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Shastry Virudh Shastry Movie Review: रिश्तों के उथल पुथल की यह कहानी…पैरेंटहुड पर बड़ा सवाल है उठाती

2017 की बांग्ला की सफल फिल्म पोस्तो की यह फिल्म हिंदी रीमेक है. फिल्मकार शिबू प्रसाद और नंदिता ओरिजिनल फिल्म की तरह इस फिल्म के भी निर्देशक हैं. यह फिल्म पैरेंटहुड के सामायिक मुद्दे पर है.

फिल्म – शास्त्री विरुद्ध शास्त्री

निर्माता – रघुवेन्द्र सिंह

निर्देशक – शिबू प्रसाद और नंदिता

कलाकार – परेश रावल, नीना कुलकर्णी,शिव पंडित , मनोज जोशी ,मिमी चक्रवर्ती,अमृता सुभाष, टीकू तलसानिया और अन्य

प्लेटफार्म – सिनेमाघर

रेटिंग – तीन

2017 की बांग्ला की सफल फिल्म पोस्तो की यह फिल्म हिंदी रीमेक है. फिल्मकार शिबू प्रसाद और नंदिता ओरिजिनल फिल्म की तरह इस फिल्म के भी निर्देशक हैं. यह फिल्म पैरेंटहुड के सामायिक मुद्दे पर है, जो कई अहम पहलुओं को सामने ले आती है साथ ही उम्दा कलाकारों का साथ भी इस फिल्म को मिला है, जिस वजह से कुछ कमियों के बावजूद यह पारिवारिक फिल्म एक बार ज़रूर देखी जानी चाहिए.

रिश्तों के उतार चढ़ाव की है कहानी

फिल्म की कहानी की बात करें तो यह सात वर्षीय मोमोजी (कबीर पाहवा ) की कहानी है , जो अपने माता पिता ( शिव पंडित और मिमी ) और दादा दादी (परेश रावल और नीना ) के प्यार के बीच में उलझा हुआ है. दरअसल जब वह तीन महीने का था, तो उसकी तबियत ख़राब होने के बाद उसे उसकी दादी मुंबई से पंचगनी ले आयी थी क्योंकि उसके माता पिता वर्किंग हैं ऐसे में पीछे साढ़े छह सालों से दादी और दादा ही उसकी देखभाल कर रहे हैं. उसके माता पिता वीकेंड पर उससे मिलने आते हैं लेकिन वह अब मोमोजी को अपने साथ मुंबई में रखना चाहते हैं ,लेकिन उनकी हिम्मत नहीं है कि वह यह बात मोमोजी के दादा को कह सकें क्योंकि दादा का मानना है कि बच्चे को इंसान बनाने के लिए पेरेंट्स के समय की सबसे अधिक ज़रूरत होती है , जो वर्किंग कपल के पास नहीं है. इसके साथ ही दादा अपने बेटे को निक्क्मा समझता है. ऐसे ही सबकुछ चल रहा होता है कि अचानक मोमोजी के पिता को अमेरिका में एक बहुत अच्छे जॉब का ऑफर मिल जाता है. वह अब मोमोजी को लेकर अमेरिका जाने का फैसला कर लेते हैं लेकिन दादा इसके लिए तैयार नहीं है. वह पोते की कस्टडी के लिए अदालत का दरवाजा खटखटाते हैं. बच्चे को अपने पास रखने का नैतिक दावा किसके पास है. अदालत का फैसला क्या होगा और मोमोजी आखिर क्या चाहता है. यह फिल्म इसी सवालों के आगे जवाब देती है.

फिल्म की खूबियां और खामियां

यह फिल्म पैरेंटहुड की जिम्मेदारियों और मौजूदा दौर में उससे जुडी जटिलताओं को बखूबी रेखांकित करती है. फिल्म के हर किरदार को आम इंसान की तरह दिखाया है. कोई भी परफेक्ट नहीं है. बेटे के किरदार में कमज़ोरियां हैं तो दादा के किरदार का अख्खड़पन भी अखरता है और पोते को अपने साथ रखने के उसके स्वार्थ को भी फिल्म दिखाती है. फिल्म यह सभी पहलुओं को सादगी के साथ सामने लाती है. खामियों की बात करें तो फिल्म की मूल कहानी कमोबेश नयी नहीं है. दादा दादी और पोते के बीच लगाव पर अब तक कई फिल्में बन चुकी हैं. इसके साथ ही कोर्टरूम में और ड्रामा की उम्मीद थी लेकिन फिल्म उस मामले में कमज़ोर रह गयी है. शिव पंडित का किरदार आखिर क्यों अपने घर को छोड़कर चला गया था. फिल्म में इसका भी जिक्र मात्र ही हुआ है. फिल्म का सेकेंड हाफ स्लो भी रह गयी है।जिस वजह से रिश्तों की यह कहानी उस प्रभावी ढंग से परदे पर नहीं आ पायी जैसी उम्मीद फर्स्ट हाफ ने जगाई थी. दूसरे पहलुओं की बात करें तो फिल्म का गीत संगीत कहानी के अनुरूप है. फिल्म की सिनेमेटोग्राफी अच्छी है, जो फिल्म में सुकून का रंग जोड़ती है.

कलाकारों का अच्छा काम

अभिनय की बात करें तो इस फिल्म से अभिनय के दिग्गज नाम परेश रावल ,नीना कुलकर्णी , अमृता सुभाष, मनोज जोशी जुड़े हुए हैं और उन्होंने स्क्रीन पर अपने नाम के मुताबिक परफॉर्म किया है. शिव पंडित का अभिनय अच्छा है, इमोशनल दृश्यों में वह कमज़ोर ज़रूर रह गए हैं. मिमी चक्रवर्ती अपनी आप पहली हिंदी फिल्म में भी प्रभावित करने में कामयाब रही हैं. मोमोजी के किरदार में कबीर पाहवा बहुत प्यारे लगे हैं. बाकी के किरदारों ने भी अपनी भूमिका के अनुरूप परफॉर्म किया है.

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