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इंडिया व एनडीए के नेता कर रहे ताबड़तोड़ प्रचार, वोटरों की चुप्पी नेताओं के लिए बनी सिरदर्द

वसीम अख्तर, पुरैनी बिहार में दो चरण के चुनाव पूरे होने के बाद तीसरे चरण का चुनाव प्रचार चरम पर है. प्रत्याशियों के साथ उनके समर्थकों ने भी मोर्चा

वसीम अख्तर, पुरैनी बिहार में दो चरण के चुनाव पूरे होने के बाद तीसरे चरण का चुनाव प्रचार चरम पर है. प्रत्याशियों के साथ उनके समर्थकों ने भी मोर्चा संभाल लिया है. चौक-चौराहों पर चुनावी चर्चा भी तेज हो गयी है. कार्यकर्ता खुलकर अपने प्रत्याशियों के जीत के दावे कर रहे हैं, लेकिन मतदाता अब भी खामोश हैं. बता दें कि तीसरे चरण में सात मई को मधेपुरा लोकसभा क्षेत्र में मतदान होना है. चाय पान की दुकान और ठेलों पर चुनावी चर्चा चाय पान की दुकान और ठेलों में चुनावी चर्चा का अलग रंग ही दिखायी देता है. यहां चुनावी चर्चा करने वाले सभी एक-दूसरे को अच्छे से जानते हैं. यही वजह है कि पार्टी विशेष का पक्ष रखने वाले के सामने उसकी पार्टी की हार की चर्चा कर मजे भी लेते हैं. वोटरों का मूड भांपने में एड़ी-चोटी का जोर वोटरों की चुप्पी नेताओं के लिए सिरदर्द बन गयी है. हेलिकाप्टर वाली सभाओं में नेता भीड़ न जुटने से पशोपेश की स्थिति में नजर आ रहे हैं. मतदान के लिए महज तीन दिन का समय रह गया है. कोई भी अपने पत्ते खोलने को तैयार नहीं है. राजनीतिक दलों को मतदाताओं का मूड भांपने में एड़ी-चोटी का जोर लगाना पड़ रहा है. हमारे पास तो कोई वोट मांगने नहीं आया चौक-चौराहे, पान दुकानों और होटलों में चुनावी चर्चा का दौर जारी है. मतदाताओं के बीच देश और प्रदेश की सीटों पर चर्चा होती रहती है. इनमें से कोई व्यापारी है, तो कोई नौकरी पेशा वाला, लेकिन सभी चुनावी चर्चा में बराबरी से हिस्सा ले रहे हैं. कुछ जीत-हार की बात पर हां में हां मिलाते हैं, तो कुछ प्रत्याशी को लेकर मनभेद दिखायी नजर आता है. सभी का अपना तर्क रहता है. चुनावी चर्चा के दौरान इसमें नाराजगी के साथ विश्वास और अतिरेक विश्वास तीनों दिखायी देता है. मतदाता भी चालाक हैं. जब वे देखते है कि सामने वाला व्यक्ति किसी राजनीतिक दल से संबंध रखता है, तो उसे गोलमोल जवाब देते हैं. वहीं आपसी चर्चा के दौरान मतदाता इस बात को लेकर नाराज दिखते हैं कि उनके क्षेत्र में अब तक कोई भी प्रत्याशी वोट मांगने नहीं आया है. फिर इस बात पर चर्चा शुरू हो जाती है कि लोकसभा, विधानसभा और पार्षद चुनाव में प्रचार का तरीका अलग-अलग होता है. कुछ मतदाता तो यह भी चर्चा करते दिखायी दे रहे कि सभी प्रत्याशी आम मतदाताओं तक नहीं जाकर वोट के ठेकेदारों से ही घिरे हुए हैं.

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