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Bhaiyya Ji Movie Review: भैया जी के स्वैग के साथ न्याय नहीं कर पायी कमजोर कहानी 

manoj bajpayee की भैयाजी की १००वीं फिल्म होने के साथ -साथ पहली एक्शन फिल्म भी हैं,लेकिन उनका पंच चूक गया है क्योंकि कहानी और स्क्रीनप्ले कमजोर है।

फिल्म – bhaiya ji
निर्माता -विनोद भानुशाली प्रोडक्शन
निर्देशक – अपूर्व सिंह कार्की
कलाकार – मनोज बाजपेयी, जोया हुसैन, जतिन गोस्वामी, सुरिंदर विक्की,
प्लेटफार्म – सिनेमाघर
रेटिंग – दो


manoj bajpayee बीते तीन दशक से अभिनय में सक्रिय हैं.उनकी की आज रिलीज हुई फिल्म bhaiya ji अभिनय में उनकी सेंचुरी फिल्म है.भैया जी सिर्फ इसलिए खास नहीं है बल्कि यह फिल्म मनोज बाजपेयी की पहली पूरी एक्शन फिल्म है, वो भी साउथ के स्टाइल में ,जिसमें एक पंच में हवा में पंद्रह सेकेंड्स तक कलाबाजी चलती है.इस फिल्म में भी वह है. स्लो मोशन, स्वैग वाला एक्शन भी भरपूर है , मनोज बाजपेयी की उम्दा अदाकारी भी है,लेकिन स्क्रीनप्ले बेहद कमजोर रह गया है, जिस वजह से यह रिवेंज ड्रामा फिल्म मनोज बाजपेयी जैसे कैलिबर वाले कलाकार के साथ न्याय नहीं कर पायी है.

बदले की है कहानी

फिल्म की कहानी राम चरण उर्फ़ भैयाजी (मनोज बाजपेयी )की है , जो बिहार के अपने गांव में अपनी शादी की तयारी में जुटा है. उसे अपने भाई का इन्तजार है ,जो दिल्ली से बिहार शादी में शामिल होने के लिए आ रहा है. अचानक सुबह फ़ोन आता है कि दिल्ली में भाई की मौत हो गयी है. राम चरण दिल्ली आता है ,तो उसे मालूम पड़ता है कि दबंग चंद्रभान (सुरिंदर )के बिगड़ैल बेटे (जतिन गोस्वामी )ने पावर के नशे में उसकी भाई की हत्या कर दी है, जिसके बाद मालूम पड़ता है कि एक समय में भैया जी का खौफ आम लोगों को ही नहीं नेताओं को भी था. भैयाजी का पावर ऐसा था कि वह सत्ता पक्ष को विपक्ष और विपक्ष को सत्ता में ला सकते थे. अब भैयाजी को अपने भाई की मौत का बदला चाहिए. .जिसके बाद नरसंहार का खूनी खेल होता है। यह सब कैसे होता है. यही आगे की कहानी है.

फिल्म की खूबियां और खामियां
इस फिल्म के निर्देशक अपूर्व सिंह कार्की हैं , जिन्होंने मनोज बाजपेयी के साथ मिलकर साल २०२३ की बेहतरीन फिल्मों में शुमार एक बंदा बनायी थी. जिस वजह से इस फिल्म से भी उमीदें बढ़ गयी थी,लेकिन उन्होंने इस बार एक कमजोर कहानी और स्क्रीनप्ले को चुना.जिस वजह से उनके पसंदीदा अभिनेता मनोज बाजपेयी का साथ मिलने के बावजूद बात नहीं बन पायी है. फिल्म की कहानी की शुरुआत प्रभावी ढंग से होती है. फिल्म का फर्स्ट हाफ अच्छा बन पड़ा है। सेकेंड हाफ में कहानी पूरी तरह से बिखर जाती है. पहले भाग में भैयाजी का किरदार हो या चंद्रभान के किरदार को जिस तरह से बिल्डअप दिया गया है.लगता था कि दोनों एक – दूसरे के लिए बहुत बड़ी चुनौती साबित होंगे. कहानी में वो उस तरह से प्रभावी नहीं बन पाया है . दोनों एक दूसरे के लिए कोई बड़ी चुनौती कहानी में नहीं रख पाए हैं. मनोज बाजपेयी के किरदार को नरेशन में किलर मशीन,रोबिन हुड का बाप कहा गया है , लेकिन परदे पर किरदार उस तरह से नहीं आ पाया है. जो निर्देशक और लेखन टीम की खामी को उजागर करता है.फिल्म में इमोशन पक्ष थोड़ा कमजोर रह गया है. दोनों भाइयों के बीच की बॉन्डिंग को थोड़ा और मजबूती से दर्शाने की जरुरत थी. यह बात भी समझ नहीं आती कि भैयाजी अपने भाई के लिए यह प्रतिशोध ले रहे हैं या मां के कहने पर वैसा कर रहे हैं. इसके साथ ही यह बात भी खटकती है, जिस तरह से बिहार और दिल्ली के बीच आसानी से कहानी आती – जाती रहती है. फिल्म को पूरी तरह से बिहार पर ही आधारित कर देना , राइटिंग टीम के लिए ज़्यादा सही होता था. लार्जर देन लाइफ फिल्मों के संवाद उनकी सबसे अहम् कड़ी होते हैं ,लेकिन यह फिल्म इसमें भी मात खाती है खासकर भैयाजी और चंद्रभान के बीच के संवाद बेहद कमजोर रह गए हैं. फिल्म का बैकग्राउंड म्यूजिक लाउड है. गीत – संगीत कहानी के साथ न्याय करता है. बाघ जैसा करेजा याद रह जाता है.

मनोज बाजपेयी है शानदार
अभिनय की बात करें तो मनोज बाजपेयी फिर शानदार रहे हैं. एक्शन दृश्यों में उनकी मेहनत दिखती है। इमोशनल दृश्यों में वह कमाल के रहे हैं. जोया हुसैन ने भी अपने किरदार के साथ न्याय किया है.वे इस फिल्म की बहन जी है. जतिन गोस्वामी और सुरिंदर का काम भी अच्छा है.उनके पास ज़्यादा कुछ करने को नहीं था. विपिन शर्मा अपनी मौजूदगी से फिल्म थोड़ा हास्य का रंग जोड़ते हैं. बाकी के किरदार भी अपनी – अपनी भूमिका के साथ जमे हैं.

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