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The Bengal files :पल्लवी जोशी ने माना ट्रिनिटी फिल्मों की शुरुआत से पहले वह बहुत डरी हुई थी

फिल्म द बंगाल फाइल्स की निर्मात्री और अभिनेत्री पल्लवी जोशी ने इस इंटरव्यू में फिल्म की मेकिंग के साथ अपने कैरियर पर भी बात की है

the bengal files :द बंगाल फाइल्स आगामी शुक्रवार को सिनेमाघरों में दस्तक देने जा रही है. इस फिल्म के निर्माण से जुड़ी पल्ल्वी जोशी इस फिल्म में अभिनय करती भी नजर आएँगी.इस फिल्म को लेकर पल्लवी जोशी दावा करती हैं कि कश्मीर फाइल्स ने अगर आपको हर्ट किया था तो बंगाल फाइल्स आपको हॉन्ट करेगी. गौरतलब है कि यह ट्रुथ रिवेलिंग ट्राइलॉजी का आखिरी चैप्टर है. इससे पहले द ताशकंद फाइल्स और द कश्मीर फाइल्स का निर्माण किया जा चुका है.उर्मिला कोरी से हुई खास बातचीत

द बंगाल फाइल्स फिल्म से पहले आप नोवाखली त्रासदी के बारे में कितना जानती थी ?

मेरी इतिहास में रूचि बहुत रही है. इसके साथ ही मैं पढ़ती भी बहुत हूं इसलिए मुझे उस घटना के बारे में बहुत साल पहले ही मालूम था. मैंने अपने माता -पिता से इस बारे में सवाल भी पूछा था कि हमें इसके बारे में क्यों नहीं पढ़ाया गया था. हम सिर्फ पंजाब के विभाजन के बारे में जानते हैं.इस फिल्म के रिसर्च के दौरान जब मैं चीजों को पढ़ने लगी तो मुझे सब याद आने लगा था कि अच्छा ये घटना इस वजह से हुई थी.इस फिल्म के ज़रिये मैंने इसके पूरे टाइम लाइन को जाना.

द बंगाल फाइल्स,विवेक की फिल्म है इसलिए फिल्म को हां कहना आसान होता है ?

मैं विवेक को हमेशा कहती हूं कि तुम कितने लकी हो तुम्हे इतनी अच्छी बीवी मिली है कि तुम उसे हर किरदार में फिट कर सकते हो.वैसे विवेक बहुत ही लेयर्ड किरदार लिखते हैं,जिनको करने में मजा बहुत आता है.वरना नार्मल किरदार तो कोई भी कर सकता है. वह एक्ट्रेस के तौर पर मेरी क्षमता को समझते हुए किरदारों को लिखते हैं.

द बंगाल फाइल्स में आपका किरदार कितना लेयर्ड लिए है ?

इस फिल्म के सारे किरदार रियल है. सिर्फ माँ भारती का किरदार रियल नहीं है. जिसे मैं निभा रही हूं. विवेक ने अपनी सोच से वह किरदार लिखा है ,युवा वाला भाग रियल है. ओल्डर वाला काल्पनिक है. जिस वजह से मेरे लिए कोई रिसर्च या रेफरेंस पॉइंट नहीं था. शुरुआत में मेरी हवा टाइट हो गयी थी. मैंने अपनी सोच से किरदार को निभाया है.उसकी बॉडी लैंग्वेज की मैंने बहुत प्रैक्टिस की. तीन से चार महीने तक ताकि वह मेरे मसल्स मेमरी में भी फिट हो जाए. इस बात का पूरा ध्यान रखा कि हर शॉट में मेरे उठने बैठने और खड़े रहने का अंदाज़ एक जैसा ही हो. मैंने बहुत प्रैक्टिस की. (हँसते हुए ) कुछ इस कदर प्रैक्टिस कर ली थी. शूटिंग के बाद भी मैं वही बॉडी लैंग्वेज में थी. मेरे बेटे ने नोटिस किया और कहा मम्मी फिल्म खत्म हो गयी.

सेट पर क्या विवेक और आपके बीच कभी किसी सीन को लेकर बहस भी होती है कि इसे ऐसे करना चाहिए या नहीं ?

वह इस बात को जानते और मानते हैं कि इंडस्ट्री में मैं उनकी सीनियर हूँ और वह सेट पर इस डेकोरम को मेन्टेन करते हैं. मेरी स्कूलिंग एक्टिंग की ऐसी हुई है कि मैं इस बात को मानती हूं कि डायरेक्टर अल्टीमेट कप्तान ऑफ़ द शिप होता है तो कोई परेशानी नहीं होती है.

आपके बच्चे क्या एक्टिंग में रूचि रखते हैं ?

दोनों बहुत ही मच्योर और इंडिपेंडेंट हैं. दोनों एक्टिंग नहीं करना चाहते हैं. मेरे दोनों बच्चे अच्छे दिखते हैं लेकिन अच्छे दिखने का मतलब ये नहीं कि आप एक्टर बन जाओ. डायरेक्शन और प्रोडक्शन में उनकी बहुत रूचि है. बंगाल फाइल्स में मेरा बेटा अस्सिटेंट डायरेक्टर है और बेटी लाइन प्रोड्यूसर है.दोनों ने बहुत अच्छे से अपने काम को संभाला.

क्या कभी निर्देशन से जुड़ने का आपका मन नहीं होता है ?

विवेक से मिलने से पहले मैंने सोचा था कि मुझे डायरेक्शन करना चाहिए लेकिन विवेक से मिलने के बाद जाना कि सिर्फ क्रिएटिविटी से काम नहीं होता है. बहुत ज्यादा टेक्निकल जानकारी भी जरुरी है. विवेक के लेवल की टेक्निकल नॉलेज जानने में जितना समय जाएगा उतने में विवेक और आगे बढ़ जाते हैं तो तय कर लिया कि मैं एक्टिंग करुँगी और वह निर्देशन.

आप गिनी चुनी फिल्मों में दिखती हैं ,विवेक की कॉन्ट्रोवर्शियल फिल्मों से जुड़ने के बाद क्या दूसरे मेकर्स ने आपको अप्रोच करना बंद कर दिया ?

विवेक की फिल्मों से मैं 2019 से हिस्सा बन रही हूं और मुझे ऑफर्स 2005 के बाद से ही आना बंद हो गए थे. रेणुका और मृणाल कुलकर्णी ने ही अपनी फिल्मों में मुझे कास्ट किया है.वह मेरी सहेलियां भी हैं. अभी जाकर अनुपम जी ने मुझे तन्वी में कास्ट किया।(हंसते हुए ) किसी ने मुझसे कहा कि आप उनको अपनी फिल्म में कास्ट करती हैं और वह आपको अपनी फिल्म में.

अगर फिल्म ओटीटी पर रिलीज होती थी तो क्या विवादों से बचा जा सकता था ?

फिल्म का असल अनुभव थिएटर में ही है और जिस तरह से यह फिल्म बनी है. आप उसे मिर्ची काटते हुए,खाना बनाते हुए नहीं देख सकते हैं. ये जो वाकयात हुआ है. हज़ारों लोगों के साथ ये ट्रेजेडी हुई है. हिन्दू महिलाएं प्रेग्नेंट होकर ईस्ट पाकिस्तान से आयी थी.हज़ारों लोगों को जान गवानी पड़ी थी. उनके लिए आपको तीन घंटे निकलकर थिएटर में जाना चाहिए. मेकर होने की वजह से नहीं बल्कि भारतीय होने की वजह से ये कह रही हूं.

इस फिल्म से ट्रिनिटी फिल्मों की कड़ी खत्म हो रही है, आगे भी क्या वह इश्यू बेस्ड ही फिल्में वह बनाएंगे ?

विवेक से नार्मल फिल्मों की उम्मीद बेकार है.

विवेक जिस तरह की फिल्में बनाते हैं उससे अक्सर लोग उन्हें टारगेट भी करते हैं,क्या पत्नी के तौर पर कभी डर भी लगता है ?

अब मैं इन चीजों को तवज्जो नहीं देती हूं. इन नेगटिव चीजों पर ध्यान देने लगूंगी तो विवेक को यह सब पीछे धकेलेगा . मुझे उसको सपोर्ट करना है. जो भी नर्वस होना था. डर था.यह सब पहले हुआ करता था.फिर जब हमने ये ट्रिनिटी करने का फैसला किया तो इस पर हमने काफी डिबेट किया. मैंने विवेक को अपने डर के बारे बताया था. हमने बहुत डिस्कशन किया. अपने बच्चों को भी इसमें शामिल किया. जब मेरी हिम्मत बनी तो मैंने कहा कि चलो इसे करते हैं.

सनातन धर्म जिस तरह राजनीति में मुखर हुआ है क्या उससे आपको सपोर्ट ज्यादा मिला है ?

मुझे सनातन शब्द से ही ऐतराज है. मुझे लगता है कि हम कल्चरली हिन्दू हैं , हमारा कोई धर्म नहीं है. यही वजह है कि हमारी कोई एक बुक नहीं है.हमारा एक भगवान नहीं है. हमारे में ये नहीं कहा गया है कि देखो तुम ये करोगे तो नरक में जाओगे. इस्लाम , क्रिश्चियन जैसे .जो पाप बेस्ड धर्म है. हमारा वैसा नहीं है.ये पहनों तो मुस्लिम है. मैं शार्ट पहनकर भी बैठूंगी तो मैं हिन्दू ही रहूंगी. आजकल होड़ मची हुई है. वो टोपी लगा रहे हैं तो हम तिलक लगाएंगे। हम भी जय श्री राम चिल्लायेंगे. जबकि हिन्दू ऐसा नहीं रहा है.हम जिन पर खश होते हैं। उनको भगवान मान लेते हैं।हम हवा पर खुश हो गए तो हम वायु को देवता बना लेते हैं। आज भी हम देवता बनाते रहते हैं. रजनीकांत के टेम्पल इसके उदाहरण हैं. हम जिनके मुरीद होते हैं। हम उनको अपना भगवन मान लेते हैं. ये हमारा ज़िन्दगी जीने का तरीका है.

अपने अब तक के कैरियर में क्या कोई रिग्रेट भी है ?

मुझे कोई रिग्रेट नहीं है. मैं इस बात को मानती हूं कि जो चीज़ मैंने जब कि वह उस वक़्त के लिए सही थी. आज मैं जहाँ पर खड़ी हूं. उस वक़्त वहां पर नहीं थी ,जब मैंने वो निर्णय लिए थे वैसे अगर मैं अभी भी इंडस्ट्री में बनी हुई हूं मतलब मैंने सही फैसले किये हैं.

कभी कोई फिल्म के ना मिलने का अफ़सोस रहा है ?

हां एक फिल्म में रोल खोने का मुझे अफ़सोस है लेकिन उसके साथ जुडी एक बात मुझे बहुत ख़ुशी भी देती है. प्रकाश झा की एक फिल्म मृत्युदंड थी.वो फिल्म सबसे पहले वह मेरे पास लेकर आये थे. मैंने फिल्म सुनी. वह मुझे बहुत अच्छी लगी.हम दो तीन बार फिल्म को लेकर मिले. उसके बाद मुझे फोन ही नहीं आया. मैंने सोचा कि प्रकाश जी तो फिल्म को जल्द से जल्द शुरू करना चाहते थे फिर क्या हुआ,जो डेढ़ महीने से उन्होंने कॉल तक नहीं किया. एक दिन उनका मुझे कॉल आया और कहा कि मैं मिलना चाहता हूं. मैंने बोला शाम में फ्री हूं. आप आ जाइये. वह फूलों का गुलदस्ता लेकर आये थे.उन्होंने मुझे वह देते हुए कहा कि मैं सॉरी कहने आया हूं. फिल्म के लिए आप तय थी, लेकिन जब मुझे फिल्म के लिए फाइनेंसर मिला तो उन्होंने मुझसे कहा कि वह इस फिल्म के लिए किसी बड़ी और पॉपुलर अभिनेत्री को चाहते हैं। हम माधुरी दीक्षित से मिले और उन्हें फिल्म पसंद आयी है. मुझे लगता है कि कोई भी निर्देशक ऐसा नहीं करता था. कई फिल्मों के लिए बात होती है और आप रिप्लेस हो जाते हैं, लेकिन कोई सॉरी नहीं कहता है.

Urmila Kori
Urmila Kori
I am an entertainment lifestyle journalist working for Prabhat Khabar for the last 14 years. Covering from live events to film press shows to taking interviews of celebrities and many more has been my forte. I am also doing a lot of feature-based stories on the industry on the basis of expert opinions from the insiders of the industry.

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