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करोड़ों लोगों की जान ले सकता है एंटीबायोटिक्स, झोलाछाप डॉक्टर्स बेखौफ धड़ल्ले से कर रहे इस्तेमाल
एंटीबायोटिक्स के इस्तेमाल से भयावह हुए हालात, सुपरबग इंफेक्शन की स्थिति बिना सोचे-समझे एंटीबायोटिक्स के प्रयोग से हालात भयावह होते जा रहे हैं. लोग अब रोग के कम और दवा के शिकार होने लगे है. लोगों की रोग प्रतिरोधक क्षमता खत्म होती जा रही है. वैज्ञानिकों ने इस स्थिति को सुपरबग का नाम दिया है. […]
एंटीबायोटिक्स के इस्तेमाल से भयावह हुए हालात, सुपरबग इंफेक्शन की स्थिति
बिना सोचे-समझे एंटीबायोटिक्स के प्रयोग से हालात भयावह होते जा रहे हैं. लोग अब रोग के कम और दवा के शिकार होने लगे है. लोगों की रोग प्रतिरोधक क्षमता खत्म होती जा रही है. वैज्ञानिकों ने इस स्थिति को सुपरबग का नाम दिया है. ऑर्गनाइजेशन फॉर इकोनॉमिक को-ऑपरेशन एंड डेवलपमेंट की रिपोर्ट में कहा गया है कि विभिन्न बीमारियों में प्रयुक्त होने वाली एंटीबायोटिक्स अब अप्रभावी होने लगी है.
रिपोर्ट में चेतावनी दी गयी है कि 2050 तक अमेरिका, यूरोप व ऑस्ट्रेलिया के करोड़ों लोग असमय मौत के मुंह में समा जायेंगे. रिपोर्ट में कहा गया है कि कि सुपरबग से 26 प्रतिशत नवजातों की मौत हो जाती है. उन्हें दवाएं तो दी जाती है लेकिन सुपरबग की वजह से वह रोग पर बेअसर रह रही है.
4.5 लाख टीबी मरीजों पर दवा बेअसर, 1.5 लाख की गयी जान
क्या है एंटीबयोटिक्स
एंटीबायोटिक्स बैक्टेरियल इंफेक्शंस से लड़ने के लिए उपयोग होता है. दूसरी दवा की तरह एंटीबायोटिक्स का भी साइड इफेक्ट होता है.
कैसे करता है काम
जब बैक्टीरिया का संक्रमण गंभीर होता है, तब एंटीबायोटिक्स की सहायता लेनी पड़ती है, जो बैक्टीरिया को नष्ट कर देते हैं या उनके विकास को धीमा कर देते हैं.
झोलाछाप डॉक्टर्स बेखौफ, कर रहे धड़ल्ले से इस्तेमाल
एंटीबायोटिक्स के लगातार प्रयोग ने अब इसकी उपयोगिता खत्म करनी शुरू कर दी है. एक रिसर्च के मुताबिक, पिछले दो सालों में देश में 4.5 लाख के करीब टीबी से पीड़ित मरीजो पर दवाइयों का कोई असर नहीं होने पर 1.5 लाख लोगों की जान चली गयी.
स्थिति यह है की एंटीबायोटिक के ज्यादा इस्तेमाल से हमारे शरीर में मौजूद हानिकारक बैक्टीरिया इतने ज्यादा शक्तिशाली हो गये हैं कि उनपर इनमें से कई दवाइयों का असर खत्म हो चूका है.
एंटीबायोटिक्स का सहजता से उपलब्ध होना और चिकित्सकों की ओर से भी इसका लगभग सभी बीमारियों में अनिवार्य रूप से इस्तेमाल किये जाने की प्रवृति ने इस खतरे को बढ़ा दिया है. विशेषकर ग्रामीण क्षेत्रों में झोलाछाप डॉक्टर्स की ओर से एंटीबायोटिक्स का इस्तेमाल बेखौफ व धड़ल्ले से किया जा रहा है.
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