नयी दिल्ली: रोहिंग्या मुसलमानों को लेकर जारी विवाद के बीच करीब एक लाख चकमा और हाजोंग शरणार्थियों को भारतीय नागरिकता मिलनी तय हो गयी है. ये लोग पांच दशक पहले बांग्लादेश से भारत में आये थे और अभी पूर्वोत्तर में शिविरों में रह रहे हैं. बताया जा रहा है कि सुप्रीम कोर्ट की ओर से वर्ष 2015 के आदेश के बाद सरकार की ओर से यह कदम उठाया गया है.
इसे भी पढ़ें: बांग्लादेशी हिंदू शरणार्थियों को देंगे नागरिकता : विजयवर्गीय
शीर्ष न्यायालय ने अपने फैसले में केंद्र सरकार को चकमा और हाजोंग शरणार्थियों को नागरिकता देने का आदेश दिया था. इनमें से बड़ी संख्या में लोग अरुणाचल प्रदेश में रहते हैं. गृह मंत्रालय के एक अधिकारी ने बताया कि गृह मंत्री राजनाथ सिंह बुधवार को अरुणाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री पेमा खांडू से इस मुद्दे पर चर्चा करेंगे. मुख्यमंत्री शरणार्थियों को नागरिकता दिये जाने का यह कहते हुए विरोध कर रहे हैं कि इससे राज्य की जनसांख्यिकी बदल जायेगी.
उधर, रोहिंग्या शरणार्थियों, जम्मू-कश्मीर में मानवाधिकार की स्थिति और पत्रकार गौरी लंकेश की हत्या के मामलों को लेकर संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार प्रमुख की आलोचना को पुरजोर ढंग से खारिज करते हुए मंगलवार को भारत ने कहा कि वह इन टिप्पणियों से हैरान है. संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार प्रमुख जैद राद अल हुसैन ने सोमवार को रोहिंग्या शरणार्थियों को वापस भेजने के मुद्दे और धार्मिक असिष्णुता एवं मानवाधिकार कार्यकर्ताओं को खतरे को लेकर भारत की आलोचना की थी. वह संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद के 36वें सत्र में बोल रहे थे.
संयुक्त राष्ट्र-जिनेवा में भारत के स्थायी प्रतिनिधि राजीव के चंदर ने कहा कि हम मानवाधिकार उच्चायुक्त की ओर से की गयी कुछ टिप्पणियों से हैरान हैं. यह उस आजादी और अधिकारों की अनुचित विवेचना है, जो एक जीवंत लोकतंत्र की गारंटी हैं और व्यवहार में हैं. हुसैन की टिप्पणियों को खारिज करते हुए चंदर ने कहा कि चुनिंदा और गलत रिपोर्ट के आधार पर इस तरह के निष्कर्ष पर पहुंचने से किसी समाज में मानवाधिकार की बेहतर समझ नहीं पैदा होती है.
संयुक्त राष्ट्र के आकलन के अनुसार, भारत में करीब 40,000 रोहिंग्या मुसलमान रह रहे हैं और इनमें से 16,000 लोगों को शरणार्थी का दस्तावेज मिला है. चंदर ने कहा कि सबका साथ, सबका विकास के हमारी सरकार के लक्ष्य से समावेशी विकास हासिल करने की हमारी प्रतिबद्धता प्रदर्शित होती है.