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अनेक रोगों की जड़ है मोटापा, जाने कैसे लगाएं लगाम

इसमें कोई शक नहीं है कि मोटापा दुनिया भर में एक गंभीर समस्या बन चुका है. डब्ल्यूएचओ का अनुमान है कि दुनिया में डायबिटीज का 44%, इस्केमिक हृदय रोग का 23% और कुछ खास कैंसर का 7 से 41% बोझ मोटापे के कारण है. अकेले मोटापा कई रोगों के पनपने का कारण बनता है. इस […]

इसमें कोई शक नहीं है कि मोटापा दुनिया भर में एक गंभीर समस्या बन चुका है. डब्ल्यूएचओ का अनुमान है कि दुनिया में डायबिटीज का 44%, इस्केमिक हृदय रोग का 23% और कुछ खास कैंसर का 7 से 41% बोझ मोटापे के कारण है. अकेले मोटापा कई रोगों के पनपने का कारण बनता है. इस अंक में विशेषज्ञ दे रहे हैं इस पर विशेष जानकारी.
डॉ मनोज रावत
बेरियाट्रिक सर्जन, विभूति सर्जिकल सेंटर, दिल्ली
मेटाबॉलिक सिंड्रोम कोई बीमारी नहीं है, बल्कि यह ऐसी स्थिति है, जिसमें शरीर में कई प्रकार के रोग उत्पन्न करनेवाले कारक पनप जाते हैं, जो शरीर को अत्यधिक नुकसान पहुंचाते हैं. हाइ बीपी, हाइ ब्लड शूगर लेवल, शरीर में अनियंत्रित कोलेस्ट्रॉल और ओबेसिटी को संयुक्त रूप से मेटाबॉलिक सिंड्रोम कहते हैं. इसे सिंड्रोम एक्स के नाम से भी जाना जाता है. इन कारकों के शरीर में पनपने के बाद हार्ट डिजीज, स्ट्रोक और डायबिटीज समेत कई रोगों का खतरा बढ़ जाता है. इनमें से किसी एक कारक का मिलना मेटाबॉलिक सिंड्रोम नहीं है. एक से अधिक कारक मिलने पर व्यक्ति इस सिंड्रोम से ग्रस्त माना जा सकता है. हालांकि जीवनशैली में बदलाव लाकर इस रोग के शुरुआतीकारकों पर लगाम लगायी जा सकती है.
कैसे उत्पन्न होती है समस्या
आमतौर पर मेटाबॉलिक सिंड्रोम मोटापा और शारीरिक अक्रियता से होता है. मेडिकल साइंस में इस समस्या को इंसुलिन रेजिस्टेंस से जोड़ कर देखा जाता है. शरीर में भोजन डाइजेस्टिव सिस्टम में जाकर शूगर (ग्लूकोज) में टूटता है. शरीर में मौजूद पेंक्रियाज इंसुलिन हॉर्मोन बनाता है, जिसकी मदद से शूगर सेल्स तक जाती हैं और शरीर के लिए फ्यूल का काम करती हैं. इनएक्टिव रहनेवाले लोग इंसुलिन रेजिस्टेंस से ग्रस्त होते हैं. इंसुलिन रेजिस्टेंस से ग्रस्त लोगों में सेल्स में ग्लूकोज आसानी से नहीं जा पाता है, जिसके कारण ब्लड शूगर लेवल अत्यधिक बढ़ जाता है. यह डायबिटीज का कारण है. धीरे-धीरे मेटाबॉलिक सिंड्रोम के अन्य कारक भी इन्हीं परिस्थितियों में पनपते हैं.
क्यों होता है मोटापा
रोज की जरूरत से ज्यादा कैलोरी ग्रहण करने पर बढ़ी हुई कैलोरी शरीर में इस्तेमाल नहीं हो पाती और अतिरिक्त फैट के रूप में जमने लगती है. यही एक्स्ट्रा फैट मोटापे को जन्म देता है. हॉर्मोन डिस्टर्बेंस की वजह से भी शरीर में अतिरिक्त फैट जमा होता है. इसी जमे हुए फैट से शरीर बेडौल हो जाता है. कई बार शरीर में परिवर्तन नहीं भी दिखता है. इसका मतलब यह है कि मोटा दिखना ही मोटापा नहीं है. अतिरिक्त फैट जमा होने से शरीर में कई अन्य कारक पनप जाते हैं जैसे-बीपी बढ़ने या घटने की समस्या आदि.
मोटापे पर लगाएं लगाम
कुछ लोग वजन बढ़ने पर इसे सामान्य बात समझ कर इस पर ध्यान नहीं देते हैं. मोटापा केवल अकेले नहीं आता है, बल्कि साथ में कई अन्य रोगों को भी निमंत्रण देता है. एक साथ कई समस्याओं का कारण बनने पर यह अवस्था मेटाबॉलिक सिंड्रोम को जन्म देती है. अत: मोटापे पर लगाम लगाना जरूरी है.
कैसे पा सकते हैं छुटकारा
शुरुआती स्तर पर मेटाबॉलिक सिंड्रोम को ट्रीटमेंट के अलावा जीवनशैली में बदलाव लाकर भी काबू पाया जा सकता है. निम्न बदलाव लाकर इस पर काबू पा सकते हैं-
-नियमित व्यायाम करें : रोज दिन में कम-से-कम 30 मिनट व्यायाम करें. इससे जल्द ही शरीर में सकारात्मक बदलाव नजर आने लगेंगे.
-वजन कम रखें : वजन कम करने से इंसुलिन रेजिस्टेंस और बीपी की समस्या कम होती है. मेटाबॉलिक सिंड्रोम के कारकों पर रोक लगायी जा सकती है. इसके लिए हेल्दी डायट चार्ट फॉलो करें.
-धूम्रपान को कहें न : धूम्रपान करनेवाले व्यक्ति जल्दी इस सिंड्रोम की चपेट में आते हैं.
-लें पर्याप्त नींद : 24 घंटे में कम-से-कम 7-8 घंटे की नींद जरूर लें. तनाव से दूर रहें.
फैट जमाता है कोलेस्ट्रॉल
कोलेस्ट्रॉल सेल्स में पाया जाता है, जो शरीर का दोस्त भी है और दुश्मन भी. यह शरीर में भी बनता है और भोजन द्वारा भी शरीर में पहुंचता है. शरीर के सामान्य क्रियाकलापों के लिए कोलेस्ट्रॉल अत्यधिक आवश्यक है, वहीं इसकी मात्रा बढ़ जाये, तो यह नुकसान पहुंचाना शुरू कर देता है.
आमतौर पर कोलेस्ट्रॉल लिपिड में मिलता है. यह सेल्स के निर्माण में अहम भूमिका निभाता है. इसका लेवल बढ़ जाने से फैट नसों में जमने लगता है. इस कारण हृदय को आॅक्सीजन युक्त ब्लड पर्याप्त मात्रा में नहीं मिल पाती और हृदय से पर्याप्त मात्रा में खून की सप्लाइ अन्य अंगों तक नहीं हो पाती है. इन्हीं कारणों से हार्ट डिजीज और स्ट्रोक जैसे रोगों का खतरा बढ़ जाता है.
तीन प्रकार का होता है कोलेस्ट्रॉल
कोलेस्ट्रॉल ब्लड के माध्यम से शरीर में सेल्स तक पहुंचता है और यह प्रोटीन के साथ मिला होता है. प्रोटीन और कोलेस्ट्रॉल को संयुक्त रुप से लिपोप्रोटीन कहा जाता है. लिपोप्रोटीन के आधार पर ही कोलेस्ट्रॉल के तीन प्रकार होते हैं –
एलडीएल : लो-डेंसिटी लिपोप्रोटीन या एलडीएल को बैड कोलेस्ट्रॉल भी कहते हैं. एलडीएल कोलेस्ट्रॉल आर्टरी (रक्त वाहिका) की वाल पर जमा होकर उन्हें कठोर और संकरा बना देता है, जिस कारण पर्याप्त मात्रा में ब्लड की सप्लाइ नहीं हो पाती है. शरीर में जितना ज्यादा एलडीएल का लेवल होगा, उतना अधिक रक्तवाहिकाएं सिकुड़ती जायेंगी और शरीर विभिन्न रोगों खास कर हृदय रोगों की चपेट में आता जायेगा.
वीएलडीएल : यह वैरी लो-डेंसिटी लिपोप्रोटीन में ट्राइग्लिसराइड फैट होता है, जो प्रोटीन से अटैच रहता है. यह कोलेस्ट्रॉल, एलडीएल कोलेस्ट्रॉल को और अधिक बढ़ा देता है.
एचडीएल : हाइ-डेंसिटी लिपोप्रोटीन को गुड कोलेस्ट्रॉल भी कहते हैं. यह शरीर के अतिरिक्त कोलेस्ट्रॉल को वापस लिवर में पहुंचाता है. यह जितना अधिक होगा, उतना ज्यादा शरीर स्वस्थ समझा जायेगा. नट्स, हरी सब्जियों और फलों से इसे प्राप्त िकया जा सकता है.
बातचीत व आलेख : कुलदीप तोमर
ऐसे बचें मोटापे से
यदि आप मोटापे से बचना चाहते हैं, तो जीवनशैली को नियंत्रित रखें. भोजन पौष्टिक एवं संतुलित मात्रा में लें. फास्ट फूड, तेल-घी, मिठाइयों का सेवन आत्यधिक न करें. कार्बोहाइड्रेट युक्त फूड जैसे- चावल, राजमा, आलू, मटर, अंडा आदि का सेवन नियमित अंतराल के बाद करें. पानी अधिक पीएं. खाने में हरी सब्जियों को शामिल करेंगे, तो ज्यादा बेहतर रहेगा. तलने के बजाय, उबला हुआ, सिंक किया गया या ग्रिल खाना सेहत के लिहाज से ज्यादा उपयुक्त है. जूस की जगह फलों को तरजीह दें.
आयुर्वेद में इलाज
पंचकर्म से मोटामा कम होता है. मेदोहर गुगुल एवं आरोग्य वर्धनी वटी तीन-तीन गोली दो बार लेने से फायदा होता है. अगर मोटापा हाइपो थायरॉयड के कारण हो, तो कचनार गुगुल दो-दो गोली तथा आरोग्धवर्धनी वटी दो-दो गोली तथा ब्राह्मी वटी एक-एक गोली लेने से लाभ हेाता है. थायरॉयड रोग में लाभ होता है. घृत कुमारी स्वरस 20 एमएल समान जल से लेने से मोटापा से मुक्ति मिलती है. सप्ताह में एक दिन उपवास करें और केवल फल पर रहें. मोटापा का नाश होगा.
– डॉ कमलेश प्रसाद, आयुर्वेद विशेषज्ञ

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