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तृणमूल कांग्रेस ने एसआइआर के लिए अपने कार्यकर्ताओं को लामबंद कर बनायी रणनीति

बिहार से सबक लेते हुए, जहां विपक्षी दलों ने निर्वाचन आयोग पर एसआइआर प्रक्रिया के दौरान उचित सत्यापन के बिना मतदाता सूची से नाम हटाने का आरोप लगाया था, पश्चिम बंगाल में सत्तारूढ़ तृणमूल ने बूथ स्तर तक अपने कार्यकर्ताओं को सक्रिय कर दिया है.

तृणमूल कार्यशालाएं, प्रशिक्षण कार्यक्रम के आयोजन के अलावा पुनरीक्षण प्रक्रिया की निगरानी के लिए कार्यबल गठित कर रही है कोलकाता. तृणमूल कांग्रेस ने पश्चिम बंगाल में प्रस्तावित विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआइआर) का भले ही राजनीतिक रूप से विरोध कर रही है. लेकिन, उसने इससे मुकाबले के लिए प्रशासनिक पहुंच और बूथ स्तर के अपने कार्यकर्ताओं को लामबंद करके एक रणनीति तैयार की है. इसके साथ ही तृणमूल ने साथ ही भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और निर्वाचन आयोग पर ‘मतदाताओं को मताधिकार से वंचित करने की साजिश’ करने का आरोप लगाया है. बिहार से सबक लेते हुए, जहां विपक्षी दलों ने निर्वाचन आयोग पर एसआइआर प्रक्रिया के दौरान उचित सत्यापन के बिना मतदाता सूची से नाम हटाने का आरोप लगाया था, पश्चिम बंगाल में सत्तारूढ़ तृणमूल ने बूथ स्तर तक अपने कार्यकर्ताओं को सक्रिय कर दिया है. बताया जा रहा है कि तृणमूल को 80 हजार बूथ पर फैली अपनी संगठनात्मक ताकत पर भरोसा है, जिसके बढ़कर 94 हजार तक पहुंचने की संभावना है. तृणमूल कार्यशालाएं, प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित कर रही है तथा पुनरीक्षण प्रक्रिया की निगरानी के लिए कार्यबल गठित कर रही है. तृणमूल के प्रदेश उपाध्यक्ष जयप्रकाश मजूमदार ने कहा, ‘‘भारत में तृणमूल कांग्रेस एकमात्र राजनीतिक दल है, जिसके पास बूथ स्तर पर एक सघन संगठन है, जो मतदाता सूचियों की किसी भी पुनरीक्षण का मुकाबला करने के लिए तैयार है. यह पिछले 25 वर्षों से पार्टी की संस्कृति में समाया हुआ है. हम एसआइआर के खिलाफ हैं.’’ मजूमदार ने कहा कि “मतदाता सूची की जांच के लिए बूथ स्तर तक विशेष निर्देश जारी किये गये हैं. पार्टी की अग्रिम इकाइयों सहित पूरे संगठन को निर्बाध और त्रुटिरहित कार्यप्रवाह के लिए लगाया गया है. हाल की बैठकों में, हमारी पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव अभिषेक बनर्जी ने इस कार्य में जवाबदेही पर विशेष जोर दिया है.’’ एसआइआर को लेकर बिहार में पहले ही राजनीतिक विवाद खड़ा हो चुका है, जहां पुनरीक्षण के पहले चरण में 65 लाख से अधिक नाम सूची से बाहर कर दिये जाने के बाद मतदाताओं की संख्या 7.9 करोड़ से घटकर 7.24 करोड़ रह गयी. निर्वाचन आयोग ने दावा किया था कि मतदाता सूची में दर्ज 22,34,501 लोग इस प्रक्रिया के दौरान मृत पाये गये. अन्य 36.28 लाख लोग राज्य से ‘स्थायी रूप से बाहर चले गये’ या बताये गये अपने पते पर ‘नहीं मिले’ और 7.01 लाख लोग ‘एक से अधिक जगहों’ पर पंजीकृत पाये गये. पश्चिम बंगाल में लगभग 7.6 करोड़ मतदाता हैं और राज्य में सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस को बिहार जैसी स्थिति दोहराये जाने का डर है. ऐसी स्थिति से बचने के लिए राज्य की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी नीत सरकार ने ‘दुआरे सरकार’ और ‘आमादेर पाड़ा, आमादेर समाधान’ जैसी अपनी प्रमुख जनसंपर्क योजनाओं को राजनीतिक कार्य के साथ जोड़ दिया है. इन शिविरों में केवल 26 दिनों में एक करोड़ से अधिक लोगों ने हिस्सा लिया. अब इनका उपयोग नागरिक और प्रशासनिक मुद्दों के समाधान के अलावा, गुम हुए दस्तावेजों, निवास प्रमाण पत्र, जाति प्रमाण पत्र, पारिवारिक रजिस्टर, जमीन के कागजात और वन अधिकार प्रमाण पत्रों को उचित सत्यापन के बाद उन लोगों को प्रदान करने के लिए किया जा रहा है, जिनके पास ये नहीं हैं. तृणमूल कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता ने कहा : ‘दुआरे सरकार’ शिविरों के माध्यम से, कई ग्रामीण जो जिला मुख्यालय जाने का खर्च नहीं उठा सकते, उन्हें प्रमाण पत्र प्रदान किये जा रहे हैं. जब भी एसआइआर शुरू होगा, हम यह सुनिश्चित करेंगे कि कोई भी वास्तविक मतदाता बिना दस्तावेजों के न रहे. उत्तर 24 परगना से तृणमूल के एक नेता ने कहा, ‘‘पहले, हमारे पास दस्तावेजों के लिए रोजाना 70-80 लोग आते थे. अब लगभग 500 लोग ऐसे आ रहे हैं, जिनके पास या तो जमीन या जाति प्रमाण पत्र नहीं हैं या वे खो गये हैं. हमारे स्वयंसेवक उनकी मदद कर रहे हैं.’’ पिछले सप्ताह, सांसद अभिषेक बनर्जी ने उत्तर बंगाल के सात संगठनात्मक जिलों में बैठकें कीं और विस्तृत आंकड़ों के साथ बूथ-स्तरीय प्रदर्शन की समीक्षा की. पार्टी पहले ही जिला समितियों में फेरबदल कर चुकी है और सितंबर में लगभग 30-40 प्रतिशत ब्लॉक और नगर अध्यक्षों को बदलने की तैयारी में है. हालांकि, भाजपा ने तृणमूल पर दोहरा रवैया अपनाने का आरोप लगाया है. भाजपा के वरिष्ठ नेता जगन्नाथ चट्टोपाध्याय ने एक सोशल मीडिया पोस्ट में, एक सूची साझा की जिसमें उन जिलों की संख्या बतायी गयी है जहां से प्रत्येक पार्टी ने बूथ स्तरीय एजेंट (बीएलए-1) के लिए नाम जमा किये हैं. इस सूची से पता चलता है कि तृणमूल ने अब तक पांच जिलों से नाम जमा किये हैं. उन्होंने सवाल किया, ‘‘बीएलए-1 की नियुक्ति के मामले में, तृणमूल ने पांच जिलों के नाम जमा किये हैं. अगर वे एसआइआर का विरोध कर रहे हैं, तो वे इस प्रक्रिया में भाग क्यों ले रहे हैं?’’ तृणमूल कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता ने पार्टी का रुख स्पष्ट किया. उन्होंने कहा, ‘‘एसआइआर का समर्थन करने का कोई सवाल ही नहीं है. हम इसका विरोध करेंगे, लेकिन भाजपा को यह दावा करने से रोकने के लिए संगठनात्मक तत्परता जरूरी है कि तृणमूल कार्यकर्ता उपलब्ध कराने में विफल रही. भाजपा के मंसूबों को नाकाम करने के लिए बूथ स्तर पर लोगों की मौजूदगी जरूरी है.’’ तृणमूल सूत्रों ने बताया कि अधिकतर जिलों ने बीएलए-1 के लिए नाम भेज दिये हैं, जिन्हें पार्टी निर्वाचन आयोग को भेजने से पहले मंजूरी देगी. राजनीतिक विश्लेषक सुमन भट्टाचार्य ने कहा कि तृणमूल एसआइआर के असर को कम करने के लिए सरकारी योजनाओं और पार्टी मशीनरी को मिला रही है. उन्होंने कहा, ‘‘तृणमूल नेतृत्व ने बिहार से सबक लिया है. बिहार में जहां बिना उचित दस्तावेज के नाम हटाने का मुद्दा था, वहीं पश्चिम बंगाल में सत्तारूढ़ पार्टी पहुंच कार्यक्रमों और अपने नेटवर्क के जरिये यह सुनिश्चित कर रही है कि दूर-दराज के मतदाता के पास भी दस्तावेज हों.’’

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