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क्या ‘माहवारी’ के दौरान आपकी बिटिया को स्कूल में मिलती है तमाम सुविधाएं?

-रजनीश आनंद- (लेखिका‘माहवारी स्वच्छता और झारखंडी महिलाओं का स्वास्थ्य’ विषय परइंक्लूसिव मीडिया यूएनडीपी की फेलो रहीं हैं) क्या आप 10-12 साल की हो रही बेटियों के अभिभावक हैं, तो आपसे हम कुछ सवाल कर रहे हैं? क्या आपने अपनी बिटिया को ‘माहवारी’ के बारे में स्पष्ट जानकारी दी है? क्या आपने यह जानने की कोशिश […]

-रजनीश आनंद-

(लेखिका‘माहवारी स्वच्छता और झारखंडी महिलाओं का स्वास्थ्य’ विषय परइंक्लूसिव मीडिया यूएनडीपी की फेलो रहीं हैं)

क्या आप 10-12 साल की हो रही बेटियों के अभिभावक हैं, तो आपसे हम कुछ सवाल कर रहे हैं? क्या आपने अपनी बिटिया को ‘माहवारी’ के बारे में स्पष्ट जानकारी दी है? क्या आपने यह जानने की कोशिश की है कि उसके स्कूल में ‘माहवारी’ के दिनों में किसी तरह की सुविधाएं दी जा रही हैं? अगर आपने अबतक अपनी बिटिया से यह सवाल नहीं किया, तो देर ना करें, जल्दी करें, क्योंकि अगर आप ऐसा नहीं करेंगे, तो संभव है कि आपकी बिटिया ‘डिप्रेशन’ की शिकार हो जाये और स्कूल जाने से बचने लगे.

बच्चों को अच्छी से अच्छी शिक्षा दिलाने के लिए अभिभावक उनका दाखिला शहर के नामी-गिरामी स्कूलों में मोटा पैसा देकर तो कराते हैं, लेकिन वे कभी इस बात की ओर ध्यान नहीं देते हैं कि उन स्कूलों में बच्चों को क्या और कैसी सुविधा मिल रही है. ‘माहवारी’ के दौरान अधिकांश स्कूलों में किशोरियों को पर्याप्त सुविधाएं नहीं मिलती हैं.

सरकारी स्कूलों की बात तो खैर दीगर है, निजी स्कूलों में भी लड़कियों को तमाम सुविधाएं उपलब्ध नहीं हैं, जबकि निजी स्कूल अभिभावकों से मोटा पैसा सुविधाओं के नाम पर वसूलते हैं. स्कूलों में दाखिले के लिए निजी स्कूल आकर्षक विज्ञापन देते हैं, जहां फैकल्टी, एक्ट्रा एक्टिविटी आदि की जानकारी तो विस्तार में दी जाती है, लेकिन शौचालय वहां की साफ-सफाई के बारे में कोई जानकारी उपलब्ध नहीं होती है. हमने कई नामी-गिरामी स्कूलों के वेबसाइट को खंगाला, लेकिन हमें वहां इस संबंध में कोई जानकारी नहीं मिली कि माहवारी के दौरान किशोरियों को किस तरह की सुविधाएं स्कूल प्रबंधन उपलब्ध कराता है.


ध्यान दें, माहवारी के दौरान गंदे कपड़े का प्रयोग बन सकता है बांझपन का कारण

स्कूलों के वेबसाइट पर इस बात की जानकारी तो है कि स्कूल का बिल्डिंग किस तरह का है वहां कक्षाएं कैसी हैं, डांस रूम कैसा है. लेकिन इस बात की कोई जानकारी नहीं है कि माहवारी के दौरान किशोरियों को क्या और कैसी सुविधाएं दी जाती हैं. शौचालय कैसा है, कितने विद्यार्थियों पर एक शौचालय है. वहां डस्टबिन, साबुन और पानी की उचित व्यवस्था है या नहीं इत्यादि. कई स्कूल के वेबसाइट पर इस बात के तो स्पष्ट निर्देश हैं कि कक्षाएं गंदी मिली, तो उसे स्टूडेंट साफ करेंगे और अगर बच्चे गंदे कपड़े और बढ़े हुए नाखून के साथ आयेंगे तो उनके खिलाफ कार्रवाई होगी. लेकिन अगर शौचालय में बच्चियों के लिए तमाम सुविधाएं नहीं होंगी, तो स्कूल प्रबंधन इस संबंध में क्या करेगा इस बारे में कोई जानकारी नहीं है. चौंकाने वाली बात तो यह है कि गर्ल्स स्कूल के वेबसाइट पर भी इस संबंध में कोई जानकारी उपलब्ध नहीं है.

रांची के ‘Co education’ स्कूल में माहवारी के दौरान किशोरियों को ‘टीज’ करते हैं लड़के

सच्चाई यह है कि ‘माहवारी’ से हमारे समाज में कई मिथक जुड़े हैं, यही कारण है कि यह एक आम घटना ना होकर रहस्य की तरह है. परिणाम स्वरूप रजस्वला लड़कियों और महिलाओं को कई तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ता है.

अपनी बच्चियों को इस स्थिति से बचाने के लिए यह अभिभावकों का दायित्व है कि वे स्कूल प्रबंधन से इस संबंध में जानकारी मांगे. ‘माहवारी’ एक प्राकृतिक चीज है, जिस तरह शौचालय की व्यवस्था स्कूलों में जरूरी है, वैसे ही सेनेटरी नैपकिन, डस्टबिन और हाथ धोने के लिए साबुन की व्यवस्था भी जरूरी है. इसलिए जब भी आप अपनी बच्ची के स्कूल जायें, तो प्रबंधन से इन सुविधाओं के बारे में पूछें इसमें शर्म या संकोच जैसी कोई बात नहीं है. यह हर स्कूल प्रबंधन का दायित्व है कि वह बच्चियों के लिए इन सुविधाओं को मुहैया कराये. जब तक अभिभावक जागरूक नहीं होंगे, प्रबंधन इस ओर ध्यान नहीं देगा.

स्कूल में लड़कियां 6-7 घंटे बिताती हैं, ऐसे में यह जरूरी है कि उनके लिए वहां तमाम सुविधाएं हों, ताकि माहवारी के दौरान लड़कियों को किसी तरह की परेशानी ना हो. स्कूलों में निम्न सुविधाओं का होना आवश्यक है:-

1. स्कूलों में ‘सिक रूम’ की व्यवस्था की जाये, जहां एक नर्स हो, जो लड़कियों को जरूरत पड़ने पर सेनेटरी नैपकिन उपलब्ध कराये.

2. ‘सिक रूम’ में बेड की भी व्यवस्था हो, अगर किसी को ज्यादा परेशानी हो, तो वे यहां आकर कुछ देर आराम कर सकें

3. दवाई उपलब्ध कराने की भी व्यवस्था रखी जाये.

4. लड़कियों को स्कर्ट उपलब्ध कराया जाये, ताकि दाग लगने पर वे इसे बदल सकें.

5. लड़कियों को किसी भी तरह की झेंप से बचाने के लिए उन्हें माहवारी के बारे में पूरी जानकारी दी जाये, ताकि वे इसे सहजता से लें.

6. चूंकि आजकल अधिकतर स्कूलों में को-एजुकेशन की व्यवस्था है, इसलिए लड़कों की भी काउंसिलिंग की जाये,ताकि वे माहवारी को समझें और लड़कियों के साथ किसी तरह का अभद्र व्यवहार ना करें.

7. लड़कियों के बाथरूम में ढक्कन वाले डस्टबिन की व्यवस्था की जाये, ताकि पैड बदलने में वे सहज रहें. साबुन की व्यवस्था हो.

Prabhat Khabar Digital Desk
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