नयी दिल्ली : उच्चतम न्यायालय ने 10 वर्षीय एक बलात्कार पीड़ित लडकी के 26 सप्ताह के भ्रूण के गर्भपात की अनुमति के लिए दायर याचिका पर आज केंद्र सरकार से जवाब तलब किया. प्रधान न्यायाधीश जगदीश सिंह खेहर और न्यायमूर्ति धनंजय वाई चन्द्रचूड की पीठ ने चंडीगढ विधिक सेवा प्राधिकरण के सदस्य सचिव से इस मामले में न्याय मित्र के रूप में न्यायालय की मदद करने का अनुरोध किया है. न्यायालय ने बलात्कार पीड़िता का 26 जुलाई को चिकित्सकों के बोर्ड से परीक्षण कराने का भी निर्देश दिया है और इसके लिए माता-पिता में से एक की सहमति लेने को कहा है.
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पटना की रेप पीड़िता को नहीं मिली थी गर्भपात की इजाजत, अब दस साल की पीड़िता ने मांगी अनुमति
नयी दिल्ली : उच्चतम न्यायालय ने 10 वर्षीय एक बलात्कार पीड़ित लडकी के 26 सप्ताह के भ्रूण के गर्भपात की अनुमति के लिए दायर याचिका पर आज केंद्र सरकार से जवाब तलब किया. प्रधान न्यायाधीश जगदीश सिंह खेहर और न्यायमूर्ति धनंजय वाई चन्द्रचूड की पीठ ने चंडीगढ विधिक सेवा प्राधिकरण के सदस्य सचिव से इस […]
पीठ ने यह भी कहा कि मेडिकल बोर्ड को इस पहलू की भी जांच करनी होगी कि यदि वे गर्भ समापन की अनुमति दें तो पीड़ित लड़की के जीवन के प्रति खतरे की क्या स्थिति है. न्यायालय ने सदस्य सचिव को यह सुनिश्चित करने के लिए भी कहा कि बलात्कार पीड़िता और उसके माता पिता में से एक को पीजीआई, चंडीगढ में परीक्षण हेतु जाने के लिए उचित सुविधा उपलब्ध करायी जाये. न्यायालय गर्भ का चिकित्सीय समापन कानून के तहत 20 सप्ताह तक के भ्रूण का गर्भपात करने की अनुमित प्रदान करता है और भ्रूण में आनुवांशिक असमान्यता होने की स्थिति में अपवाद स्वरुप इतर आदेश भी दे सकता है.
याचिका दायर करने वाले वकील अलख आलोक श्रीवास्तव ने शीर्ष अदालत से विशेषकर बलात्कार पीड़ित बच्चों के गर्भपात से संबंधित मामलों में तत्परता से कदम उठाने के इरादे से देश के प्रत्येक जिले में स्थाई मेडिकल बोर्ड गठित करने के लिए उचित दिशानिर्देश देने का भी अनुरोध किया है.
पटना की दुष्कर्म पीड़िता को नहीं मिली थी गर्भपात की इजाजत
हालांकि दुष्कर्म के बाद गर्भवती हुई पटना की एक एचआइवी पीड़ित महिला को सुप्रीम कोर्ट से गर्भपात की इजाजत नहीं मिली. छह मई को यह खबर आयी थी कि सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में हुई देरी के लिए बिहार सरकार से जवाब मांगा है. सुप्रीम कोर्ट ने एम्स के मेडिकल बोर्ड की रिपोर्ट के आधार पर फैसला सुनाते हुए कहा है कि एक असहाय और एचआइवी पीड़ित 35 साल की महिला के 26 हफ्ते के भ्रूण का गर्भपात नहीं होगा. साथ ही कोर्ट ने बिहार सरकार को पटना की इस महिला को दुष्कर्म पीड़िता फंड से चार हफ्ते के भीतर को तीन लाख रुपये देने के आदेश दिए हैं. महिला के मामले में राज्य सरकार के अथॉरिटी और एजेंसियो द्वारा जो देरी हुई है उसके लिए क्या मुआवजा तय हो, इस पर सुप्रीम कोर्ट अब 9 अगस्त को सुनवाई करेगी.
कोर्ट पहले भी दे चुका है गर्भपात की इजाजत
सुप्रीम कोर्ट ने तीन जुलाई को भी 26 सप्ताह की गर्भवती महिला को गर्भपात कराने की अनुमति प्रदान की थी क्योंकि उसके गर्भ में पल रहा भ्रूण दिल की गंभीर बीमारी से ग्रस्त था. न्यायमूत दीपक मिश्रा और न्यायमूर्ति ए एम खानविलकर की खंडपीठ ने कहा कि इस महिला के गर्भ में पल रहे भ्रूण का तत्काल चिकित्सीय प्रक्रिया से कोलकाता स्थित एसएसकेएम अस्पताल में समापन किया जाना चाहिए. न्यायालय ने मेडिकल बोर्ड और एसएसकेएम अस्पताल की रिपोर्ट के अवलोकन के बाद यह निर्देश दिया. रिपोर्ट में यह सलाह दी गयी थी कि गर्भ में पल रहे भ्रूण का समापन किया जाना चाहिए क्योंकि यदि गर्भावस्था जारी रखी गयी तो मां को गंभीर मानिसक आघात हो सकता है और बच्चे का यदि जन्म भी हुआ तो दिल की बीमारियों के लिए उसकी कई सर्जरी करनी पड़ेगी.
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