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दूसरों के नीचा दिखाने से हो जाते हैं दुखी तो गीता का यह श्लोक पढ़े लें, पूरी तरह मन हो जाएगा शांत

Gita Updesh: भगवद गीता के अनुसार, दूसरों को नीचा दिखाने की प्रवृत्ति अहंकार, अज्ञान और आसुरी स्वभाव की पहचान है. श्रीकृष्ण ने कहा कि आत्म-विकास का मार्ग दूसरों को गिराकर नहीं, स्वयं को सुधारने से खुलता है. जानें गीता के श्लोकों में छिपा जीवन का यह गूढ़ संदेश.

Gita Updesh: दैनिक जीवन में कई बार लोग किसी के नीचा दिखाने पर दुखी हो जाते हैं. चाहे ऑफिस में हो या अपने फ्रेंड्स सर्कल में. लेकिन भगवद गीता में ऐसे लोगों को अंहकार से भरा हुआ कहा गया है और उनकी आलोचना की गयी है. श्रीकृष्ण ने अर्जुन को दिए गए उपदेशों में ऐसे लोगों की प्रवृत्ति की कड़ी निंदा करते की गई है जो दूसरों को नीचा दिखाकर स्वयं को ऊंचा साबित करने की कोशिश करते हैं.

अहंकार है विनाश का कारण

गीता के अनुसार, दूसरों को नीचा दिखाना अहंकार की निशानी है. श्रीकृष्ण ने अध्याय 16 (दैवी और आसुरी सम्पत्तियों) में बताते हैं कि जो लोग दूसरों का अपमान करते हैं, उनका मूल स्वभाव “आसुरी” होता है. वे क्रोध, घमंड, द्वेष और ईर्ष्या से भरे होते हैं.

श्लोक 16.4 में कहा गया है कि
“दम्भो दर्पो अभिमानश्च क्रोधः पारुष्यमेव च.
अज्ञानं चाभिजातस्य पार्थ सम्पदामासुरीम्”
(अर्थ: दिखावा, घमंड, अभिमान, क्रोध, कठोरता और अज्ञान- ये सब आसुरी स्वभाव के लक्षण हैं.)

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जो दूसरों को गिराते हैं, वे स्वयं नहीं उठ सकते

श्रीमद्भगवद गीता यह स्पष्ट करती है कि आत्म-उन्नति का मार्ग दूसरों को गिराकर नहीं, बल्कि स्वयं को भीतर से सुधारने से खुलता है. जबकि अध्याय 6, श्लोक 5 में कहा गया है:
“उद्धरेदात्मनात्मानं नात्मानमवसादयेत्.” इसका अर्थ है व्यक्ति को चाहिए कि वह अपने द्वारा ही अपनों का उद्धार करें, न कि स्वयं को नीचे गिराए.) दूसरों को नीचा दिखाने की प्रवृत्ति आत्महीनता और असुरक्षा से उपजती है. यह व्यक्ति को भीतर से खोखला कर देती है और उसके आत्मिक विकास में बाधा बनती है.

श्रेष्ठ वही जो सबको समान दृष्टि से देखें

गीता में बताया गया है कि ज्ञानी व्यक्ति वही है जो सभी में एक समान आत्मा को देखता है. चाहे वह ज्ञानी हो, मूर्ख हो, अमीर हो या गरीब. ऐसा व्यक्ति दूसरों को नीचा नहीं दिखाता, बल्कि समत्व (equanimity) का पालन करता है.

श्लोक 5.18 में श्रीकृष्ण कहते हैं
“विद्याविनयसम्पन्ने ब्राह्मणे गवि हस्तिनि
शुनि चैव श्वपाके च पण्डिताः समदर्शिनः”
अथार्त ज्ञानी व्यक्ति ब्राह्मण, गाय, हाथी, कुत्ते और चांडाल में भी समान आत्मा को देखता है.)

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