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गैस की बीमारी से परेशानी या नींद आने में तकलीफ है तो हो सकते हैं मनोरोग के लक्षण, आइसीडी में किया गया शामिल

गैस की समस्या से पेट दर्द के साथ कभी कब्ज, तो कभी डायरिया हो जाता है. मरीज को लगता है कि पेट में गैस ज्यादा बन रहा है.

रांची : अगर आप गैस की बीमारी से ज्यादा परेशान हैं. नींद आने में तकलीफ हो या तनाव हो रहा है, तो ये मनोरोग के लक्षण हो सकते हैं. विश्व स्वास्थ्य संगठन के इंटरनेशनल क्लासिफिकेशन ऑफ डिजीज (अाइसीडी) ने नये संस्करण में मनोरोग की नयी बीमारी में पेट में गैस की समस्या के कुछ लक्षणों को शामिल किया है. इसे सोमैटोफॉर्म डिसऑर्डर नाम दिया गया है.

क्या होती है परेशानी :

गैस की समस्या से पेट दर्द के साथ कभी कब्ज, तो कभी डायरिया हो जाता है. मरीज को लगता है कि पेट में गैस ज्यादा बन रहा है.

कई बार डकारें अाने लगती हैं. यह भी महसूस होता है कि गैस उनके सिर और पीठ में चली जाती है. इससे घबराहट, अनिद्रा, चिड़चिड़ापन के साथ काम से बेरुखी होने लगती है. सामान्य चिकित्सक इसे इरिटेबल बावेल संड्रोम (आइबीएम) बताते हैं. इससे संबंधित दवा देते हैं. इससे बहुत आराम नहीं मिलता है.

आइडीसी के अनुसार, अगर लगातार दो सप्ताह तक इस तरह की परेशानी हो, तो इसके लिए मनोचिकित्सक की सलाह भी ले सकते हैं. आइडीसी में जिक्र है कि तनाव व अनिद्रा के कारण भी लोगों में गैस की समस्या होती है. गैस की बीमारी को ठीक करने के लिए अनिद्रा और तनाव को दूर करना जरूरी है.

कई लोगों में ऐसी परेशानी हो रही है, जिससे गैस के कारण नींद नहीं आती है. घबराहट होती है. बार-बार शौचालय जाने का मन करता है. यह एक प्रकार का मनोरोग हो सकता है. इसका इलाज मनोचिकित्सक ही कर पायेंगे. काफी अध्ययन के बाद आइसीडी में इसे शामिल किया गया है.

डॉ सत्यकांत त्रिवेदी, मनोचिकित्सक, भोपाल

प्रभावित हो जाती है जीवनशैली

सोमैटोफॉर्म डिसऑर्डर एक प्रकार का मानसिक रोग है. इसमें शारीरिक बीमारियां नहीं होने पर भी शारीरिक लक्षण दिखते रहते हैं. इससे पीड़ित व्यक्ति की जीवनशैली बुरी तरह प्रभावित होती है. इसमें मस्तिष्क और आंतों के बीच तंत्रिका तंत्र में असंतुलन पैदा होता है. जिससे गैस की अधिक समस्या से पीड़ित व्यक्ति में घबराहट, तनाव व अनिद्रा से आंतों की गति और आंतरिक अंगों की संवेदनशीलता प्रभावित होती है.

गैर मनोचिकित्सक से इलाज बढ़ाती हैं मुश्किलें

इरिटेबल बावेल सिंड्रोम (आइबीएम) के 60 से 95 फीसदी मामलों में कोई अन्य मानसिक रोग देखा गया है. कभी-कभी स्थिति ऐसी आ जाती है कि लोग खुद को नुकसान पहुंचाने तक की सोचने लगते हैं. इससे व्यक्ति की उत्पादकता प्रभावित होने लगती है, जिससे तनाव बढ़ जाता है. इस तरह की बीमारीवाले गैर मनोचिकित्सक से सलाह लेने जाते हैं. पेशेवर सलाह नहीं मिलने से मरीज मनोविकार के शिकार होने लगते हैं.

Posted By : Sameer Oraon

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