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Film Review: फील गुड वाली फिल्म है ‘Maara’

अच्छी कहानियां ज़्यादा से ज़्यादा लोगों तक पहुंचे ओटीटी प्लेटफार्म इस जिम्मेदारी को बखूबी निभा रहा है. विश्व सिनेमा ही नहीं बल्कि दक्षिण भारत की फिल्मों से भी यह हमें सीधे तौर पर जोड़ रहा है. आर माधवन की तमिल फिल्म मारा भी इसी कड़ी की फिल्म है. यह फ़िल्म मलयालम की सुपरहिट फिल्म चार्ली का तमिल रिमेक बतायी जा रही है.

  • फिल्म – मारा

  • निर्देशक – दिलीप कुमार

  • कलाकार – आर माधवन,श्रद्धा श्रीनाथ,मौली,अभिरामी और अन्य

  • प्लेटफार्म – प्राइम वीडियो

  • रेटिंग -तीन

अच्छी कहानियां ज़्यादा से ज़्यादा लोगों तक पहुंचे ओटीटी प्लेटफार्म इस जिम्मेदारी को बखूबी निभा रहा है. विश्व सिनेमा ही नहीं बल्कि दक्षिण भारत की फिल्मों से भी यह हमें सीधे तौर पर जोड़ रहा है. आर माधवन की तमिल फिल्म मारा भी इसी कड़ी की फिल्म है. यह फ़िल्म मलयालम की सुपरहिट फिल्म चार्ली का तमिल रिमेक बतायी जा रही है.

फ़िल्म की कहानी पारू( श्रद्धा श्रीनाथ) की है. घरवाले उसकी शादी करवाना चाहते हैं. लड़का दिखता अच्छा है और अच्छा कमाता है क्या इसी बात से शादी कर लेना चाहिए. पारू को शादी के लिए यह वजह सही नहीं लगती है और फैसला लेने के लिए अपनी मां से समय मांगती है और पेशे से रेस्टोरेशन आर्टिस्ट शादी से बचने के लिए एक नयी जगह पर कुछ दिनों के लिए चली जाती है. उस शहर की दीवारों पर उसे अपने बचपन में सुनी गयी एक कहानी की पेंटिंग्स हर तरफ नज़र आती है. वहां के स्थानीय लोगों से उसे आर्टिस्ट मारा ( माधवन)के बारे में मालूम पड़ता है।वहां वह पेंटिंग्स और अलग अलग कलाकृतियों के ज़रिए मारा की दुनिया का हिस्सा बनने लगती है.

इस कहानी के अंदर कई सारी कहानियां चलती है. पारू उन कहानियों के साथ साथ मारा से भी जुड़तीं चली जाती है. क्या मारा पारू के प्यार को समझ पाएगा।इस लव स्टोरी के साथ साथ फ़िल्म में 50 साल पुरानी लव स्टोरी भी है. वो क्या है और किसकी है.इसके लिए आपको फ़िल्म देखनी पड़ेगी. कुल मिलाकर यह फ़िल्म ऐसे लोगों की कहानी है।जो दूसरों के चेहरे पर मुस्कुराहट लाते हैं. यह फ़िल्म प्यार,अपनेपन और विश्वास की कहानी है. फील गुड वाली फिल्म है लेकिन फ़िल्म थोड़ी लंबी खिंच गयी है अगर थोड़ी छोटी होती थी तो और बेहतरीन बन सकती है. अभिनय की बात करें तो हर किरदार अपनी भूमिका में परफेक्ट हैं.

फ़िल्म की सिनेमेटोग्राफी कमाल की है. जो कहानी को और खूबसूरत बना देता है। फ़िल्म देखते हुए यह बात शिद्दत से महसूस होती है कि यह फ़िल्म थिएटर के लिए बनी है.

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