नहीं है. पीठ ने अंग्रेजी में सवाल किए जबकि हदिया ने मलयालम में जवाब दिए. हदिया के जवाब का अनुवाद केरल सरकार की ओर से पेश हुए वरिष्ठ वकील वी. गिरि ने किया. करीब ढाई घंटे तक चली सुनवाई के दौरान हदिया के माता-पिता, उसके सास-ससुर और उसके पति खचाखच भरी अदालत में मौजूद थे.

पीठ ने हदिया के लक्ष्यों, जीवन, पढाई और शौक के बारे में सवाल किए, जिसका उसे सहज होकर जवाब दिया और कहा कि वह हाउस सर्जनशिप की इंटर्नशिप करना चाहती है और अपने पांव पर खडे होना चाहती है. हाउस सर्जनशिप 11 महीने का कोर्स है. न्यायालय ने कॉलेज एवं यूनिवर्सिटी को निर्देश दिया कि वह हदिया का फिर से दाखिला ले और उसे छात्रावास सुविधाएं मुहैया कराए.

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