नीलम कुमारी
टेक्निकल ऑफिसर झाम्कोफेड
गो जिहवा (गाय की जीभ के समान खुरदरी होने के कारण) गाजवां, गावजवान आदि नामों से जाने वाला यह पौधा औषधीय दृष्टिकोण से बहुत उपयोगी है़ इसका क्षुप छोटा होता है़ पत्ते मांसल, मोटे व गाय की जीभ के समान खुरदरे होते है़ं उन पर साबुनदाने की तरह छोटे-छोटे निशान होते है़ं फूल नीले रंग के गुच्छों में होता है़ पुराने होने पर रक्ताभ रंग के हो जाते है़ं पत्तों को वर्ग गावजबान और पुष्पों को गुले गावजबान कहा जाता है़ इसका वानस्पतिक नाम ओनोस्मा ब्रेक्टीएटम है. यह बोरैगनेसी परिवार का पौधा है़
उपयोगी भाग पत्ता और फूल है
औषधीय उपयोग : यह वातपित जनित बीमारियों में उपयोगी है़ इसकी पत्तियों में सोडियम 9.5 प्रतिशत, पोटाशियम 14.25 प्रतिशत, कैल्शियम 27 प्रतिशत, लोहा एक प्रतिशत, मैग्नेशियम का लवण पाया जाता है़ उन्माद मानसिक दौर्बल्य, आमवात, रक्त विकार आदि में इसका प्रयोग किया जाता है़ यह नजला, जुकाम, खांसी, दमा, सीने के अंदर की खरखराहट दूर करता है़ यह लस्सेदार होता है़ इसलिए इसके प्रयोग से पेट साफ होता है़ यह ह्दय रोग में उपयोगी है़ यह बलवर्द्धक व रक्तशोधक होता है़
सर्दी जुकाम : यदि नाक बंद हो गया हो, कफ जम जाने से छाती जकड़ गयी, हो तो गोजिहवा पांच ग्राम, मुलहटी पांच ग्राम, चीनी 20 ग्राम तीनों को मिला कर काढ़ा तैयार कर पीने से कफ निकलता है़ पेट साफ होता है़
मुंह के छाले : यदि मुंह आ गया है, तो इसमें पत्ते को जला कर फिर उसे बारीक पीस कर उसे छिड़क दाने से लाभ होता है़
ह्दय रोग : इसके फूलों का काढ़ा बना कर प्रतिदिन उसका प्रयोग किया जाता है़
रक्त विकार : इसके पत्तों को कालमेघ के साथ मिला कर काढ़ा तैयार किया जाता है़ इसके प्रयोग से खून साफ होता है़
जोड़ों का दर्द : इसके पत्तों को पीस कर फिर उसे गर्म कर जोड़ों के दर्द में बांधा जाता है़
शरीर का दर्द : इसके पत्तों के सरसों तेल में जला कर फिर उस तेल को छान कर उससे मालिश की जाती है.
नोट: चिकित्सीय परामर्श के बाद ही उपयोग करें